मंगलवार, 30 जनवरी 2018

संस्कारी बहू

यह काल्पनिक कहानी नहीं है, बल्कि यथार्थ में घटित प्रकरण से प्रेरित एक सत्य कथा है जो हसने की बजाय  सोचने पर ज्यादा मजबूर करती है ! आज की पीढ़ी का आभासी संसार से लगाव उन्हें जानकारी से तो भरपूर करता है पर ज्ञान के रूप में सब शून्य बटे सन्नाटा ही नजर आता है......    

नौकरी लगते ही चंदन, जिसे घर में सबसे छोटा होने के नाते सब छोटू पुकारते थे, की शादी कर दी गयी। घर में सोहनी-सुलक्खिनी-गूगल ज्ञान से भरपूर बहू आ गयी। साथ ही ले आई अपने मायके की ढेरों अच्छाइयों की फेहरिस्त ! एक दिन अपनी सास के सामने बैठी अपने संस्कारों का बखान कर रही थी; मम्मी जी, हमारे यहां सभी को आदर के साथ बुलाने की सीख दी गयी है। जी,  हांजी के बिना हमारे यहां कोई बात नहीं करता। हम तो अपने ड्रायवर को भी काका कह कर बुलाते हैं। दूध वाले को भइया जी कहते हैं। हम ना, अपनी काम करने वाली आया को भी अक्कू कह कर बुलाते हैं। पापा ने यही सिखाया है कि किसी का नाम ना लिया जाए, सभी को इज्जत से पुकारा जाए, इसीलिए हम अपने पेट्स को भी प्यार से पुकारते हैं, भूल से भी डॉगी को डॉगी नहीं कहते; पप्पीज कहते हैं।
  
इतने में घडी ने सात बजा दिए, बहू चौंकी ! ओ, शिट....सात बज गए ! ये छोटू भी न, पता नहीं कहाँ रह गया ! आफिस तो छह बजे बंद हो जाता है; पता नहीं कहां  मटरगश्ती करता रहता है ! बताया था कि आज बुआ जी ने बुलाया है, उनके यहां जाना है ! पर इडियट को ध्यान ही नहीं रहता किसी बात का ! रेक्लेस फेलो !! मम्मी जी संस्कारी और एटिकेटेड बहू का मुंह, मुंह खोले ताक रही थीं !   

मुंह तो मैं भी ताक रहा था, पिछले दिनों रायपुर से दिल्ली ले आती, पल-पल लेट होती गाडी में, अपनी सहयात्री 30-32 साला युवती का ! जिसे ना गाडी के समय का पता था, न उसके देर से चलने का और ना हीं उसके रूट वगैरह का, नाहीं आस-पास के माहौल का ! कानों में मोबाइल के प्लग लगाए, बीसियों घंटों से उसी में मशगूल। चिप्स जैसे दो-तीन पैकेट जरूर खाली हुए थे पर अपनी सेहत के प्रति कुछ ज्यादा ही जागरूक रहने वाली इस पीढ़ी की प्रतिनिधी को पानी का एक भी घूँट गले के नीचे उतारते नहीं देखा गया था। 

अब तक  गाडी पांच घंटे लेट हो चुकी थी। तभी उन्होंने पास से गुजरते बिरयानी बेचते लड़के से पूछा, भइया बिरयानी गरम है ? उसने जवाब दिया, मैडम ठीक है; एकदम गरम तो नहीं मिल पाएगी ! ताजा सामान तो चढ़ नहीं रहा, जो है वही बेच रहे हैं। ले लीजिए, नहीं तो यह भी ख़त्म हो जाएगा, गाडी तो चार बजा देगी दिल्ली पहुंचते-पहुंचते ! युवती चौंकी !! चार ? इसके तो एक बजे पहुँचने की बात है ! लड़का हंसा, क्या मैडम ! सवा बारह तो यहीं बज गए हैं और ट्रेन ठीक से चल भी नहीं रही है। चार बजे भी पहुँच जाए तो बहुत है। कुछ-कुछ परिस्थिति को समझते हुए बिरयानी खरीदी गयी और खाई गयी। 

कुछ देर बाद गाडी ने आगरा को पीछे छोड़ा ही था कि उन्हें गाडी की स्थिति वगैरह जानने को किसी रिलेटिव का फोन आया कि कहाँ हो इत्यादि, तो उस ज्ञानवान ने पूरी तत्परता, गंभीरता और विश्वास के साथ कह दिया, हाँ चार घंटे लेट है; अभी हरियाणा क्रॉस की है !! आस-पास के लोगों के चेहरे पर इस लाल-बुझ्झकड़ी उत्तर से मुस्कान फ़ैल गयी। फोन करने वाला भी बेहोश हो गया होगा ! अरे, तुम क्या सड़क मार्ग से जा रही हो तत्परता और विश्वास ? नहीं पता है तो साफ़ बतलाओ कि अभी पता नहीं है कि कहाँ हूँ ! किसी स्टेशन के निकलने पर बताती हूँ। पर यह पीढ़ी अपने को अज्ञानी सिद्ध नहीं होने देना चाहती भले ही मूर्ख साबित हो जाए !

आखिरकार नौ घंटों बाद गाडी ने सफदरजंग पहुँचाया। सोच रहा था कि यदि उन मोहतरमा को पेंट्री वाले लड़के ने बिरयानी ना खिला दी होती तो शायद उन्हें यहां उतरना नहीं, उतारना पड़ता !! 

3 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, दूल्हे का फूफा खिसयाना लगता है ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी, हार्दिक आभार

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