श्री गणेशजी के जन्म से सम्बंधित कथा सब को कमोबेश मालुम है कि कैसे अपने स्नान के वक्त माता पार्वती ने अपने उबटन से एक आकृति बना उसमें जीवन का संचार कर द्वार की रक्षा करने हेतु कहा और
शिवजी ने गृह-प्रवेश ना करने देने के कारण उसका मस्तक काट दिया फिर माता के कहने पर पुन: ढेर सारे वरदानों के साथ जीवन दान दिया। इसके बाद ही वह गणनायक बने, गणपति कहलाए और सर्वप्रथम पूजनीय हुए।
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शिवजी तो देवों के देव हैं। महादेव हैं। भूत - वर्तमान - भविष्य सब उनकी इच्छानुसार घटित होता है। वे त्रिकालदर्शी हैं, भोले-भंडारी हैं, योगी हैं, दया के सागर हैं। उन्होंने बड़े-बड़े पापियों, असुरों को क्षमा-दान दिया है। उनकी इच्छा में परमार्थ ही रहता है। उनके निष्काम व निस्वार्थ भाव से किए गए हर कार्य तात्कालिक औचित्य से भरे होते हैं। वे सिर्फ एक बालक के हठ के कारण उसका अंत नहीं कर सकते। जरूर कोई और वजह इस घटना का कारण होगी। उन्होंने जो कुछ किया होगा वह जगत की भलाई के लिए ही किया होगा।
माता पार्वती ने भगवान शिव से अनुरोध किया कि वे उनके द्वारा रचित बालक को देव लोक में उचित सम्मान दिलवाएं। शिवजी पेशोपेश में पड़ गये। उन्होंने उस छोटे से बालक के यंत्रवत व्यवहार में इतना गुस्सा, दुराग्रह और हठधर्मिता देखी थी जिसकी वजह से उन्हें उसके भविष्य के स्वरूप को ले चिंता हो गयीथी। उन्हें लग रहा था कि ऐसा बालक बड़ा हो कर देवलोक और पृथ्वी लोक के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकताहै। पर पार्वतीजी का अनुरोध भी वे टाल नहीं पा रहे थे इसलिए उन्होंने उस बालक के पूरे व्यक्तित्व को ही बदल देने का निर्णय किया होगा।
भगवान शिव तो वैद्यनाथ हैं। उन्होंने बालक के मस्तक यानि दिमाग में ही आमूल-चूल परिवर्तन कर ड़ाला। एक उग्र, यंत्रवत, विवेकहीन, मष्तिष्क के स्थान पर एक धैर्यवान, विवेक-शील, शांत,
विचारशील, तीव्रबुद्धी, न्यायप्रिय, प्रत्युत्पन्न, ज्ञानवान, संयमित मेधा का प्रत्यारोपण कर उस बालक को एक अलग पहचान दे दी। उसको बुद्धिमान, ज्ञानवान, विचारवान बना इतना सक्षम कर दिया कि महर्षि वेदव्यास को भी अपना वृहद, महान और जटिल महाकाव्य की रचना करते समय उस बालक की सहायता लेनी पड़ी।
सरल ह्रदय, तुरंत प्रसन्न हो जाने, सदा अपने भक्तों के साथ रह उनके विघ्नों का नाश करने के कारण ही आज श्री गणेश अबाल-वृद्ध, अमीर-गरीब, छोटे-बड़े सब के दिलों में समान रूप से विराजते हैं। शायद ही इतनी लोक प्रियता किसी और देवता को प्राप्त हुई हो और यह सब संभव हो पाया देवाधिदेव महादेव की कृपा से।
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