इस बार आगामी जनवरी माह में "परिकल्पना" परिवार द्वारा चौथे अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन का आयोजन हमारे छोटे मगर प्यारे पड़ोसी देश भूटान में होने जा रहा है। है तो यह बेहद छोटा सा देश पर इसने अपने सुदृढ़ भविष्य के लिए जो किया है शायद वैसा करने की हम हिम्मत भी नहीं कर सकते !
पचीसों साल बंगाल में रहने और अदम्य इच्छा के बावजूद कभी देश के नक़्शे में और ऊपर स्थित सप्त बहानियों के यहां जाना संभव नहीं हो पाया, फिर शस्य-श्यामला धरती छूटने के बाद तो वहाँ जाना और भी मुश्किल हो गया था। पर इस बार आगामी जनवरी माह में "परिकल्पना" द्वारा चौथे अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन का आयोजन हमारे छोटे मगर प्यारे पड़ोसी देश भूटान में होने की वजह से मेरा एक स्वप्न जैसे साकार होने जा रहा है। है तो यह बेहद छोटा सा देश पर इसने अपने सुदृढ़ भविष्य के लिए जो किया है शायद वैसा करने की हम हिम्मत भी नहीं कर सकते। क्योंकि हम ज्यादातर भूत काल में जीते हैं, अपने गौरवमय अतीत की दुहाई देते हैं, बातें ज्यादा करना हमारा शगल है, पर जब काम करने की बारी आती है तो हम दूसरों का मुंह जोहने लगते हैं। यहां तक कि यदि कोई कुछ अच्छा करना भी चाहता है तो उसकी टांग खींचने से बाज नहीं आते। यही कारण है कि सदियों से जगद्गुरु होने का दावा करने वाला हमारा देश आज कहां आ खडा हुआ है ? चारों ओर भ्रष्टाचार, बेईमानी, चोर-बाजारी का आलम है । कारण शीशे की तरह साफ है। साफ सुथरी छवि वाले, पढ़े-लिखे, ईमानदार, देश-प्रेम का जज्बा दिल में रखने वालों के लिए सत्ता तक पहुँचना एक सपना बन गया है। धनबली और बाहुबलियों के सामने सत्ता तक पहुँचना साधारण नागरिक के लिए दुरूह कार्य हो गया है।
पचीसों साल बंगाल में रहने और अदम्य इच्छा के बावजूद कभी देश के नक़्शे में और ऊपर स्थित सप्त बहानियों के यहां जाना संभव नहीं हो पाया, फिर शस्य-श्यामला धरती छूटने के बाद तो वहाँ जाना और भी मुश्किल हो गया था। पर इस बार आगामी जनवरी माह में "परिकल्पना" द्वारा चौथे अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन का आयोजन हमारे छोटे मगर प्यारे पड़ोसी देश भूटान में होने की वजह से मेरा एक स्वप्न जैसे साकार होने जा रहा है। है तो यह बेहद छोटा सा देश पर इसने अपने सुदृढ़ भविष्य के लिए जो किया है शायद वैसा करने की हम हिम्मत भी नहीं कर सकते। क्योंकि हम ज्यादातर भूत काल में जीते हैं, अपने गौरवमय अतीत की दुहाई देते हैं, बातें ज्यादा करना हमारा शगल है, पर जब काम करने की बारी आती है तो हम दूसरों का मुंह जोहने लगते हैं। यहां तक कि यदि कोई कुछ अच्छा करना भी चाहता है तो उसकी टांग खींचने से बाज नहीं आते। यही कारण है कि सदियों से जगद्गुरु होने का दावा करने वाला हमारा देश आज कहां आ खडा हुआ है ? चारों ओर भ्रष्टाचार, बेईमानी, चोर-बाजारी का आलम है । कारण शीशे की तरह साफ है। साफ सुथरी छवि वाले, पढ़े-लिखे, ईमानदार, देश-प्रेम का जज्बा दिल में रखने वालों के लिए सत्ता तक पहुँचना एक सपना बन गया है। धनबली और बाहुबलियों के सामने सत्ता तक पहुँचना साधारण नागरिक के लिए दुरूह कार्य हो गया है।
वहीं शायद हमारी राजनीति और लाल फीताशाही का दुष्प्रभाव देख भूटान ने निचले स्तर से ही योग्य लोगों को अवसर देने के लिए कमर कस ली है। जिसके चलते उसने अपने स्थानीय निकायों के चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों के लिए भी कुछ मापदंड तय कर दिए हैं। उसके लिए पढ़े-लिखे योग्य व्यक्तियों को ही मौका देने के लिए पहली बार लिखित और मौखिक परीक्षाओं का आयोजन किया गया है। इसमें प्रतियोगियों की पढ़ने-लिखने की क्षमता, प्रबंधन के गुण, राजकाज करने का कौशल तथा कठिन समय में फैसला लेने की योग्यता को परखा जाएगा। इस छोटे से देश ने अच्छे तथा समर्थ लोगों को सामने लाने का जो कदम उठाया है, क्या हम उससे कोई सीख लेने की हिम्मत कर सकते हैं ?
1 टिप्पणी:
चर्चा-मंच का हार्दिकआभार
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