गुरुवार, 6 जुलाई 2017

सेमिनार

शहर के मुख्य मार्ग से सर्किट हॉउस जाने वाली सड़क पर कुछ आगे जा कर घने इमली के पेड़ हैं। जिनकी शाखाओं पर ढेरों तरह-तरह के परिंदे वास करते हैं। शाम होते ही जब पक्षी अपने-अपने घोंसलों की ओर लौटते हैं तो अक्सर शरारती लडके उन्हें अपनी गुलेलों का निशाना बनाते रहते हैं........................

पर्यावरणविदों और पशू-पक्षी संरक्षण करने वाली संस्थाओं ने मेरे सोते हुए कस्बाई शहर को ही क्यूं चुना, अपने एक दिन के सेमिनार के लिए, पता नहीं ! इससे शहरवासियों को कोई फ़ायदा हुआ हो या ना हुआ हो पर शहर जरूर धुल-पुंछ गया। सड़कें साफ़-सुथरी हो गयीं। रोशनी वगैरह की थोड़ी ठीक-ठाक व्यवस्था कर दी गयी। गहमागहमी काफ़ी बढ़ गयी। बड़े-बड़े प्राणीशास्त्री, पर्यावरणविद, डाक्टर, वैज्ञानिक, नेता, अभिनेता और भी ना
जाने कौन-कौन, बड़ी-बड़ी गाड़ियों मे धूल उड़ाते पहुंचने लगे। नियत दिन, नियत समय पर, नियत विषयों पर स्थानीय सर्किट-हाउस में बहस शुरू हुई। नष्ट होते पर्यावरण और खास कर लुप्त होते प्राणियों को बचाने-सम्भालने की अब तक की नाकामियों और अपने-अपने प्रस्तावों की अहमियत को साबित करने के लिए घमासान मच गया। लम्बी-लम्बी तकरीरें की गयीं। बड़े-बड़े प्रस्ताव पास हुए। सैंकड़ों पेड़ों को लगाने की योजनाएं बनी। हर तरह के पशु-पक्षी को हर तरह का संरक्षण देने के प्रस्तावों पर तुरंत मोहर
लगी। यानी कि काफी सफल आयोजन रहा।  दिन भर की बहस बाजी, उठापटक, मेहनत-मसर्रत के बाद जाहिर है, जठराग्नि तो भड़कनी ही थी। सो सर्किट हाउस के खानसामे को हुक्म हुआ, लज़िज़, बढिया, उम्दा किस्म के व्यंजन बनाने का। खानसामा अपना झोला उठा बाजार की तरफ चल पड़ा। शाम घिरने लगी थी। पक्षी दिन भर की थकान के बाद लौटने लगे थे,  पेड़ों की झुरमुट में बसे अपने घोंसलों और बच्चों की ओर। वहीँ पर कुछ शरारती  बच्चे  अपनी  गुलेलों  से  चिड़ियों  पर  निशाना  साध  उन्हें  मार  गिराने में लगे हुए थे। पास  जाने पर
खानसामे ने तीन - चार घायल बटेरों को बच्चों के  कब्जे में देखा। अचानक उसके दिमाग की बत्ती जल उठी और चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी।  उसने  बच्चों को डरा धमका कर भगा दिया। फिर बटेरों को अपने झोले में ड़ाला, पैसों को अंदरूनी जेब में और सीटी बजाता हुआ वापस गेस्ट हाउस की तरफ चल दिया।

खाना खाने के बाद, आयोजक से ले कर खानसामे तक, सारे लोग बेहद खुश थे। अपनी-अपनी जगह, अपने-अपने तरीके से,  सेमिनार की अपार सफलता पर।

#हिन्दी_ब्लागिंग 

13 टिप्‍पणियां:

Rishabh Shukla ने कहा…

​सुंदर रचना......बधाई|​​

आप सभी का स्वागत है मेरे ब्लॉग "हिंदी कविता मंच" की नई रचना #वक्त पर, आपकी प्रतिक्रिया जरुर दे|

http://hindikavitamanch.blogspot.in/2017/07/time.html




गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Rishabh ji.
सदा स्वागत है

vandana gupta ने कहा…

एक कटु सत्य उजागर करती प्रस्तुति

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Vandana ji,
यह सत्य घटना पर आधारित है!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-07-2017) को "न दिमाग सोता है, न कलम" (चर्चा अंक-2659) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-07-2017) को "न दिमाग सोता है, न कलम" (चर्चा अंक-2659) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Satish Saxena ने कहा…

हाथी के दांत हैं ,आने वाले समय में इस धूर्तता के होते धरती पर कुछ भी बच जाए बहुत समझना !
मंगलकामनाएं आपको !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी,
आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सतीश जी,
शुभकामनाएं ।
धूर्तों का बोलबाला जरुर है पर सज्जनता की अधिकता है तभी जग चलायमान है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

मार्मिक है और कटु सत्य है.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

नासूर है :-(

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

यही कटु सत्य है.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ताऊ जी,
राम राम

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...