गुरुवार, 2 अगस्त 2018

मेन्यू इंजीनियरिंग ! यह कौन सी बला है भई ?

आज का बाजार इतना चतुर, कुटिल और चंट हो गया है कि वह सदा यह कोशिश करता है कि जो आपको लेना है वह तो आप लें ही ! जो नहीं लेना है या जिसकी जरुरत नहीं है वह भी आप लें ! इसीलिए किसी भी तरह का मेन्यू बनाने में इंसान की भावनाओं जैसे उसका मनोविज्ञान, अपनी मार्जिन का लेखा-जोखा, बाजार की रणनीति, सुन्दर बनावट औरआकर्षक छपाई पर ध्यान दिया जाता है। हर वह कोशिश की जाती है जिससे ग्राहक उनके मुताबिक ही आकर्षित हो सके। इसके लिए विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाती हैं, जिन्हें पता होता है कि ग्राहक कैसे और किस तरह पढ़ता है, देखता है और आकर्षित होता है.......!   

#हिन्दी_ब्लागिंग    
आज भोजन, नाश्ते या ऐसे ही छुट-पुट अल्पाहार के लिए, छोटे-बड़े किसी भी होटल, रेस्त्रां या ढाबे में चले
जाइये; वहाँ बैठते ही जो पहली चीज पेश की जाती है, वह होती है एक मेन्यू, एक या दो-तीन पन्नों पर छपी वहाँ उपलब्ध व्यंजन या भोजन-सूचि। हम मे से ज्यादातर लोग उस पर एक सरसरी नज़र डाल उसे किनारे रख देते हैं। पर यह जान कर आश्चर्य होगा कि उस कार्ड को यूँ ही सिर्फ भोजन सामग्री और उनकी कीमतों को छाप कर ही नहीं बना दिया जाता बल्कि उसके पीछे कई लोगों का दिमाग तथा तकनीक काम करती है। जिसे आजकल Menu Engineering या Menu Psychology  के नाम से जाना जाता है। यह तकनीक सिर्फ होटल-रेस्त्रां के लिए ही नहीं है बल्कि हर उस इंडस्ट्री के लिए लागू की जाती है, जिसे अपने उत्पादों को ग्राहकों तक पहुंचाना होता है। इस विधा का मुख्य उद्देश्य उस पर अंकित वस्तुओं को ग्राहकों में लोकप्रिय बना उनसे लाभ कमाना होता है। इसकी कल्पना और ईजाद बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप द्वारा 1970 में की गयी थी जिसे होटल-रेस्त्रां इत्यादि तक आने में दस साल लग गए। आज यह उन सब जगहों में इस्तेमाल होती है जहां विभिन्न स्तरों पर, विभिन्न कीमतों और गुणवत्ता वाली कई-कई  वस्तुएं बिक्री के लिए उपलब्ध होती हैं।  

अब यह कहा जा सकता है कि इसमें किसी तकनीक की क्या जरुरत है ? जिसको जो लेना होगा लेगा ! पर नहीं ! आज का बाजार इतना चतुर, कुटिल और चंट हो गया है कि वह सदा यह कोशिश करता है कि जो 
आपको लेना है वह तो आप लें ही ! जो नहीं लेना है या जिसकी जरुरत नहीं है वह भी आप लें ! इसीलिए मेन्यू बनाने में इंसान की भावनाओं जैसे उसका मनोविज्ञान, अपनी मार्जिन का लेखा-जोखा, बाजार की रणनीति, सुन्दर बनावट औरआकर्षक छपाई पर ध्यान दिया जाता है, जिससे ग्राहक पूरी तरह आकर्षित हो सके। इसके लिए विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाती हैं, जिन्हें पता होता है कि ग्राहक कैसे और किस तरह पढ़ता है, देखता है और आकर्षित होता है। उसी के अनुसार हर वस्तु को कार्ड पर स्थान दिया जाता है। हर व्यवसाय की तरह होटल-रेस्त्रां वालों का ध्यान भी सदा लागत कम करने तथा खपत बढ़ाने की तरफ रहता है। मेन्यू इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ इंसान की कुदरती आदत "नवीनता और प्रधानता" के नियमों के
बारे में पूरी तरह जानकार होते हैं, जिसके तहत माना जाता है कि इंसान मेन्यू में अपनी पहली और आखिरी देखी गयी चीज को ज्यादा याद रखता है। इसलिए उन जगहों पर ऐसे खाद्य पदार्थों के नाम रखे जाते हैं जिनकी लागत कम होती है पर कीमतें ज्यादा। इसके अलावा साधारण चीजों के नाम के शब्दों में भी थोड़ी सी हेराफेरी कर उसे नया सा नाम दे ग्राहक की उत्सुकता बढ़ा अपनी बिक्री बढ़ाने की जुगत की जाती है। 

इस तकनीक के तहत उन चीजों को वरीयता क्रम पर ऊपर रखा जाता है जिनमें मुनाफा ज्यादा हो पर लागत कम हो, जिनमे मुनाफा कम हो उन वस्तुओं से परहेज किया जाता है। इसके लिए हर चीज का मूल्य निर्धारण, उसकी कीमत, बनाने में आने वाला खर्च, उसके रख-रखाव, परोसने और बेकार या खराब हो जाने पर होने 
वाले नुक्सान की लागत सब को ध्यान में रख बहुत सावधानी से किया जाता है। मेन्यू द्वारा इस व्यवसाय के लोगों को उन वस्तुओं की ओर ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास रहता है जो कम लागत में ज्यादा मुनाफ़ा देती हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसी भी भोजनालय की लोकप्रियता, प्रसिद्धि तथा उसके आर्थिक लाभ में उसके खाद्य पदार्थों, उसकी सेवाओं, उसकी स्वच्छता की तो अहम भूमिका होती ही है पर उसकी इस सफलता में उसके मेन्यू कार्ड का भी योगदान रहता है, यह अलग बात है कि इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता। 

अब अगली बार जब भी कहीं बाहर खाने का प्रोग्राम बने तब वहाँ के मेनू को यूँ ही किनारे ना कर दें बल्कि उसमें छपी सूचि में उलझने की बजाय उसकी बनावट, शैली इत्यादि पर भी थोड़ी अहमियत दें क्योंकि उसे बनाने में कई लोगों की मेहनत लगी होती है ! 

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-08-2018) को "मत घोलो विषघोल" (चर्चा अंक-3052) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, स्नेह बरकरार रहे !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आज कल मार्केटिंग का ज़माना है सब कुछ उसके अनुसार ही चलता है ...
बाज़ार जानता है कैसे आकर्षित करना है ....

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासवा जी, कुछ अलग सा पर सदा स्वागत है

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