राजस्थान के कोटा शहर से करीब 20-22 की. मी. की दूरी पर हाडौती क्षेत्र के उम्मेदगंज नामक स्थान पर सुनसान सी जगह में स्थित है एक मंदिर, जिसमें माँ दुर्गा को दाढ़ देवी के नाम से पूजा जाता है ..
दाढ़ देवी ! है ना अजीब सा नाम ? पर इंसान की आस्था, विश्वास और सोच की कोई सीमा नहीं होती। उसकी इसी फ़ितरत ने ना जाने कितने पूजा-स्थलों का निर्माण, कैसे-कैसे नामों से करवाया है। ऐसी ही एक आस्था का प्रतीक है, राजस्थान के कोटा शहर से करीब 20-22 की. मी. की दूरी पर हाडौती क्षेत्र के उम्मेदगंज नामक स्थान पर सुनसान सी जगह में स्थित एक मंदिर, जिसमें माँ दुर्गा को दाढ़ देवी के नाम से पूजा जाता है। इस मंदिर का निर्माण कैथून के तंवर राजपूतों ने अपनी कबीले की देवी की आराधना के लिए करवाया था। दस भुजाओं तथा त्रिनेत्र वाली माता सिंह पर आसीन हैं। हर हाथ में आयुध हैं। नागर
शैली में चूना-पत्थर से बने इस मंदिर को बारह कलात्मक खंभों का सहारा दिया गया है। मंदिर के सामने एक हौज है जिसमें जमीन के अंदर से पानी आता है। साल के दोनों नवरात्रों में यहां मेला लगता है जिसमे भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां शिव तथा काल भैरव के भी मंदिर हैं।
शैली में चूना-पत्थर से बने इस मंदिर को बारह कलात्मक खंभों का सहारा दिया गया है। मंदिर के सामने एक हौज है जिसमें जमीन के अंदर से पानी आता है। साल के दोनों नवरात्रों में यहां मेला लगता है जिसमे भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां शिव तथा काल भैरव के भी मंदिर हैं।
दुर्गा जी के इस नाम के पीछे एक जनश्रुति चली आ रही है, कहते हैं एक बार कोटा के राजा उम्मेद सिंह की दाढ़ में भयंकर दर्द उठा। जमाने भर के इलाज करवाने पर भी उनका कष्ट कम नहीं हुआ तो उन्होंने इसी मंदिर में जा माँ दुर्गा देवी की पूजा-अर्चना की जिससे उनका रोग ख़त्म हो गया। तब उन्होंने एक और मंदिर का निर्माण करवा इस मंदिर की प्रतिमा को नए मंदिर में स्थापित करना चाहा पर उनकी लाख कोशिशों के बावजूद मूर्ति टस से मस नहीं हुई। इसे माँ की इच्छा समझ, उन्हें वहाँ से हटाने की कोशिश छोड़, वहीँ यथावत उनकी पूजा होती आ रही है।
1 टिप्पणी:
कभी-कभी धार्मिक स्थलों के नाम विशेष परिस्थितियों के तहत रख दिए जाते रहे हैं।
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