शनिवार, 11 मई 2019

परीक्षा में प्राप्त होने वाले शत-प्रतिशत अंक, शंकाओं के दायरे में

सिर्फ वस्तुनिष्ठता पर निर्भर रहने से वह मात्र सूचना भर रह जाती है ! परंतु लगने लगा है कि आज की स्कूली शिक्षा में इस तरफ कतई ध्यान नहीं दिया जाता ! सूचना ही अभीष्ट हो गयी है और उसे ही ज्ञान मान लिया गया है, जो आज के इंटरनेट के युग में सर्वसुलभ है ! कोई आश्चर्य नहीं कि अंक प्रदान करने वाले माननीयों के ज्ञान का स्रोत भी वही अंतरजाल ही हो और उसी के द्वारा प्रदत्त तथाकथित ज्ञान को आधार मान स्कूलों में अंक ''वितरित'' किए जाते हों ! कई वैश्विक सर्वे यह बताते हैं कि भारतीय छात्रों में पेशेवर क्षमता नहीं होती ! देश की नियामक या कार्यविधि समितियां भी ऐसा ही मानती हैं ....!

#हिन्दी_ब्लागिंग    
पिछले दिनों के स्कूलों के परीक्षा रिजल्ट देख बहुतों के जेहन में कुछ सवाल उठने लगे हैं ! इतिहास, मनोविज्ञान, भाषा, साहित्य इत्यादि में भी 99 या शत-प्रतिशत अंक ? यहां बच्चों की काबिलियत या उनकी मेहनत पर कोई शक नहीं है पर उत्तर पुस्तिकाओं की जांच, शासन की प्रणाली और उसकी नीतियों पर जरूर  कुछ प्रश्न खड़े हो रहे हैं ! जिसमें इजाफा हो रहा है दिल्ली की वर्तमान सरकार के उस बयान से, जिसमें दावा किया गया है कि उनकी सरकार की नीतियों, उनके द्वारा दी गयी सुविधाओं और वातावरण से शिक्षा का स्तर बढ़ा है ! यदि उनके दिए गए कारणों से शिक्षा सुधरती तो राजा, नवाबों, मंत्री-संतरी के बच्चे तो सदा ही टॉप करते ! क्योंकि उन्हें ही सबसे ज्यादा सुविधा और सहूलियतें मय्यसर होती हैं। और यदि वाकई बच्चे रचनात्मकता की इस ऊंचाई पर पहुंच गए हैं तो यह देश और समाज के लिए गर्व का विषय है पर यदि सोचे-समझे ''सिस्टम'' के तहत ऐसा हो रहा है तब तो बच्चे क्या देश को ही अंधेरे की तरफ ढकेला जाना शुरू हो चुका है। 

ऐसा सोचने के कारण भी हैं ! अभी कुछ दिनों पहले यूपीएससी के नतीजे भी आए थे, जिसमें टॉप करने वाले अभ्यर्थी को 55.35 अंक मिले थे ! सवाल वही है कि यदि शिक्षा की गुणवत्ता, उसके स्तर में सुधार हुआ है तो फिर यहां 100 फीसदी के सामने आधे अंक क्यों ?  यह सही है कि यूपीएससी देश की सबसे कठिन परीक्षा है पर उसमें भाग भी तो सबसे प्रतिभावान छात्र ही लेते हैं ! फिर यहां परीक्षाओं की तुलना नहीं की जा रही ! दोनों की तुलना होनी भी नहीं चाहिए, क्योंकि उनका मकसद, उसमें भाग लेने वाले की मानसिकता, ध्येय और बौद्धिकता एक दम अलग होते हैं। पर चिंता इस बात की है कि ऐसा तो नहीं कि स्कूलों की परीक्षा में एक भी अंक ना छोड़ने की कोशिश करने वाले वाले बच्चे की समझ अंकों के अनुरूप विकसित हो ही ना पाती हो ! ऐसा तो नहीं कि कहीं ''किसी और'' उद्देश्य को हासिल करने के लिए बच्चों को मोहरा बनाया जा रहा हो ? यह शक बेबुनियाद भी नहीं है ! कई वैश्विक सर्वे यह बताते हैं कि भारतीय छात्रों में पेशेवर क्षमता नहीं होती ! देश की नियामक या कार्यविधि समितियां भी ऐसा ही मानती हैं ! ऐसा भी कई बार सामने आया है कि टॉप करने वाले छात्र किसी ओर जगह साधारण से प्रश्नों का जवाब भी नहीं दे पाते ! अनेकों बार तो शिक्षकों तक को ज्ञानहीनता के कारण शर्मिंदा होते देखा गया है !


