भूटान के चतुर्थ ब्लॉगर सम्मेलन की एक ख़ास बात यह थी, जिसका जिक्र कहीं नहीं आ पाया है, कि इसके सबसे छोटे और वरिष्ठ सदस्य के बीच तकरीबन साठ साल का फर्क था। पर इस फर्क को किसी ने फर्क न मानते हुए माहौल पर फर्क नहीं पड़ने दिया।
पता नहीं क्यों ऐसा होता है कि जब कहीं जाने का मौका दरवाजे पर दस्तक देता है तो परिस्थिति रूपी कंबल शरीर को इस तरह जकड लेता है कि दरवाजा खोलने का अवसर ही निकल जाता है। पर इस बार भूटान यात्रा का प्रस्ताव मिलने पर मैंने निश्चय किया कि कंबल उतार फेकना है.......और आश्चर्य ! वह बड़ी आसानी से अलग हो एक अविस्मरणीय यात्रा का अनुभव लेने का संयोग दे गया।
भूटान के चतुर्थ ब्लॉगर सम्मेलन की एक ख़ास बात यह थी, जिसका जिक्र कहीं नहीं आ पाया है, कि इसके सबसे छोटे और वरिष्ठ सदस्य के बीच तकरीबन साठ साल का फर्क था। पर इस फर्क को किसी ने फर्क न मानते हुए माहौल पर फर्क नहीं पड़ने दिया। सबने हमउम्रों की तरह भूटान के इन चार दिनों को अपने जीवन के अमोल क्षणों की तरह संजोया।
नए जलपाईगुड़ी शहर से भूटान के फुशलिंग (Phuentsholing) को एक द्वार जोड़ता है। यदि दरवाजे के बीच खड़े हो जलपाईगुड़ी की तरफ देखें तो भारत के दूसरे शहरों की तरह का नजारा ही नजर आएगा, भीड़ भरी सड़कें, धक्कम-पेल, दो-तीन-चौ पहिए एक दूसरे को ठेलियाते हुए, ठेले वाले, मुसाफिर, उन्हीं के बीच सांड, कुत्ते, गाएं पगुराते हुए, परेशान पुलिस वाला, हार्नों का शोर, धुंआ। दूसरी तरफ एक शांत, साफ-सुथरा इलाका, न शोर न ही भीड़-भाड़ नही अफरा-तफरी। जाहिर है हमारी समस्याओं का एक अच्छा- खासा प्रतिशत बेकाबू जनसंख्या के कारण भी है। खैर अपना देश है जैसा भी है अपना है, गर्व है इस पर हम सब को।
पता नहीं क्यों ऐसा होता है कि जब कहीं जाने का मौका दरवाजे पर दस्तक देता है तो परिस्थिति रूपी कंबल शरीर को इस तरह जकड लेता है कि दरवाजा खोलने का अवसर ही निकल जाता है। पर इस बार भूटान यात्रा का प्रस्ताव मिलने पर मैंने निश्चय किया कि कंबल उतार फेकना है.......और आश्चर्य ! वह बड़ी आसानी से अलग हो एक अविस्मरणीय यात्रा का अनुभव लेने का संयोग दे गया।
सबसे छोटी सदस्य अदिति |
नए जलपाईगुड़ी शहर से भूटान के फुशलिंग (Phuentsholing) को एक द्वार जोड़ता है। यदि दरवाजे के बीच खड़े हो जलपाईगुड़ी की तरफ देखें तो भारत के दूसरे शहरों की तरह का नजारा ही नजर आएगा, भीड़ भरी सड़कें, धक्कम-पेल, दो-तीन-चौ पहिए एक दूसरे को ठेलियाते हुए, ठेले वाले, मुसाफिर, उन्हीं के बीच सांड, कुत्ते, गाएं पगुराते हुए, परेशान पुलिस वाला, हार्नों का शोर, धुंआ। दूसरी तरफ एक शांत, साफ-सुथरा इलाका, न शोर न ही भीड़-भाड़ नही अफरा-तफरी। जाहिर है हमारी समस्याओं का एक अच्छा- खासा प्रतिशत बेकाबू जनसंख्या के कारण भी है। खैर अपना देश है जैसा भी है अपना है, गर्व है इस पर हम सब को।
होटल वांग्चुक |
होटल का अंदरुनी भाग |
पर कुछ ने कल की थकान मिटाने के लिए विश्राम करना उचित समझा। कुछेक घंटों के बाद फिर एक बार सब रात के भोजन पर भोजन-कक्ष में इकट्ठा हुए, समा बंधा, गोष्ठी हुई पर सिर्फ कुछ देर के लिए, थकावट सब पर भारी पड रही थी। दूसरे दिन की तैयारी भी करनी थी। सेमीनार जो था।
समय था रात के पौने दस का, तारीख थी 15 जनवरी, दिन था गुरुवार।
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