शनिवार, 1 जुलाई 2017

बाप रे ! इतना झगडालू चिडिया परिवार

साहबजादे /दी रोज ही घूमने निकले होते हैं। तीन-चार दिन पहले टाइप मशीन में फंसे बैठे थे, किसी तरह हटा कर उन्हें ऊपर रखा गया। दो दिन पहले पता नहीं कैसे फोटो-कापियर में घुस गये, वह तो अच्छा हुआ कि चलाने वाले ने मशीन साफ करते समय उनकी झलक पा ली, नहीं तो वहीं 'बोलो हरि' हो गयी होती। बड़ी मुश्किल से आधे घंटे की मशक्कत के बाद उन्हें बाहर निकाला जा सका...........

#हिन्दी_ब्लॉगिंग
मेरे कार्यालय में  बीम  और  मीटर - बाक्स   के कारण बनी एक संकरी सी  जगह में  चिड़ियों  के घोंसले के लिये
बेहतरीन स्थान बन गया है। खान-पान की नजदीकी सुविधा के साथ-साथ बिलकुल सुरक्षित, निरापद आवास।इसी कारण पिछले तीन साल से वहां कई चीड़ी परिवार बसते और पलते आ रहे हैं। बना बनाया नीड़ है, नर्सिंग होम की तरह जोड़े आते हैं, शिशु जन्मते हैं, पलते हैं और फिर उड़न छू। ऑफिस में काम करने वालों को भी बिना मांगे मनोरंजन का जैसे एक जरिया मिल गया है। कोई न कोई उनके लिए चुग्गा ले ही आता है। पानी की व्यवस्था तो खैर कर ही दी गयी है।  

पहली बार जो जोड़ा आया था, उसने पहले जगह जाँची-परखी, देखी-भाली, हर तरह से तसल्ली करने के बाद तिनका-तिनका जोड़ अपना ठौर बना लिया। कार्यालय के सफाई कर्मचारी बनते हुए घर को साफ कर देते पर यह "Encroachment" दो दिनों की छुट्टियों के बीच हुआ था। जिसके बन जाने के बाद फिर  उसे हटाने की किसी की इच्छा नहीं हुई। उस पहले जोड़े ने आम चिड़ियों की तरह अपना परिवार बढाया और चले गये। उनके रहने के दौरान एक बार उनका नवजात नीचे गिर गया था जिसे बहुत संभाल कर वापस उसके मां-बाप के पास रख दिया गया था। वैसे रोज कुछ तिनके बिखरते थे, पर उनसे किसी को कोई तकलीफ नहीं थी साफ-सफाई हो जाती थी। 

दूसरी बार तो पता ही नहीं चला कि कार्यालय में मनुष्यों के अलावा भी किसी का अस्तित्व है। लगता था वह परिवार बेहद सफाई पसंद है, न कोई गंदगी, ना शोर-शराबा।   सिर्फ बच्चे की चीं-चीं तथा उसके अभिभावकों की
हल्की सी चहल-पहल। कब आये कब चले गये पता ही नहीं चला।   तीसरा  जोड़ा नार्मल था।  मां - बाप दिन भर
अपने बच्चे की तीमारदारी करते रहते। तिनके वगैरह जरूर बिखरते थे पर इन छोटी-छोटी बातों पर हमारा ध्यान नहीं जाता था। पर एक आश्चर्य की बात थी कि और किसी तरह की गंदगी उन्होंने नहीं फैलाई। शायद उन्हें एहसास था कि वैसा होने से उसका प्रतिफल बुरा हो सकता है।

पर अब पिछले दिनों जो परिवार आया है, जिसके कारण ये पोस्ट अस्तित्व में आई, वह तो अति विचित्र है। सबेरे कार्यालय खुलते ही ऐसे चिल्लाते हैं जैसे हम उनके घर में अनाधिकार प्रवेश कर रहे हों। आवाज भी इतनी तीखी कि कानों में चुभती हुई सी प्रतीत होती है। बार-बार काम करते लोगों के सर पर चक्कर लगा-लगा कर चीखते रहते हैं दोनो मियां बीवी। इतना ही नहीं कई बार उड़ते-उड़ते निवृत हो स्टाफ के सिरों और कागजों पर अपने हस्ताक्षर कर जाते हैं। उनके घोंसले के ठीक नीचे फोटो-कापियर और टाइप मशीनें पड़ी हैं। जिन्हें रोज गंदगी से दो-चार होना पड़ता है। अब जैसे अभिभावक हैं, उनका नौनीहाल या नौनीहालिनी जो भी है, वैसा ही है। साहबजादे/दी रोज ही घूमने निकले होते हैं। तीन-चार दिन पहले टाइप मशीन में फंसे बैठे थे, किसी तरह हटा कर उन्हें ऊपर रखा गया। दो दिन
पहले पता नहीं कैसे फोटो-कापियर में घुस गये, वह तो अच्छा हुआ कि चलाने वाले ने मशीन साफ करते समय उनकी झलक पा ली, नहीं तो वहीं 'बोलो हरि' हो गयी होती। बड़ी मुश्किल से आधे घंटे की मशक्कत के बाद उन्हें बाहर निकाला जा सका।

