हमारी एक सांसद वर्षों से एक ख़ास कंपनी की RO मशीन खरीदने की सिफारिश करती आ रही हैं, जबकि विशेषज्ञ यह कहते हैं कि पानी को साफ़ करने की RO विधि बहुत उपयोगी नहीं है। हर जगह इसकी जरुरत भी नहीं होती। इस प्रक्रिया में पानी के बहुत सारे गुण और तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा इससे जितना पानी साफ़ होता है उससे तीन गुना पानी बर्बाद भी हो जाता है। एक तरफ तो हमें पानी की बचत का पाठ पढ़ाया जाता है तो दूसरी तरफ तरह-तरह की खामियों, दोषों और अनुपयोगिता के बावजूद ऐसी मशीन खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है , जो पानी को साफ़ कम बर्बाद ज्यादा करती है ............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
कल यहीं बात की थी कि कैसे पानी की कोई कमी ना होने के बावजूद लोगों को भरमा-डरा कर, 50-60 साल पहले 1965 में बोतल बंद पानी की शुरुआत बिसलरी ने तब की बंबई में कर दी थी। देखा जाए तो बोतलबंद पानी का पहला व्यापार 1845 से ही पोलैंड के मैनी शहर में होना शुरू हो चुका था। आज दुनिया में दस हजार से भी ज्यादा कंपनियां इस धंधे में लगी हुई हैं। दुनिया भर में तेजी से फ़ैल रहे इस धंदे का खेल आज सैंकड़ों अरब डॉलर का हो चुका है। अपनी ही बात करें तो हमारे यहां तीन रूपये की लागत लगा बीस रुपये वसूलने वाली तकरीबन 200 छोटी-बड़ी कंपनियां करीब 15 हजार करोड़ रुपए का खेल खेल रही हैं। जबकि दुनिया जानती है कि इस तरह का पानी सेहत के लिए हानिकारक भी हो सकता है। पर पानी की बूंद-बूंद से पैसा कमाने में लगी देशी विदेशी कंपनियों ने अपने विज्ञापनों के जरिए लोगों के मन में यह विश्वास जमा दिया है कि वे जो पानी पी रहे हैं वो पूरी तरह से सुरक्षित है। जबकि हाल ही के दिनों में कई ब्रांडों के बोतलबंद पानी के नमूनों में मानक से कई गुणा ज्यादा कीटनाशक पाए गए। कई बार तो बोतलें ही खतरनाक स्टार तक अशुद्ध पाई गयीं। इसके अलावा जहाँ भी पानी के फ़िल्टर प्लांट लगते हैं वहां भू-जल का स्तर खतरनाक रूप से कम हो जाता है। प्लास्टिक की बोतलें और उनका अनैतिक उपयोग जो कहर ढाता है, वो अलग !
#हिन्दी_ब्लागिंग
कल यहीं बात की थी कि कैसे पानी की कोई कमी ना होने के बावजूद लोगों को भरमा-डरा कर, 50-60 साल पहले 1965 में बोतल बंद पानी की शुरुआत बिसलरी ने तब की बंबई में कर दी थी। देखा जाए तो बोतलबंद पानी का पहला व्यापार 1845 से ही पोलैंड के मैनी शहर में होना शुरू हो चुका था। आज दुनिया में दस हजार से भी ज्यादा कंपनियां इस धंधे में लगी हुई हैं। दुनिया भर में तेजी से फ़ैल रहे इस धंदे का खेल आज सैंकड़ों अरब डॉलर का हो चुका है। अपनी ही बात करें तो हमारे यहां तीन रूपये की लागत लगा बीस रुपये वसूलने वाली तकरीबन 200 छोटी-बड़ी कंपनियां करीब 15 हजार करोड़ रुपए का खेल खेल रही हैं। जबकि दुनिया जानती है कि इस तरह का पानी सेहत के लिए हानिकारक भी हो सकता है। पर पानी की बूंद-बूंद से पैसा कमाने में लगी देशी विदेशी कंपनियों ने अपने विज्ञापनों के जरिए लोगों के मन में यह विश्वास जमा दिया है कि वे जो पानी पी रहे हैं वो पूरी तरह से सुरक्षित है। जबकि हाल ही के दिनों में कई ब्रांडों के बोतलबंद पानी के नमूनों में मानक से कई गुणा ज्यादा कीटनाशक पाए गए। कई बार तो बोतलें ही खतरनाक स्टार तक अशुद्ध पाई गयीं। इसके अलावा जहाँ भी पानी के फ़िल्टर प्लांट लगते हैं वहां भू-जल का स्तर खतरनाक रूप से कम हो जाता है। प्लास्टिक की बोतलें और उनका अनैतिक उपयोग जो कहर ढाता है, वो अलग !
