महाभारत युद्ध समाप्त हो चुका था, पर पांडव अपने भाई बंधुओं और अन्य स्वजनों की हत्या करने के पाप से अत्यंत व्यथित थे। उन्हें दुःखी तथा पश्चाताप की अग्नि में जलते देख श्री कृष्ण जी ने उन्हें पाप मुक्ति के लिए विभिन्न तीर्थ स्थलों के तीर्थाटन की सलाह दी तथा यह भी बतलाया कि जिस तीर्थ में तुम्हारे हथियार पानी में गल जायेंगे वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। घूमते-घूमते पांडव लोहार्गल आये तथा जैसे ही उन्होंने यहां के सूर्यकुंड़ में स्नान किया उनके सारे हथियार पानी में गल गये। उन्होंने इस स्थान की महिमा को समझ इसे तीर्थ-राज की उपाधी से विभूषित किया। फिर शिव जी की आराधना कर मोक्ष की प्राप्ति की
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लोहार्गल राजस्थान में शेखावटी इलाके की नवलगढ़ तहसील में, झुंझुनू शहर से तकरीबन 70 कि.मी. और उदयपुरवाटी से करीब दस कि.मी. की दूरी पर आड़ावल पर्वत की घाटी में स्थित है। लोहार्गल का अर्थ है, वह स्थान जहां लोहा गल जाए। पुराणों में भी इस स्थान का जिक्र मिलता है। अरावली पर्वत शाखाओं की सबसे ऊँची 1050 मी. की चोटी की तलहटी में स्थित इस जगह को स्थानीय लोग ''लुहागरजी'' के नाम से भी पुकारते हैं। पहले यहां सिर्फ साधू-संत ही रहा करते थे, पर अब यहां कई परिवार बस गए हैं। जो मुख्यतः अचार के व्यवसाय से जुड़े हैं। मुख्य मार्ग से करीब पांच-छह कि.मी. की चढ़ाई नुमा दूरी पर कुंड के पास तरह-तरह के अचारों से सजी बीसीओं दुकानें स्थित हैं जिनकी अचारी खुशबू से सारा इलाका महकता रहता है।
लोहार्गल से भगवान परशुराम का भी नाम जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि क्षत्रियों के संहार के पश्चात क्रोध शांत होने पर जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ तो पश्चाताप स्वरुप उन्होंने यहां यज्ञ किया तथा नरसंहार के पाप से मुक्ति पाई थी। यहां एक विशाल बावड़ी भी है जिसका निर्माण महात्मा चेतनदास जी ने करवाया था। यह राजस्थान की बड़ी बावड़ियों में से एक है। पास ही पहाड़ी पर एक प्राचीन सूर्य मंदिर बना हुआ है। इसके साथ ही वनखण्डी जी का मंदिर है। कुण्ड के पास ही प्राचीन शिव तथा हनुमान मंदिर तथा पांडव गुफा भी स्थित है। इनके अलावा चार सौ सीढ़ियां चढने पर मालकेतु जी के दर्शन भी किए जा सकते हैं।
यहां के प्राचीन सूर्य मंदिर के पीछे भी एक अनोखी कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में काशी में सूर्यभान नामक राजा हुए थे, जिन्हें वृद्धावस्था में अपंग लड़की के रूप में एक संतान हुई। राजा ने तमाम ज्योतिर्विदों से उसके बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि पूर्व के जन्म में वह लड़की मर्कटी थी, जो शिकारी के हाथों मारी गई थी। शिकारी उस मृत बंदरिया को एक बरगद के पेड़ पर लटका कर चला गया था। अभक्ष्य होने के कारण उसका बाकी शरीर तो हवा और धूप से सूख कर लोहार्गल धाम के पवित्र जलकुंड में गिर गया पर उसका एक हाथ वहीं पेड़ पर अटका रह गया था। इसीलिए पुनर्जन्म में इसे ऐसे हस्त-विहीन शरीर की प्राप्ति हुई। इस व्याधि के परिमार्जन हेतु उन्होंने राजा को उपाय सुझाया कि यदि आप उस हाथ को भी ला कर कुंड के पवित्र जल में डाल दें तो इस बच्ची का अंपगत्व समाप्त हो जाएगा। राजा तुरंत लोहार्गल आए तथा उस बरगद की शाखा से बंदरिया के हाथ को जलकुंड में डाल दिया। जिससे उनकी पुत्री का हाथ स्वतः ही ठीक हो गया। इस चमत्कार से प्रभावित हो राजा ने यहां पर सूर्य मंदिर व सूर्यकुंड का निर्माण करवा कर इस तीर्थ को भव्य रूप दिया।
एक यह भी मान्यता है, भगवान विष्णु के चमत्कार से प्राचीन काल में पहाड़ों से एक जल धारा निकली थी जिसका पानी अनवरत बह कर सूर्यकुंड में जाता रहता है। इस प्राचीन, धार्मिक, ऐतिहासिक स्थल के प्रति लोगों में अटूट आस्था है। लोगों का यहां वर्ष भर आना-जाना लगा रहता है। माघ मास की सप्तमी को सूर्यसप्तमी महोत्सव मनाया जाता है। श्रावण मास में भक्तजन यहां के सूर्यकुंड से जल भर कर कांवड़ उठाते हैं। जिसमें सूर्य नारायण की शोभायात्रा के अलावा सत्संग प्रवचन के साथ विशाल भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।हज़ारों नर-नारी यहां आ कुंड में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
लोहार्गल एक प्राचीन, धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल जरूर है, लोगों की इसके प्रति अटूट आस्था भी है, भक्तों का यहां आना-जाना भी लगा रहता है, फिर भी इस क्षेत्र की हालत अत्यंत सोचनीय है। सरकार की ओर से पूर्णतया उपेक्षित इस जगह पर प्राथमिक सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। चारों ओर गंदगी का आलम है। पशु-मवेशी खुले आम घूमते रहते हैं। सड़कों की हालत दयनीय है। नियमित बस सेवा भी उपलब्ध नहीं है। रहने खाने का भी कोई माकूल इंतजाम नहीं है। यदि इस ओर थोड़ा सा भी ध्यान पर्यटन विभाग दे तो यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का आना शुरु हो सकता है।