तभी प्रादुर्भाव हुआ बाल्टी में बर्फ के बीच रखी बोतलों में भूरे, नारंगी, सफ़ेद ''कोल्ड ड्रिंक्स'' को कोला,ऑरेन्ज, लिम्का के नाम से बेचने की साजिश का ! बिक्री बढ़ाने की साजिश में सार्वजनिक जगहों पर लगे जल प्रदायों को बंद या ख़त्म कर दिया गया। हैंडपंपों के पानी को दूषित बताने का कुचक्र रचा गया ! टोटियां या तो तोड़ दी गयी या फिर उनमें पानी की आमद रोक दी गयी ! घरों में आने वाले पानी को दूषित या कम गुणवत्ता का बना दिया गया ! परेशान, हलकान लोगों की मजबूरी कुछ लोगों के लिए धनवर्षा का सुयोग बन गयी...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
वर्ष 1989 के शुरुआती दिनों की एक शाम,
रायपुर के पत्रकार क्लब के पास एक छोटा सा खाने-पीने का ठीया !
उस दिन कांउटर पर पानी के पाउच तथा आधा लीटर की पानी की बोतल रखी देख जिज्ञासावश पूछने पर पता चला कि यह बिकने के लिए है ! घोर आश्चर्य हुआ कि जिस शहर में अभी घर से बाहर चाय पीने का चलन भी पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है वहां पानी कौन खरीद कर पिएगा ! पर कुछ ही दिनों के बाद एक ''फ़िल्टर वाटर प्लांट'' के उद्घाटन का आमंत्रण पत्र मिला। पहुँचने पर दिखा, शहर के जाने-माने लोगों का जमावड़ा ! दैवयोग से सत्य नारायण शर्मा जी, जो तब भी शायद एमएलए ही थे मेरी बगल में बैठे थे, मैंने ऐसे ही पूछ लिया, सत्तू भैया म्युनिस्पल कार्पोरेशन का इतना बड़ा फ़िल्टर प्लांट है, पानी भी ठीक-ठाक आता है, तो फिर इसका औचित्य ? बोले, रायपुर का भूमिजल भारी है ये लोग अपनी कालोनी के लिए इंतजाम कर रहे हैं। यानी सरकार के समर्पण की शरुआत ! तब अंदाज कहां था कि जहां आम आदमी अपनी अक्ल पर चश्मा चढ़ा, आने वाले दो-एक साल का आकलन बमुश्किल कर पाता है, वहीं चतुर लोग अपनी आँखों पर दूरबीन लगा, दसियों साल आगे का समय भांप लेते हैं। बात आई-गयी हो गयी !
उस समय ट्रेनों में सुराहियों का चलन हुआ करता था, पांच-सात लीटर की सुराही गर्मियों के सफर के दौरान निर्मल-शीतल जल का पर्याय थीं। रास्ते में उसे दोबारा भरने के लिए स्टेशनों पर पानी सदा उपलब्ध रहता था। पर एकाएक स्टेशनों के नल सूख गए ! कहीं एकाध जगह पानी आता भी था तो दसियों मिनट लग जाते थे बर्तन भरने में ! इधर पाँव भर पानी के लिए धक्का-मुक्की, उधर गाडी सीटी बजा रही चलने की ! लोग परेशान ! खासकर महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे ! जो ना गाडी से उतरने की हिम्मत रखते थे नाहीं प्यासे रह सकते थे ! तभी प्रादुर्भाव हुआ बाल्टी में बर्फ के बीच रखी बोतलों में भूरे, नारंगी, सफ़ेद ''कोल्ड ड्रिंक्स'' को कोला,ऑरेन्ज, लिम्का के नाम से बेचने की साजिश का ! बिक्री बढ़ाने की साजिश में सार्वजनिक जगहों पर लगे जल प्रदायों को बंद या ख़त्म कर दिया गया। हैंडपंपों के पानी को दूषित बताने का कुचक्र रचा गया ! टोटियां या तो तोड़ दी गयी या फिर उनमें पानी की आमद रोक दी गयी ! इसमें सरकारी कारीदों की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता। घरों में आने वाले पानी को दूषित या कम गुणवत्ता का बना दिया गया ! परेशान, हलकान लोगों की मजबूरी कुछ लोगों के लिए धनवर्षा का सुयोग बन गयी।
