रोशनआरा बेहद खूबसूरत थी। कई मुग़ल-गैर मुग़ल शहजादे, राजकुमार, राजे, नवाब मन ही मन उसका ख्वाब देखा करते थे। ऐसा ही एक युवक, जो था तो बाबर का वंशज पर वह और उसका परिवार वर्षों से सत्ता से दूर गुमनामी का जीवन जी रहे थे, रोज वहाँ आ शहजादी को देखा करता था...!
#हिन्दी_ब्लागिंग
पुरानी दिल्ली में ढेरों ऐसे मोहल्ले, बाड़े, कूचे, गलिया हैं, जिनके नाम लोगों की जुबान पर चढ़े होने की वजह से अजीब नहीं लगते पर यदि ध्यान से उन पर गौर किया जाए तो उनकी ''अजीबो-गरीबियत'' पर आश्चर्य होता है, ऐसी ही एक जगह है, पुरानी दिल्ली के दिल चांदनी चौक के पास बसंत नगर और प्रताप नगर का इलाका, जिसे अंधा मुग़ल के नाम से भी जाना जाता है। कौन था वह मुग़ल जिसके नाम से इस इलाके का ऐसा विचित्र नामकरण हो गया ? इस कथानक का विस्तृत विवरण तो नहीं मिलता ! पर बिखरी कड़ियों को जोड़ा जाए तो एक-दो हल्की सी तस्वीरें उभर कर सामने आती हैं। इसके बारे में दो जन-श्रुतियाँ प्रचलित हैं।
रोशनआरा बाग़ |
पहली, जब औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह की ह्त्या करने के पहले उसकी आँखें निकाल उसे दरिद्रता भरे जीवन में धकेल दिया था तो वह यहां आ कर रहने लगा था, इसीलिए इस जगह का नाम अंधा मुग़ल पड़ गया ! बाद में अवाम की उसके प्रति बढती सद्भावना और सहानुभूति के कारण उसका सर काट कर यहां घुमाया गया था।
रोशनआरा |
रोशनआरा की कब्र |
दूसरी, जब शाहजहां अपने सपनों का शहर शाहजहांनाबाद बनवा-बसवा रहा था तभी उसने अपनी लाड़ली बेटी रोशनआरा के नाम पर एक नायब और बेहतरीन बगीचे, रोशनआरा बाग़, का भी निर्माण करवाया था। जो आज भी उत्तरी दिल्ली के कमला नगर इलाके में अपनी भव्यता के साथ स्थित है। रोशनआरा बाग़ इतना सुंदर बन पड़ा था कि शहजादी रोशनआरा तकरीबन रोज ही वहां घूमने और मन बहलाने आया करती थी। रोशनआरा बेहद खूबसूरत थी। कई मुग़ल-गैर मुग़ल शहजादे, राजकुमार, राजे, नवाब मन ही मन उसका ख्वाब देखा करते थे। ऐसा ही एक युवक, जो था तो बाबर का वंशज पर वह और उसका परिवार वर्षों से सत्ता से दूर गुमनामी का जीवन जी रहे थे, रोज वहाँ आ शहजादी को देखा करता था। इस एक तरफा लगाव को निरुत्साहित करने के प्रयासों का जब कोई असर नहीं हुआ तो रोशनआरा के अंगरक्षकों ने इसकी शिकायत बादशाह से कर दी; यह सुनते ही बादशाह का क्रोध सातवें आसमान तक जा पहुंचा और फिर वही हुआ, जो उन दिनों की रिवायत थी ! राजाज्ञा से उस युवक की दोनों आँखें निकाल, उसे अँधा बना छोड़ दिया गया ! धीरे-धीरे जिस जगह वह रहता था वह स्थान अंधा मुग़ल के नाम से जाना जाने लगा।
18 टिप्पणियां:
अब तो अंधा मुगल के मुगल को हटा देने के दिन हैं। :) बढ़िया।
रोचक जानकारी।
रोचक जानकारी ...
इस तथ्य का पता नहीं था ...
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की २१५० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
शुक्रिया आपका जो हमसे मिले - 2150 वीं ब्लॉग-बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
रोचकता से परिपूर्ण ।
सुशील जी, कभी-कभी चिपका हुआअतीत पीछा ही नहीं छोड़ता !
ज्योति जी, हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार !
नासवा जी, रोज देखते-सुनते हम आदी जो हो जाते हैं ऐसी चीजों से !
ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार
मीना जी, ''कुछ अलग सा'' पर सदा स्वागत है
आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 25 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
यशोदा जी, सादर आभार
रोचक जानकारी है गगन जी।
श्वेता जी, आभार
बहुत अच्छा लिखा 👌👌👌
नीतू जी, ब्लॉग पर सदा स्वागत है
अच्छा लगा अंधा मुगल के पीछे की इन जनश्रुतियों को जानकर।
मनीष जी, ब्लॉग पर सदा स्वागत है
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