सोमवार, 20 अगस्त 2018

इसमें बच्चों का नहीं तंत्र का दोष है !

पिछले हफ्ते ब्लॉग पर रामायण के एक अहम पात्र सम्पाती पर दो आलेख डाले थे। उस समय ऐसे ही विचार आया कि क्या ''सम्पाती'' को कोई जानता भी है ? पहले आस-पास के लोगों से, फिर जान-पहचान वालों से फिर पार्क में सैर करते वक्त चार-पांच लोगों से पूछा ! अंजाम वही हुआ जिसका अंदेशा था ! एक भी जवाब ठीक नहीं मिला ! सम्पाती तो दूर कुछ लोग तो सिलसिलेवार दशरथ पुत्रों और उनकी माताओं के नाम भी ठीक से नहीं बता पाए ! इसमें बच्चों का दोष नहीं है, जब उन्हें किसी के बारे में बताया-पढ़ाया-सिखाया ही नहीं जाएगा, तो उसकी जानकारी कैसे होगी ! और जब बताने-सिखाने-पढ़ाने वाला ही  उजबक हो तो ! गुलिस्तां को बर्बाद करने के लिए तो एक ही उल्लू काफी होता है ! यहां तो हर शाख पे माननीय विराजमान हैं...........!

#हिन्दी_ब्लागिंग
आज सुबह की अखबार में छपी एक खबर ने मेरी बक-झक को और हवा दे दी जब पढ़ा कि प. बंगाल की एक पाठ्य-पुस्तक में मिल्खा सिंह की फोटो के बदले उन पर बनी फिल्म ''भाग मिल्खा भाग'' में उनका किरदार निभाने वाले फरहान अख्तर की फोटो छपी हुई है, जिसका किसी कोई इल्म नहीं है, सब वही पढ़-पढ़ा रहे थे ! 
यह जान-बूझ कर की गयी गलती नहीं है यह अज्ञानता का प्रतीक है ! कोई किताब यूं ही नहीं छप जाती ! दसियों लोगों की आँखों-हाथों से गुजरने के बाद लेखों को पुस्तक का रूप मिलता है ! वह तो पता नहीं कैसे फरहान को इसकी जानकारी मिली; उन्होंने आपत्ति दर्ज कराई; तो जिम्मेदारों के कान पर जूँ रेंगी ! पर क्या ऐसे दोष के लिए किसी सजा का प्रावधान है ? कौन है ऐसे लोगों का सरपरस्त ?

ऐसे ''हादसों'' का कारण साफ़ है। आज समय के साथ-साथ जीवन-पद्यति, रहन-सहन, सोच सब कुछ बदल गया है ! ज्ञान को पीछे कर जानकारी को अहमियत दी जाने लगी है ! शिक्षा का हर केंद्र ज्ञान नहीं सिर्फ जानकारी प्रदान कर किरानियों की एक बड़ी जमात का विनिर्माण करने लगा है ! इसी जमात से निकले लोग येन-केन-प्रकारेण जब जिम्मेदारी से भरे पदों पर काबिज होते या कर दिए जाते हैं, जिनके बारे में उनका ज्ञान निल बटे सन्नाटे से ज्यादा नहीं होता, तो फिरअंजाम भी वैसा ही होता है ! गुलिस्तां को बर्बाद करने के लिए तो एक ही उल्लू काफी होता है ! यहां तो हर शाख पे माननीय विराजमान हैं और विडंबना है कि हम बेहतरी की उम्मीद लगाए बैठे रहते हैं !

याद आता है ! कुछ महीनों पहले एक चैनल ने दिल्ली में कुछ युवाओं से रामायण से संबंधित कुछ सरल से प्रश्न पूछे थे, जिनका पूरा जवाब अधिकतर लोग नहीं दे पाए थे ! उन्हीं प्रश्नों में एक सवाल था, रामायण का रचयिता कौन है ? "नहीं मालुम'' तो आम जवाब था; कइयों ने रामानंद सागर का नाम लिया ! बहुतेरे बगलें झांकते नजर आए ! यह सब देख-सुन कर खेद-रोष-तकलीफ तो होती है पर सवाल यह उठता है ऐसा क्यों है ? यह तो एक ऐसे ग्रंथ के बारे में  था, जिसका प्रचार-प्रसार-लोकप्रियता दुनिया के कई-कई देशों में है ! बाकी हमारी संस्कृति, हमारे रीती-रिवाज, प्राचीन पौराणिक ग्रंथ, उनके चरित्र, शिक्षा, ज्ञान, महान ऋषि-मुनि, लेखक, चिंतक, वैज्ञानिक, चिकित्सक जैसे न जाने कितने अनगिनत योद्धा, संत महापुरुष हैं जिनके बारे में आज की पीढ़ी कुछ भी नहीं जानती ! नाही कोई कोशिश की जाती है उन सब के बारे में बताने की। कुछ पहले बात अलग थी; संयुक्त परिवारों में दादा-दादी, नाना-नानी, बड़े बुजुर्गों द्वारा बच्चों को संस्कारी, चरित्रवान, सहनशील, गुणवान, एक अच्छा इंसान बनाने के लिए किस्से-कहानियों का उपयोग किया जाता था। पर सभी जानते हैं कि समय के बदलाव के साथ क्या-क्या हुआ है ! बच्चों का बचपन छीन लिया गया, उनसे तरह-तरह के क्षेत्रों में काबिल होने का दवाब डाला गया, परिजनों के अपने खुद के दबे-ढके-अपूर्ण सपनों को पूरा करने की लालसा के साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा अंक प्राप्त करने की अंधी दौड़ में शामिल कर उन्हें मशीन बना दिया। इस सब में अब कहां उन किस्से-कहानियों का रूहानी-रूमानी कल्पना संसार !

जब तक पूरी गंभीरता, निष्पक्षता, निष्ठा से इस समस्या का निदान नहीं निकाला जाता तब तक ऐसे हादसे होते रहेंगे और कोई आश्चर्य नहीं कि यदि इसी तरह का ही रवैया रहा, तो आने वाले पच्चीस-पचास वर्षों में ऐसी ही गलतियों को सच्चाई मान लिया जाएगा !

7 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वो तो बैठा ही है। हर शाख पर भाई मिलेगा :)

सटीक।

HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 101वीं जयंती - त्रिलोचन शास्त्री और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Anita ने कहा…

विचारणीय पोस्ट..

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी,

सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी,

''कुछ अलग सा'' पर सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

हर्ष जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (22-08-2018) को "नेता बन जाओगे प्यारे" (चर्चा अंक-3071) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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