आज एक हिंदी भाषा की एनीमेशन फिल्म ''गोपी गवैया बाघा वजइया'' सिनेमाघरों में उतरी है। उसके शीर्षक, उसमें वर्णित घटनाक्रम और पात्रों के नाम से यह जाहिर है कि यह वर्षों पहले सत्यजीत रे जी की फिल्म ''गुपि गायेन बाघा बायेन'' नामक बांग्ला फिल्म का ''एनिमेटेड'' रूप है। पर टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार की पल्लबी डे पुरकायस्थ द्वारा उसकी जो समीक्षा की गयी है उसमें ना हीं पहली फिल्म का नाम है ना हीं सत्यजीत जी का ! ऐसा क्यों ? क्या यह निर्माता-निर्देशक और समीक्षक की मिलीभगत है ? क्यों नहीं श्रेय दिया गया ''गोपी गायेन बाघा बायेन'' को ? यह सोच कर कि इतनी पुरानी बांग्ला फिल्म की किसको याद होगी ! फिल्म चल गयी तो वाह-वाही लूट ली जाएगी ! प्रश्न उठा तो क्षमा याचना तो हईये है ...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
करीब पचास साल पहले देश के महानतम फिल्म निर्माता श्री सत्यजीत रे ने गंभीर फिल्मों से अलग हट कर बच्चों के लिए कुछ हल्की-फुल्की, मनोरंजक फिल्मों का भी निर्माण किया था। जिनमें पहली कड़ी थी ''गोपी
गाइन बाघा बाइन''। फिल्म बनाई थी दिग्गज फिल्म निर्माता-निर्देशक ने, तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह पूरी तरह बच्चों की फिल्म है। सभी रे साहब की अन्य फिल्मों की तरह उसमें भी कोई गंभीर संदेश ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। उन दिनों भी आजकी तरह अपने आप को धुरंधर, सर्वज्ञानी, तुर्रम खां समझने वाले समीक्षकों ने उस फिल्म के तरह-तरह के विश्लेषण करने शुरू कर दिए थे। कोई उसे महान राजनितिक फिल्म बता रहा था ! कोई उसके द्वारा राज नेताओं पर व्यंग्य कस रहा था तो कोई उसमें छिपा गूढ़ संदेश सामने ला रहा था ! कुछ दिनों बाद एक इंटरव्यू में उन सब तथाकथित विशेषज्ञों के मुंह देखने लायक थे जब सत्यजीत जी से इस बारे में बात हुई ! उन्होंने हंसते हुए कहा कि ''आप लोगों के बताने पर मुझे भी इसके इतने पहलू नज़र आ रहे हैं ! सच तो यह है कि यह मेरे नानाजी उपेंद्र किशोर राय चौधरी जी की आज से 40-45 साल पहले बच्चों के लिए लिखी गयी एक कहानी पर आधारित फिल्म है। जब इसे मेरे बेटे संदीप ने पढ़ा तो उसने मुझे इस पर फिल्म बनाने को कहा। इसमें कोई गूढ़ या राजनितिक संदेश नहीं छिपा है यह पूर्णतया बच्चों की फिल्म है।''
गाइन बाघा बाइन''। फिल्म बनाई थी दिग्गज फिल्म निर्माता-निर्देशक ने, तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह पूरी तरह बच्चों की फिल्म है। सभी रे साहब की अन्य फिल्मों की तरह उसमें भी कोई गंभीर संदेश ढूंढने की कोशिश कर रहे थे। उन दिनों भी आजकी तरह अपने आप को धुरंधर, सर्वज्ञानी, तुर्रम खां समझने वाले समीक्षकों ने उस फिल्म के तरह-तरह के विश्लेषण करने शुरू कर दिए थे। कोई उसे महान राजनितिक फिल्म बता रहा था ! कोई उसके द्वारा राज नेताओं पर व्यंग्य कस रहा था तो कोई उसमें छिपा गूढ़ संदेश सामने ला रहा था ! कुछ दिनों बाद एक इंटरव्यू में उन सब तथाकथित