समय अविराम गति से चलता रहा साथ ही चलती रहीं सर्व सुलभ, तक़रीबन मुफ्त की प्रकृति की नेमत को सोने की खान में तब्दील करने की साजिशें ! पूरे योजनाबद्ध तरीके से तक़रीबन पचास साल पहले बने गए जाल में उलझ कर उस देश का नागरिक छटपटा रहा है जहां कायनात ने खुले हाथों अपनी दौलत लुटा रखी है। पहले बोतलबड़ पानी को ''स्टेटस सिंबल'' दिया गया। बड़े-बड़े होटलों में होने वाले सेमिनारों, फ़िल्मी समारोहों, देश-विदेश की राजनितिक मीटिंगों में इन्हें टेबलों पर स्थान दिया जाने लगा जहां से कि कैमरों के फोकस में आ सकें। फिर एक षड्यंत्र का कुचक्र शुरू हुआ ! लोगों को पानी के बारे में अजीबोगरीब जानकारियां देना शुरू हो गया। अच्छे-भले पानी को विलेन बना लोगों को इतना डरा दिया गया कि उसे पीना तो दूर मुंह-हाथ धोने में भी घरेलू पानी से भय लगने लगा ! नतीजतन पानी के सफाई के घरेलू यंत्रों की बेतहाशा बिक्री शुरू हो गयी ! बाजार में इसे पाउच, गिलास, बोतलों में बंद कर बेचा जाने लगा। घरों के लिए जेरिकेन उपलब्ध करवाए जाने लगे। स्वास्थ्य की चिंता में डूबे लोग, सिर्फ भरोसे पर आँख मूँद कर पैसा बहाने लगे, बिना किसी जांच-पड़ताल या खोज-खबर के कि हम जो पी रहे हैं वह है क्या !
है भी तो यह बहुत फायदे का सौदा ! जिस एक लीटर पानी की बोतल को हम बीस रुपये में खरीदते है उस पर बमुश्किल चार रुपये भी खर्च नहीं आता ! डेढ़ सौ अरब से भी ज्यादा के इस कारोबार में सैंकड़ों कंपनियों के अलावा हजारों लोग लगे हुए हैं लोगों को पानी पिलाने में, पर बिना किसी नैतिकता या उअत्तरदायित्व के ! पचासों बार ऐसी बातें सामने आईं हैं, जब बोतलों में नगर सप्लाई का पानी भर कर बेचा जाता मिला है। कई बार तो ट्रेनों में टायलेट का पानी यात्रियों को पीने के लिए दिए जाने पर भी हड़कंप मचा पर बस कुछ देर के लिए। अभी पिछले दिनों यह बात भी सामने आई थी कि दिल्ली सरकार की अदूरदर्शी मुफ्त पानी योजना का लाभ उठा कुछ चंट लोग मुफ्त के पानी को केन में भर पैसा कमाने में लगे हुए थे।
अब तो मुसीबत सचमुच सामने आन खड़ी हुई है ! पर तस्वीर अभी भी उतनी भयावह नहीं है कि हताश-निराश हो बैठ जाया जाए ! असंख्य लोग लगे हुए हैं इस युद्ध में जीत हासिल करने को, सफल भी हो रहे हैं ! हालांकि दायरा अभी सिमित है पर शुरुआत तो हो ही चुकी है। यह कामअकेले सरकारों के बस का भी नहीं है, समाज को भी साथ खड़े होना पड़ेगा। इस दानव से मुक्ति पाने के लिए अपने-अपने स्टार पर सभी को कोशिश करनी है।हरेक नागरिक को, बच्चे-बच्चे के जागरूक होने का समय है। बचत ही उपलब्धि जरूर है, पर क्यों ना चादर को ही इतना बड़ा कर लें कि पैर पसारने के लिए सोचना ही ना पड़े !
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (08-05-2019) को "मेधावी कितने विशिष्ट हैं" (चर्चा अंक-3329) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्री परशुराम जयंती, अक्षय तृतीया, गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर, विश्व अस्थमा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
शास्त्री जी, रचना को शामिल करने के लिए अनेकानेक धन्यवाद
हर्ष जी, रचना को शामिल करने का हार्दिक आभार, खुश रहिए
एक टिप्पणी भेजें