रविवार, 1 फ़रवरी 2015

गुमनाम लोग, जिनके बिना भूटान यात्रा की सफलता संदिग्ध थी

श्री रजत मंडल 
भूटान में शाकाहारी भोजन मिलना नामुमकिन तो नहीं कुछ मुश्किल जरूर है। इसलिए यह परिकल्पना सम्मलेन के संयोजकों की दूरदर्शिता ही कहलाएगी कि उन्होंने खान-पान की व्यवस्था शुरू से ही अपने साथ कर रखी थी। जिसका भार श्री रजत मंडल, श्री सुमंत वसु उनके मैनेजर श्री दीपांकर मंडल तथा दो सहयोगियों ने, जो बिहार से थे, बड़ी कुशलता-पूर्वक संभाल रखा था। जरूरत का सामान भारत से ही लेकर चला गया था। रोज की आवश्यक वस्तुएं यथा दूध, फल, सब्जी वगैरह के लिए ही भूटान के बाजारों का रुख किया जाता था। वैसे भी भारत की तुलना में भूटान में मंहगाई काफी ज्यादा है। 

थिम्फु का भोजन-कक्ष 
उतनी ठंड के बावजूद, जब हाथ-पैर जमते से लगते हों, गर्म कमरे से बाहर आना दंड-स्वरुप हो, वैसे परिस्थितियों में भी सुबह की चाय होटल के एक-एक  कमरे में उपलब्ध करवाई जाती रही। जल्दी यात्रा आरंभ होने की सूरत में भी कभी नाश्ते में विलंब नहीं होने दिया गया। कैसा भी "हेक्टिक" सफर हो दिन का खाना अपने समय पर हाजिर होता रहा। कहीं पहुंचने में कैसी भी देर हो जाए इस पूरी टीम ने रात के खाने को समय पर उपलब्ध करवाया। इस के अलावा रोज अलग-अलग सुरुचि-पूर्ण व्यंजन, वह भी ऐसे कि सभी को रास आ जाएं। इसी कारण अनजानी जगह, अनजाने वातावरण, अनजाने हवा-पानी के बावजूद सारे सदस्य पूरी तरह स्वस्थ व प्रसन्न रह सके। किसी की
तबियत ज़रा सी भी नासाज नहीं हो पाई।

इस टीम के बिना इस भूटान यात्रा की सफलता संदिग्ध ही रहती। ये सब ऐसे नींव के पत्थर साबित हुए, जिन पर बनी इमारत की तो सभी प्रशंसा करते रहे, पर इनकी मुसीबतों, इनकी तकलीफों, विपरीत परिस्थितियों में भी बिना किसी शिकायत के अपने काम को अंजाम देते रहने के बावजूद इनके कार्य को  यथोचित सराहना नहीं मिल पाई। जबकि ये लोग ऐसे प्रदेशों से आए थे जहां भूटान जैसी ठंड की कल्पना भी नहीं की जाती। फिर भी किसी को इन्होंने शिकायत का मौका नहीं दिया।                
        

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