सोमवार, 31 जुलाई 2017

"महामृत्युंजय मंत्र"

जैसे देवों के देव् महादेव हैं वैसा ही मंत्रों में सबसे शक्तिशाली उनका मंत्र "महामृत्युंजय मंत्र" है। इसके जाप से भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं। मान्यता और आस्था है कि इसका जाप करने से अकाल मृत्यु टल जाती है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की कृपा से जीवन पा लेता है.....

सावन के पावन माह का सोमवार है। प्रभू शिव का दिवस। जैसे देवों के देव् महादेव हैं वैसा ही मंत्रों में सबसे शक्तिशाली उनका मंत्र "महामृत्युंजय मंत्र" है। इसके जाप से भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं। मान्यता और आस्था है कि इसका जाप करने से अकाल मृत्यु टल जाती है,  मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है। महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां बरतनी चाहिएं, जैसे - 
महाम़त्युंजय मंत्र का जाप करते समय उसके उच्चारण ठीक ढंग से यानि शुद्ध रूप से होना चाहिए । 
इस मंत्र का जाप एक निश्चित संख्या का  निर्धारण कर करना चाहिए। 
मंत्र का जाप करते मन में या धीमे स्वर में करना चाहिए।  
मंत्र पाठ के समय माहौल शुद्ध होना चाहिए।  
इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष की  माला से करना अच्छा माना जाता है। 

खुद पर पूरा भरोसा ना हो तो किसी विद्वान पंडित से ही इसका जाप करवाया जाए तो लाभप्रद रहता है। कारण हमारे मंत्र और श्लोक इत्यादि अपने में गुढार्थ लिए होते हैं। इनका उपयोग करने की शर्त होती है कि इनका उच्चारण शुद्ध और साफ होना साहिए। बहुत कम लोग ऐसे मिलते हैं जो उन्हें पढने या जाप करने के साथ-साथ उसका अर्थ भी पूरी तरह जानते हों, नहीं तो मेरे जैसे, जैसा रटवा दिया गया या पढ-सीख लिया उसका वैसे ही परायण कर लेते हैं।              

रही बात "महामृत्युंजय मंत्र" की तो कादम्बिनी पत्रिका मे डा.एस.के.आर्य जी द्वारा इस मंत्र का भावार्थ पढ़ने को मिला था, सबके हित के लिए उसे यहां दे रहा हूं।


"ओ3म् त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।                             
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माsमृतात्।।"

भावार्थ :- हम लोग, जो शुद्ध गंधयुक्त शरीर, आत्मा, बल को बढाने वाला रुद्र्रूप जगदीश्वर है, उसी की स्तुति करें। उसकी कृपा से जैसे खरबूजा पकने के बाद लता बंधन से छूटकर अमृत तुल्य होता है, वैसे ही हम लोग भी प्राण और शरीर के वियोग से छूट जाएं, लेकिन अमृतरुपी मोक्ष सुख से कभी भी अलग ना होवें। हे प्रभो! उत्तम गंधयुक्त, रक्षक स्वामी, सबके अध्यक्ष हम आपका निरंतर ध्यान करें, ताकि लता के बंधन से छूटे पके अमृतस्वरूप खरबूजे के तुल्य इस शरीर से तो छूट जाएं, परंतु मोक्ष सुख, सत्य धर्म के फल से कभी ना छूटें।

#हिन्दी_ब्लागिंग 

13 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी,
राम-राम

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 01 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी,
हार्दिक धन्यवाद

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " होरी को हीरो बनाने वाले रचनाकार मुंशी प्रेमचंद “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक धन्यवाद

Sweta sinha ने कहा…

बहुत ही ज्ञानवर्द्धक आपका लेख।
आपका धन्यवाद साझा करने के लिए।

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

महामृत्युंजय मंत्र का महात्म्य और भावार्थ प्रस्तुत कर के आपने इसकी पहुँच को व्यापक बना दिया है। उत्तम प्रस्तुति साझा करने के लिए आपका आभार।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी,
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रविंद्र जी,
हार्दिक धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही परमार्थ का काम किया आपने, खाली मंत्र जपने के साथ साथ उसका भाव भी समझ में आ जायेगा अब, बहुत आभार.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ताऊ जी
हौसला बढाने का बहुत बहुत शुक्रिया

Archana Chaoji ने कहा…

बचपन से उच्चारण पर ध्यान देना जरूरी है बच्चों के,और संस्कृत उच्चारण शुद्ध ही करती है,भावार्थ के लिए आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अर्चना जी,
मुझे तो लगता है कि संस्कृत के श्लोंकों में सिर्फ "त्वमेव माता च पिता त्वमेव..." का अर्थ ही अधिकाँश आम लोग जानते होंगे ! जिज्ञासा भी तो नहीं रही हम में !! यह सब पंडितों यानी पूजा-पाठ करवाने वालों का काम मान लिया गया है !

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