जैसे देवों के देव् महादेव हैं वैसा ही मंत्रों में सबसे शक्तिशाली उनका मंत्र "महामृत्युंजय मंत्र" है। इसके जाप से भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं। मान्यता और आस्था है कि इसका जाप करने से अकाल मृत्यु टल जाती है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की कृपा से जीवन पा लेता है.....
सावन के पावन माह का सोमवार है। प्रभू शिव का दिवस। जैसे देवों के देव् महादेव हैं वैसा ही मंत्रों में सबसे शक्तिशाली उनका मंत्र "महामृत्युंजय मंत्र" है। इसके जाप से भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं। मान्यता और आस्था है कि इसका जाप करने से अकाल मृत्यु टल जाती है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है। महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां बरतनी चाहिएं, जैसे -
महाम़त्युंजय मंत्र का जाप करते समय उसके उच्चारण ठीक ढंग से यानि शुद्ध रूप से होना चाहिए ।
इस मंत्र का जाप एक निश्चित संख्या का निर्धारण कर करना चाहिए।
मंत्र का जाप करते मन में या धीमे स्वर में करना चाहिए।
मंत्र पाठ के समय माहौल शुद्ध होना चाहिए।
इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करना अच्छा माना जाता है।
खुद पर पूरा भरोसा ना हो तो किसी विद्वान पंडित से ही इसका जाप करवाया जाए तो लाभप्रद रहता है। कारण हमारे मंत्र और श्लोक इत्यादि अपने में गुढार्थ लिए होते हैं। इनका उपयोग करने की शर्त होती है कि इनका उच्चारण शुद्ध और साफ होना साहिए। बहुत कम लोग ऐसे मिलते हैं जो उन्हें पढने या जाप करने के साथ-साथ उसका अर्थ भी पूरी तरह जानते हों, नहीं तो मेरे जैसे, जैसा रटवा दिया गया या पढ-सीख लिया उसका वैसे ही परायण कर लेते हैं।
रही बात "महामृत्युंजय मंत्र" की तो कादम्बिनी पत्रिका मे डा.एस.के.आर्य जी द्वारा इस मंत्र का भावार्थ पढ़ने को मिला था, सबके हित के लिए उसे यहां दे रहा हूं।
"ओ3म् त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माsमृतात्।।"
भावार्थ :- हम लोग, जो शुद्ध गंधयुक्त शरीर, आत्मा, बल को बढाने वाला रुद्र्रूप जगदीश्वर है, उसी की स्तुति करें। उसकी कृपा से जैसे खरबूजा पकने के बाद लता बंधन से छूटकर अमृत तुल्य होता है, वैसे ही हम लोग भी प्राण और शरीर के वियोग से छूट जाएं, लेकिन अमृतरुपी मोक्ष सुख से कभी भी अलग ना होवें। हे प्रभो! उत्तम गंधयुक्त, रक्षक स्वामी, सबके अध्यक्ष हम आपका निरंतर ध्यान करें, ताकि लता के बंधन से छूटे पके अमृतस्वरूप खरबूजे के तुल्य इस शरीर से तो छूट जाएं, परंतु मोक्ष सुख, सत्य धर्म के फल से कभी ना छूटें।
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