हम सब चाहते हैं कि हमें हर तरह की सहूलियत मिले, हमें हर तरह की आजादी हासिल हो, हम पर किसी तरह की बंदिश न हो, हम पर किसी भी तरह की कड़ाई लागू न हो, हमारे हक़ को छीना ना जाए। पर हम चाहते हैं कि हमारे लिए कोई और लड़े, ताकि मुसीबत आने पर हम पर कोई आंच ना आए। यानी स्वर्ग सभी जाना चाहते हैं पर मरना कोई नहीं चाहता ! मतलबपरस्ती के इस आलम में इरोम भी सोच रही होगी कि अपनी जिंदगी के बीसियों साल मैंने किनके लिए बर्बाद कर दिए !!
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संवेदनहीनता का आलम यह है कि इंसान की कीमत मोबायल फोन से भी कम हो गयी है। एक-दो दिन पहले की ही तो बात है एक शख्स को धक्का मार कर टेंपो चालक फरार होता है, एक रिक्शावाला उस घायल इंसान को
नजरंदाज कर उसका मोबायल फोन उठा यूं चल पड़ता है जैसे उसीका गिरा हो, उधर पुलिस की गाडी पता नहीं अपनी कौन सी ड्युटी पूरी करने की जल्दी में उस आदमी को देख ही नहीं पाती या देखना नहीं चाहती। बाद में पता चलता है कि यह पुलिस की नहीं उस घायल आदमी की ही गलती थी जिसने गिरते वक्त यह ध्यान नहीं रखा कि उसे एक ही थानाक्षेत्र में गिरना है। फिर जो होता है, तड़फते हुए उस घायल बदनसीब इंसान ने सड़क पर ही दम तोड़ दिया। वैसे इस अमानवता के पीछे पुलिस की छीछालेदर से बचना भी एक कारण है जिसे आम आदमी झंझट मान बैठा है। जबकी हादसे ना पूछ कर आते हैं नाहीं पहचान कर ! और यह इस तरह की अकेली घटना भी नहीं है, देश भर में महीने में ऐसे सैंकड़ों वाकये घटते रहते है जिनमें दर्जनों व्यक्ति संवेदनहीनता की वजह से अपनी जान गवां बैठते हैं।
कहने-सुनने में बुरा जरूर लगता है पर खुदगर्जी की भावना भी हम में कूट-कूट कर भरी हुई है। हम सब चाहते हैं कि हमें हर तरह की सहूलियत मिले, हमें हर तरह की आजादी हासिल हो, हम पर किसी तरह की बंदिश न हो, हम पर किसी भी तरह की कड़ाई लागू न हो, हमारे हक़ को छीना ना जाए। पर इन सब के लिए हम खुद लड़ना या आवाज बुलन्द करना या विरोध जताना नहीं चाहते। हम चाहते हैं कि हमारे लिए कोई और लड़े, हमारी ओर से कोई और आवाज उठाए, हमारे लिए कोई और विरोध जताए ताकि मुसीबत आने पर हम पर कोई आंच ना आए। यानी स्वर्ग सभी जाना चाहते हैं पर मरना कोई नहीं चाहता !!
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सो हमें भी अपने मन की बात न होने या सुनाई देने से आक्रोशित होने के बजाय सोचना जरूर चाहिए कि जैसे हमारी अपनी एक सोच है तो जरूरी नहीं कि सामने वाले की भी वैसी ही हो। उसका अपना व्यक्तित्व है, अपनी मानसिकता है, अपने विचार हैं। जरूरी नहीं कि मेल खाएं ही !
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-08-2016) को "कल स्वतंत्रता दिवस है" (चर्चा अंक-2434) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Hardik Dhanywad, Shastri ji
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