विडंबना तो यह है कि ऐसे पानी की जांच का कोई सरल और सुलभ तरीका है ही नहीं ! इसलिए हम सिर्फ भरोसा कर बिना सही-गलत जाने उसका उपयोग करते चले जा रहे हैं। पानी ही तो है इसलिए किसी बात पर ज्यादा ध्यान भी नहीं देते ! जबकी कुछ सावधानियां बहुत जरुरी होती हैं, इस तरह के पानी का इस्तेमाल करते समय। जैसे कि चलती कार में बोतलबंद पानी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि कार में बोतल खोलने पर कार के वातावरण और पानी में मिले रसायनों की प्रतिक्रियाएं काफी तेजी से होती हैं और पानी अधिक खतरनाक हो जाता है। यही बात तेज धूप में बोतल से पानी पीने पर लागू होती है।
वैसे तो बोतल का पानी उपयोग में ना ही लाया जाए तो बेहतर है पर आज के समय इस बात को कठोरता से लागू भी नहीं किया जा सकता। ऐसा भी नहीं है कि सारी कंपनियां नियमों का उल्लंघन कर रही हैं और बोतलबंद पानी सेहत के लिए एक दम से खराब है। जरूरत है तो बोतलबंद पानी को लेकर जागरुक रहने की। तो ऐसे में कुछ सावधानियां जरूर बरतें ! पानी या कोई भी बोतल बंद द्रव्य लेते समय उस पर लीटर का मानक मार्क अंग्रेजी का अक्षर ‘एल’ लिखा हो। पानी का पाउच या बोतल खरीदते समय एक बार उसकी जांच जरूर कर लें। बिना एक्सपायरी डेट लिखे पानी के पाउच और बोतल ना खरीदें।
आज दुनिया भर के देश इस तरह के प्लांट को दरकिनार कर उन पर रोक लगा रहे हैं। पर दुर्भाग्यवश हमारे देश में यह व्यापार दिन दूनी, रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रहा है। भ्रमित करने वाले विज्ञापनों ने हमारी आँखों पर पट्टी बाँध दी है ! जबकि विशेषज्ञ यह कहते हैं कि पानी को साफ़ करने की RO विधि बहुत उपयोगी नहीं है। हर जगह इसकी जरुरत भी नहीं होती। इस प्रक्रिया में पानी के बहुत सारे गुण और तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा यह जितना पानी साफ़ करती है उससे तीन गुना पानी बर्बाद भी हो जाता है। एक तरफ तो हमें पानी की बचत का पाठ पढ़ाया जाता है तो दूसरी तरफ ऐसी मशीन खरीदने के लिए प्रतिष्ठित लोगों द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है ! हमारी एक सांसद तो वर्षों से एक ख़ास कंपनी की RO मशीन खरीदने की सिफारिश करती आ रही हैं। क्या उसकी खामियों, उसके दोषों, उसकी अनुपयोगिता का उन्हें पता नहीं है।
यह सच है कि सर्वजन को पानी उपलब्ध करवाना सरकार का जिम्मा है। पर उसके उपयोग, संचय, बचत, रख-रखाव, का कर्तव्य अवाम का ही है। पर कड़वी और डरावनी सच्चाई तो यह है कि अपनी मूर्खताओं के कारण हमने इस अति आवश्यक प्राकृतिक नेमत की कीमत नहीं समझी, और उसी का फल हम आज तरह-तरह से भुगतने को मजबूर हैं। पानी की उपलब्धता बहुत तेजी से घटती जा रही है पर हालात बिल्कुल ही बेकाबू हो गए हों ऐसा भी नहीं है ! हजारों लोग इसका समाधान निकाल रहे हैं। पुरानी परम्पराओं को जीवित किया जा रहा है। रेगिस्तान को नखलिस्तान और ुसार को जंगल में बदला जा रहा है। अभी पैमाना छोटा है पर सब मिल के जुट जाएं तो फिर सूखी नदियां, झीलें, सरोवर, तालाब पुनर्जीवित हो लहलहा उठेंगे।