इनकी करतूतों से सभी भर पाए हैं और इनके जाने का इंतजार कर रहे हैं। जिससे फिर साफ-सफाई कर इस "नर्सिंग होम" को बंद किया जा सके। पर इस सबसे एक बात तो साफ हो गयी कि चिड़ियों में भी इंसानों जैसी आदतें होती हैं। कोई शांत स्वभाव का होता है, कोई सफाई पसंद और कोई गुस्सैल, चिड़चिड़ा और झगड़ालू।
आपका कोई एक्सपेरीयेंस है ? (-:

29 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

ये भी हमारे जैसे ही निकले.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मानव संगति का असर 😃

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने. इसी लिये ये इंसानों के बीच रहना ज्यादा पसंद करती है.
#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०२२

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ताऊ जी,
स्नेह बना रहे

संगीता पुरी ने कहा…

आभार आपका ... अन्तर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स डे की शुभकामनायें .....

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

मनुष्य का अर्थ अगर व्यापक अर्थों में लिया जाये तो जिसमें मानवता की भावना सन्निहित हो वही मनुष्य है ..... चिड़ियाँ भी अपने मधुर स्वर से कुछ ऐसे ही भाव प्रवहमान करती हैं ......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-07-2016) को "ब्लॉगिंग से नाता जोड़ो" (चर्चा अंक-2653) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

संगीता जी,
एक बार फिर शुरू हुई इस सकारात्मक हलचल के लिए मंगलकामनाएं

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

निवेदिता जी,
'कुछ अलग सा' पर आपका सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शास्त्री जी,
आभार। आप तो सदा ही ब्लॉगिंग की बेहतरी के लिए प्रयासरत रहे हैं।

vandana gupta ने कहा…

सही कहा लेकिन हम तो कहेंगे
ताऊ के डंडे ने कमाल कर दिया
ब्लोगर्स को बुला कमाल कर दिया

#हिंदी_ब्लोगिंग जिंदाबाद
यात्रा कहीं से शुरू हो वापसी घर पर ही होती है :)

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

वंदना जी,
स्वागत है। आज के दिन के इंतजार में मैं तो खरामा-खरामा चलता ही रहा। कभी तन्हाई भी मिली पर ज्यादातर असीम स्नेह मिलते रहने से हौसला बना रहा

Udan Tashtari ने कहा…

:)

सार्थक लेखन.....अंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद.. आज पोस्ट लिख टैग करे ब्लॉग को आबाद करने के लिए
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

समीर जी,
हार्दिक धन्यवाद । अब कारवां चलता रहे यही कामना है

Onkar ने कहा…

वाह, एक अलग सी पोस्ट

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ओंकार जी,
हार्दिक धन्यवाद

Khushdeep Sehgal ने कहा…

जय हिन्द...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

@जय हिन्दी_ब्लॉगिंग.......ब्लॉगर जिंदाबाद
:
बस.. अब टिके रहें :-)

Satish Saxena ने कहा…

आपके शब्द प्रभावशाली हैं , लिखते रहें

जाने कितने ही बार हमें, मौके पर शब्द नहीं मिलते !
बरसों के बाद मिले यारो,इतने निशब्द,नहीं मिलते ! -सतीश सक्सेना
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सतीश जी,
सदा स्वागत है, आपका

राजीव कुमार झा ने कहा…

गोरैया जैसी चिड़िया लगती है.अब तो ये इंसानों से भी दूर भागने लगी हैं.बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है आपने.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शहरों में कबूतर तथा गौरैया जैसे इक्के दुक्के पक्षी ही दिखते हैं बाकी तो सब गायब ही हो गए हैं

Jyoti Dehliwal ने कहा…

विविधता में एकता ही प्रकृति का नियम है। इसीलिए चिड़िया भी इंसानो जैसा व्यवहार करती पाई जा सकती है। सुंदर प्रस्तुति।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योति जी,यहां आप का सदा स्वागत है

Atoot bandhan ने कहा…

सही कहा आपने चिड़िया भी इंसानों जैसा व्यवहार करती है .... रोचक प्रस्तुति

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुछ अलग सा..अटूट बंधन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

प्रकृति ने क्रोध, हिंसा, द्वेष इत्यादि नकारात्मक भावों का डोज भी बिना भेद-भाव के सबको दिया हुआ है

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

हा हा !!! इनसे पीछा छूटे तो सफाई करने से पहले अगले आगुन्तकों को देख लीजियेगा। क्या पता वो भोले भाले निकले। मैं जब मुंबई में रहता था तो उधर भी कमरे के एक कोने में ऐसा ही था। जब तक उधर रहे तब तक जोड़े आते रहे। सभी भले मानस थे इसलिए मेरा अनुभव तो अभी तक सही रहा है।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…


विकास जी
इनसे डर कर, अब बिन किराए भी, जगह देनी ही बंद कर दी है :)

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