इसकी माया बड़ी विचित्र होती है। जनता की शुभ्र-धवल गाढ़ी कमाई को जब धीरे-धीरे इकट्ठा कर कोई अपने कब्जे में करता है तो उस धन की रंगत भी सफेद से धूसर हो जाती है। पर यह अपने स्वामी को उसकी तनख्वाह से ज्यादा प्रिय होता है, ठीक कढ़े हुए दूध की रबड़ी की तरह।
धन या पैसे इत्यादि का जब जिक्र होता है तो दो तरह की दौलत की बात होती है। सफेद धन और काला धन। सफेद-गोरा-चिट्टा धन वह होता है जिसे मेहनत की कमाई समझा जाता है। उसे आदमी बेखौफ प्रदर्शित करता है, काम में लाता है, जो सबको दिखाई पड़ता है। इसके स्वामी के सिवा इसके ज्यादा-कम होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है नाही किसी की भृकुटि टेढ़ी होती है ।
काला धन वह कहलाता है जिसे उसका मालिक धो-पौंछ कर अच्छी तरह "पैक" कर किसी सुरक्षित स्थान या इदेश-विदेश में संभाल कर रख देता है, ज्यादातर यह किसी काम का नहीं होता, हाँ इसके साथ आईं आशंकाओं के कारण इसके मालिक का रक्त-चाप भले ही बढ़ा रहता हो पर उसका आत्म-बल और गुमान सातवें आसमान पर विचरण करता रहता है। वैसे यह तो एक जगह बंद पड़ा बिसूरता रहता है पर इसका मालिकाना हक़ सदा चलायमान रहता है।
इनके अलावा भी एक धन होता है, तीसरी तरह का धन। जो सफेद और काले का मिश्रण होता है इसे "धूसर धन या ग्रे मनी" कहा जा सकता है। इसमें ऊपर उल्लेखित दोनों धनों के गुण मौजूद होते हैं। इसे अपने देश में ही संजो कर पर छिपा कर रखा जाता है। इसकी माया बड़ी विचित्र होती है। जिस तरह सफेद दूध कढते-कढते अपनी रंगत खो कर कुछ गुलाबी-पीला सा हो जाता है पर उसके स्वाद में बढ़ोत्तरी हो जाती है, उसी तरह जनता की शुभ्र-धवल गाढ़ी कमाई को जब धीरे-धीरे इकट्ठा कर कोई अपने कब्जे में करता है तो उस धन की रंगत भी सफेद से धूसर हो जाती है। पर यह अपने स्वामी को उसकी तनख्वाह से ज्यादा प्रिय होता है, ठीक कढ़े हुए दूध की रबड़ी की तरह। यह ज्यादातर सरकारी आबूओं-बाबूओं, इंजीनियरों, चपरासियों या रसूखदार लोगों के पास उनके घरों की दिवार-फर्श-बिस्तर इत्यादि में सहेजा रहता है। कई भक्त तो इसे ही असली लक्ष्मी मान अपने घर में बने देवस्थान में मूर्तियों के पीछे-नीचे छिपाने में भी गुरेज नहीं करते। पर ऐसा धन अपने मौसेरे भाई, काले धन की तरह किसी एक जगह समाधी लगा कर बैठा नहीं रह सकता। इसकी खुद को उजागर करने की बुरी आदत है। इसकी यही "उजागरनेस" इसे इकट्ठा करने वाले को धर-दबोचवा देती है किसी न किसी "रेड" में।
इसकी मासूमियत ही इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी तादाद काले धन से कई गुना ज्यादा होने के बावजूद, लोग काले धन के पीछे ही हाथ धो कर पड़े रहते हैं, इसके नाम पर हाय-तौबा नहीं मचाते। जैसे आजकल फिल्मों में नायकों की इज्जत रखने के लिए उनके खलनायकी के रोल को नकारात्मक न कह कर "ग्रे शेड" वाला रोल कहते हैं वैसा ही कुछ चरित्र इस प्रकार के धन का भी होता है। यह इकठ्ठा होते समय तो बड़ा मजा देता है पर इसका मजा लेने पर पिटाई और बेइज्जत भी बहुत करवाता है।