वैसे तो बोतल का पानी उपयोग में ना ही लाया जाए तो बेहतर है पर आज के समय इस बात को कठोरता से लागू भी नहीं किया जा सकता। ऐसा भी नहीं है कि सारी कंपनियां नियमों का उल्लंघन कर रही हैं और बोतलबंद पानी सेहत के लिए एक दम से खराब है। जरूरत है तो बोतलबंद पानी को लेकर जागरुक रहने की। तो ऐसे में कुछ सावधानियां जरूर बरतें ! पानी या कोई भी बोतल बंद द्रव्य लेते समय उस पर लीटर का मानक मार्क अंग्रेजी का अक्षर ‘एल’ लिखा हो। पानी का पाउच या बोतल खरीदते समय एक बार उसकी जांच जरूर कर लें। बिना एक्सपायरी डेट लिखे पानी के पाउच और बोतल ना खरीदें।
आज दुनिया भर के देश इस तरह के प्लांट को दरकिनार कर उन पर रोक लगा रहे हैं। पर दुर्भाग्यवश हमारे देश में यह व्यापार दिन दूनी, रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ रहा है। भ्रमित करने वाले विज्ञापनों ने हमारी आँखों पर पट्टी बाँध दी है ! जबकि विशेषज्ञ यह कहते हैं कि पानी को साफ़ करने की RO विधि बहुत उपयोगी नहीं है। हर जगह इसकी जरुरत भी नहीं होती। इस प्रक्रिया में पानी के बहुत सारे गुण और तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा यह जितना पानी साफ़ करती है उससे तीन गुना पानी बर्बाद भी हो जाता है। एक तरफ तो हमें पानी की बचत का पाठ पढ़ाया जाता है तो दूसरी तरफ ऐसी मशीन खरीदने के लिए प्रतिष्ठित लोगों द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है ! हमारी एक सांसद तो वर्षों से एक ख़ास कंपनी की RO मशीन खरीदने की सिफारिश करती आ रही हैं। क्या उसकी खामियों, उसके दोषों, उसकी अनुपयोगिता का उन्हें पता नहीं है।
यह सच है कि सर्वजन को पानी उपलब्ध करवाना सरकार का जिम्मा है। पर उसके उपयोग, संचय, बचत, रख-रखाव, का कर्तव्य अवाम का ही है। पर कड़वी और डरावनी सच्चाई तो यह है कि अपनी मूर्खताओं के कारण हमने इस अति आवश्यक प्राकृतिक नेमत की कीमत नहीं समझी, और उसी का फल हम आज तरह-तरह से भुगतने को मजबूर हैं। पानी की उपलब्धता बहुत तेजी से घटती जा रही है पर हालात बिल्कुल ही बेकाबू हो गए हों ऐसा भी नहीं है ! हजारों लोग इसका समाधान निकाल रहे हैं। पुरानी परम्पराओं को जीवित किया जा रहा है। रेगिस्तान को नखलिस्तान और ुसार को जंगल में बदला जा रहा है। अभी पैमाना छोटा है पर सब मिल के जुट जाएं तो फिर सूखी नदियां, झीलें, सरोवर, तालाब पुनर्जीवित हो लहलहा उठेंगे।
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, जागरूकता फैले यही मंशा है ! सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद !
विचारणीय लेख। अक्सर हम भेड़चाल में चलने के आदि हैं। किसी ने आरओ लगाया तो सबने उसे स्तर का पैमाना मान लिया और फिर उन्होंने भी लगवा दिया। हमे सोचना होगा कि भेड़ चाल में चलकर हम अपना नुकसान तो नहीं कर रहे हैं।
विकास जी, "कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है
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