आज बहुत सारे लोग यह सोचने लगे हैं कि 500 में 499 अंक मिलने का आधार क्या है ? गलत ना भी होते हुए यह बात पचती नहीं है ! सौ फीसदी अंक देखकर उस विद्यार्थी के मानसिक स्तर को नहीं परखा जा सकता, ऐसे में वास्तविक स्थिति का आकलन भी नहीं हो पाता है। शिक्षा में वस्तुनिष्ठा के साथ-साथ तर्क और  विश्लेषण की क्षमता का समावेश भी जरूर होना चाहिए। किसी भी बात का तार्किक विश्लेषण होना या करना अति आवश्यक होता है। सिर्फ वस्तुनिष्ठता पर निर्भर रहने से वह मात्र सूचना भर रह जाती है ! परंतु लगने लगा है कि आज की स्कूली शिक्षा में इस तरफ कतई ध्यान नहीं दिया जाता ! सूचना ही अभीष्ट हो गयी है और उसे ही ज्ञान मान लिया गया है, जो आज के इंटरनेट के युग में सर्वसुलभ है ! कोई आश्चर्य नहीं कि अंक प्रदान करने वाले माननीयों के ज्ञान का स्रोत भी वही अंतरजाल ही हो और उसी के द्वारा प्रदत्त तथाकथित ज्ञान को आधार मान स्कूलों में अंक ''वितरित'' किए जाते हों, जो आज ऐसी हद पर जा बैठे हैं, जहां उन पर उंगलियां उठनी शुरू हो गयी हैं। 

इसी के साथ एक बात और भी गहरा रही है कि क्या प्राप्तंकों और लियाकत का कोई संबंध है ? वैसे तो पुराने समय की पढ़ाई और आज की शिक्षा की कोई तुलना ही नहीं की जा सकती ! पहले 50-55 प्रतिशत के ऊपर अंकों की प्राप्ति गौरव की बात कहलाती थी। बहुत ही जहीन बच्चों के लिए भी 70-80 प्रतिशत अंक लाना बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी। पर तब और अब में जमीन आसमान का फर्क आ गया है। पढ़ने-पढ़ाने की तकनीक में बहुत बदलाव हो चुका है ! तरह-तरह की नई सुविधाएं, जानकारियां उपलब्ध हो चुकी हैं। पर साथ ही यह भी लगने लगा है कि आज के छात्रों को संपूर्ण होने के भ्रम में डाल उनको तर्क और विश्लेषण की क्षमता से धीरे-धीरे दूर किया जा रहा है। आज उनके पास ''सूचनाएं'' तो बहुत हैं पर जानकारी की निहायत कमी है ! पहले छात्रों का ज्ञान, विषयों की जानकारी, उनकी समझ, उनके बौद्धिक स्तर का अनुमान, उनके द्वारा परीक्षा में पाए गए अंकों से लगाया जा सकता था ! अपने विषय के अलावा भी उनकी जानकारियों का दायरा काफी बड़ा हुआ करता था। पर अब वैसा नहीं रह गया है। यदि यह आशंका सही है तो जिम्मेवार लोगों को, इसके पहले की स्थिति काबू के बाहर हो जाए, इस पर ध्यान केंद्रित कर हालात को सुधारने के लिए तुरंत आवश्यक कदम उठाने की सख्त जरुरत है। 
@संदर्भ - दैनिक भास्कर   

2 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन भरतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना टी. बालासरस्वती जी की 101वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी आप का और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार

विशिष्ट पोस्ट

"मोबिकेट" यानी मोबाइल शिष्टाचार

आज मोबाइल शिष्टाचार पर बात करना  करना ठीक ऐसा ही है जैसे किसी कॉलेज के छात्र को पांचवीं क्लास का कोर्स समझाया जा रहा हो ! अधिकाँश लोग इन सब ...