धन या पैसे इत्यादि का जब जिक्र होता है तो दो तरह की दौलत की बात होती है। सफेद धन और काला धन। सफेद-गोरा-चिट्टा धन वह होता है जिसे मेहनत की कमाई समझा जाता है। उसे आदमी बेखौफ प्रदर्शित करता है, काम में लाता है, जो सबको दिखाई पड़ता है। इसके स्वामी के सिवा इसके ज्यादा-कम होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है नाही किसी की भृकुटि टेढ़ी होती है ।
काला धन वह कहलाता है जिसे उसका मालिक धो-पौंछ कर अच्छी तरह "पैक" कर किसी सुरक्षित स्थान या इदेश-विदेश में संभाल कर रख देता है, ज्यादातर यह किसी काम का नहीं होता, हाँ इसके साथ आईं आशंकाओं के कारण इसके मालिक का रक्त-चाप भले ही बढ़ा रहता हो पर उसका आत्म-बल और गुमान सातवें आसमान पर विचरण करता रहता है। वैसे यह तो एक जगह बंद पड़ा बिसूरता रहता है पर इसका मालिकाना हक़ सदा चलायमान रहता है।
इनके अलावा भी एक धन होता है, तीसरी तरह का धन। जो सफेद और काले का मिश्रण होता है इसे "धूसर धन या ग्रे मनी" कहा जा सकता है। इसमें ऊपर उल्लेखित दोनों धनों के गुण मौजूद होते हैं। इसे अपने देश में ही संजो कर पर छिपा कर रखा जाता है। इसकी माया बड़ी विचित्र होती है। जिस तरह सफेद दूध कढते-कढते अपनी रंगत खो कर कुछ गुलाबी-पीला सा हो जाता है पर उसके स्वाद में बढ़ोत्तरी हो जाती है, उसी तरह जनता की शुभ्र-धवल गाढ़ी कमाई को जब धीरे-धीरे इकट्ठा कर कोई अपने कब्जे में करता है तो उस धन की रंगत भी सफेद से धूसर हो जाती है। पर यह अपने स्वामी को उसकी तनख्वाह से ज्यादा प्रिय होता है, ठीक कढ़े हुए दूध की रबड़ी की तरह। यह ज्यादातर सरकारी आबूओं-बाबूओं, इंजीनियरों, चपरासियों या रसूखदार लोगों के पास उनके घरों की दिवार-फर्श-बिस्तर इत्यादि में सहेजा रहता है। कई भक्त तो इसे ही असली लक्ष्मी मान अपने घर में बने देवस्थान में मूर्तियों के पीछे-नीचे छिपाने में भी गुरेज नहीं करते। पर ऐसा धन अपने मौसेरे भाई, काले धन की तरह किसी एक जगह समाधी लगा कर बैठा नहीं रह सकता। इसकी खुद को उजागर करने की बुरी आदत है। इसकी यही "उजागरनेस" इसे इकट्ठा करने वाले को धर-दबोचवा देती है किसी न किसी "रेड" में।
इसकी मासूमियत ही इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी तादाद काले धन से कई गुना ज्यादा होने के बावजूद, लोग काले धन के पीछे ही हाथ धो कर पड़े रहते हैं, इसके नाम पर हाय-तौबा नहीं मचाते। जैसे आजकल फिल्मों में नायकों की इज्जत रखने के लिए उनके खलनायकी के रोल को नकारात्मक न कह कर "ग्रे शेड" वाला रोल कहते हैं वैसा ही कुछ चरित्र इस प्रकार के धन का भी होता है। यह इकठ्ठा होते समय तो बड़ा मजा देता है पर इसका मजा लेने पर पिटाई और बेइज्जत भी बहुत करवाता है।
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-12-2014) को "कोहरे की खुशबू में उसकी भी खुशबू" (चर्चा-1828) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी, स्नेह बना रहे
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