विशेषज्ञों के मुंह देखने लायक थे जब सत्यजीत जी से इस बारे में बात हुई ! उन्होंने हंसते हुए कहा कि ''आप लोगों के बताने पर मुझे भी इसके इतने पहलू नज़र आ रहे हैं ! सच तो यह है कि यह मेरे नानाजी उपेंद्र किशोर राय चौधरी जी की आज से 40-45 साल पहले बच्चों के लिए लिखी गयी एक कहानी पर आधारित फिल्म है। जब इसे मेरे बेटे संदीप ने पढ़ा तो उसने मुझे इस पर फिल्म बनाने को कहा। इसमें कोई गूढ़ या राजनितिक संदेश नहीं छिपा है यह पूर्णतया बच्चों की फिल्म है।''
तपन चटर्जी, रबी घोष और हरिंद्रनाथ चट्टोपाध्याय अभिनीत इस फिल्म को अपार सफलता मिली। बंगाल में किसी बंगाली फिल्म के सबसे ज्यादा चलने का रेकॉर्ड बना। नेशनल फिल्म एवार्ड में भी इसकी धूम रही। बेस्ट
फिल्म और बेस्ट निर्देशक का इनाम भी इसकी झोली में आया। इसकी सफलता के उपरांत रे साहब तथा उनके सुपुत्र ने अपनी ''अप्पू त्रयी'' की तर्ज पर इस फिल्म के भी ''हीरेक राजार देशे'' और ''गुपि बाघा फीरे एलो'' जैसे सीक्वेल बनाए।
फिल्म और बेस्ट निर्देशक का इनाम भी इसकी झोली में आया। इसकी सफलता के उपरांत रे साहब तथा उनके सुपुत्र ने अपनी ''अप्पू त्रयी'' की तर्ज पर इस फिल्म के भी ''हीरेक राजार देशे'' और ''गुपि बाघा फीरे एलो'' जैसे सीक्वेल बनाए।
आज एक हिंदी भाषा की एनीमेशन फिल्म ''गोपी गवैया बाघा वजइया'' सिनेमाघरों में उतरी है। उसके शीर्षक, उसमें वर्णित घटनाक्रम और पात्रों के नाम से यह जाहिर है कि यह उसी बांग्ला फिल्म का ''एनिमेटेड'' रूप है। पर आज ही टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार की पल्लबी डे पुरकायस्थ द्वारा उसकी जो समीक्षा की गयी है उसमें ना हीं पहली फिल्म का नाम है ना हीं सत्यजीत जी का ! ऐसा क्यों है ? क्या यह निर्माता-निर्देशक और समीक्षक की मिलीभगत है ? क्यों नहीं श्रेय दिया गया ''गोपी गाइन बाघा बाइन'' को ? ऐसा तो नहीं कि यह सोच कर कि इतनी पुरानी बांग्ला फिल्म की किसको याद होगी ! फिल्म चल गयी तो वाह-वाही लूट ली जाएगी ! प्रश्न उठा तो क्षमा याचना तो हईये है ! कामना है कि यह पल्लबी डे की एक चूक ही हो।
एक बात और फिल्म का शीर्षक भी बाजारू और चलताऊ किस्म का है, गोपी गवैया बाघा वजइया, जैसे गांव-खेड़े की नौटंकियों में नृत्य करने वालों के लिए नचनिया शब्द प्रयोग में लाया जाता है। इसके बदले गोपी गायक बाघा वादक भी हो सकता था। पर यह शिल्पा रानाडे जी का अपना मामला है वे जो भी नाम रखें पर तब जब ये उनकी अपनी रचना हो। पर जब आपने किसी और की कृति उठाई है तो उसको हल्का तो ना करें ! इसके साथ ही स्रोत को श्रेय या उसका जिक्र तो जरूर ही होना चाहिए।
5 टिप्पणियां:
देश के मस्तक को ऊंचा रखने वालों को सलाम
वन्देमातरम ¡
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-03-2019) को "वीर अभिनन्दन ! हार्दिक अभिनन्दन" (चर्चा अंक-3263) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, हार्दिक धन्यवाद
सटीक समीक्षा
ओंकार जी, आभार
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