एक नई-नई बनी माँ अपने छुटके को जिसे शायद ही माँ या पापा तक कहना आता हो, "हगी" पहनाते समय गा-गा कर समझाती है कि पहले राइट लेग उठाओ, फिर लेफ्ट लेग उठाओ फिर अपने "बम" पर चढ़ाओ.......!
बहुत दिनों बाद ठाकुर जी का मेरे यहां आना हुआ। पर कुछ उखड़े-उखड़े लग रहे थे, ठंड के बावजूद पहले की तरह आते ही चाय की फरमाईश नहीं की। मैंने ही कहा, अच्छे वक्त पर आए चाय बन ही रही है, पर आज मूड ठीक नहीं लग रहा, क्या हो गया ? पर वे अनमने से बने रहे, लगा जैसे बात शुरू करने का कोई छोर ढूँढ रहे हों। तभी चाय आ गयी, उसने माहौल सामान्य करने में अपना पूरा योगदान दिया। तब तक वे भी प्रकृतिस्त हो चुके थे, बोले मंदिर से आ रहा हूँ। मुझे कुछ अजीब सा लगा कि मंदिर जाने से इनका मन परेशान क्यों हो गया, पर मैं बोला कुछ नहीं, उनके बोलने का इंतजार करता रहा। चाय खत्म कर प्याला रख मुझे देखते हुए बोले, शर्मा जी, क्या आपने कभी आजकल की बातचीत में प्रयोग होने वाली भाषा पर ध्यान दिया है ? मुझे लगा वो 'हिंग्लिश' के बारे में बोलना चाहते हैं। पर अपनी तरफ से कुछ न कहते हुए मैंने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि उन पर डाले रखी। तब उन्होंने अपने दिल की बात कहनी शुरू की, बोले मंदिर से दर्शन कर निकल ही रहा था कि अंदर दाखिल होती एक कन्या की पूजा की सामग्री किसी कारणवश गिर गयी, जिसके गिरते ही उसके मुंह से निकला "शिट"……, सोचा कि उससे पूछूं कि इस शब्द का अर्थ तुम्हें मालुम भी है, पर फिर खिन्न मन लिए आप के पास चला आया। अब आप ही बताइये कि इन अर्ध-शिक्षितों को, जो मुस्कुराते हुए कहते हैं कि उनको हिंदी नहीं आती और उनकी इस बात पर उनके अभिभावक भी गर्व करते हैं, पर क्या वे कभी ध्यान देते हैं कि उनके नौनिहाल या 'नौनिहालिनियों' की पकड़ अंग्रेजी पर भी पच्चीस-पचास शब्दों से ज्यादा नहीं है। ऐसों को ना ढंग से हिंदी आती है नाही अंग्रेजी। खिचड़ी भाषा में बतियाते हुए अपने आप को मॉडर्न दिखाने के चक्कर में साधारण से 'ओह' की जगह जबरन 'आउच' उच्चारते ये कैसे अस्वाभाविक लगते हैं, ये इन्हें नहीं मालूम।
मैंने कहा, ठाकुर जी, क्यों परेशान होते हैं, आज का दौर ही ऐसा हो गया है। आप किसी भी प्रांत से निकलने वाले हिंदी के अखबार को उठा लें, सिनेमा को देख लें, टेलीविजन का जायजा ले लें, किसी सेमिनार में भाग ले लें, सब जगह ऐसी ही भाषा का इस्तेमाल होने लग गया है। इसमें वैसे कोई ख़ास बुराई भी नहीं है।
ठाकुर जी बोले, मैं दूसरी भाषा के शब्दों के उपयोग पर आपत्ति नहीं उठा रहा हूँ, मेरी परेशानी बात-चीत में अपशब्दों के प्रयोग से, वह भी बिना स्थान परिवेश या सामने वाले की उपस्थिति को देख उगल देने से है।आप तो टी. वी. बहुत कम देखते है, फिर भी शायद देखा होगा कि एक नई-नई बनी माँ अपने छुटके को जिसे शायद ही माँ या पापा तक कहना आता हो, "हगी" पहनाते समय गा-गा कर समझाती है कि पहले राइट लेग उठाओ, फिर लेफ्ट लेग उठाओ फिर अपने "बम" पर चढ़ाओ.......!
अब आप ही बताइये कि यह सब क्या है ? मैं यह भी जानता हूं कि कुछ लोग मुझे दकियानूस समझते हैं पर क्या बिना नंगाई या बेहयाई पर उतरे बिना बातचीत संभव नहीं है ? ख़ास कर घर-घर तक पहुँच रखने वाले दृश्य मीडिया को तो अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। हर जगह फूहड़ता का बोल-बाला हो गया है। इस पर विडंबना ये है कि अपने को सही साबित करने के लिए ये जनता की पसंद की दुहाई देने लग जाते हैं।
तभी उनके फोन की घंटी बज उठी, भाभी जी का था, इनके अभी तक घर न पहुँचने से ज़रा चिंतित थीं। ठाकुर जी तो चले गए पर अपनी बातों से मुझे सोच में डाल गए, तो मैंने सोचा कि आपसे पूछ कर देख लूँ कि आपका क्या विचार है ? क्या यह एक अस्थाई दौर है या सचमुच कोई सोचनीय अवस्था दस्तक दे रही है ?
बहुत दिनों बाद ठाकुर जी का मेरे यहां आना हुआ। पर कुछ उखड़े-उखड़े लग रहे थे, ठंड के बावजूद पहले की तरह आते ही चाय की फरमाईश नहीं की। मैंने ही कहा, अच्छे वक्त पर आए चाय बन ही रही है, पर आज मूड ठीक नहीं लग रहा, क्या हो गया ? पर वे अनमने से बने रहे, लगा जैसे बात शुरू करने का कोई छोर ढूँढ रहे हों। तभी चाय आ गयी, उसने माहौल सामान्य करने में अपना पूरा योगदान दिया। तब तक वे भी प्रकृतिस्त हो चुके थे, बोले मंदिर से आ रहा हूँ। मुझे कुछ अजीब सा लगा कि मंदिर जाने से इनका मन परेशान क्यों हो गया, पर मैं बोला कुछ नहीं, उनके बोलने का इंतजार करता रहा। चाय खत्म कर प्याला रख मुझे देखते हुए बोले, शर्मा जी, क्या आपने कभी आजकल की बातचीत में प्रयोग होने वाली भाषा पर ध्यान दिया है ? मुझे लगा वो 'हिंग्लिश' के बारे में बोलना चाहते हैं। पर अपनी तरफ से कुछ न कहते हुए मैंने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टि उन पर डाले रखी। तब उन्होंने अपने दिल की बात कहनी शुरू की, बोले मंदिर से दर्शन कर निकल ही रहा था कि अंदर दाखिल होती एक कन्या की पूजा की सामग्री किसी कारणवश गिर गयी, जिसके गिरते ही उसके मुंह से निकला "शिट"……, सोचा कि उससे पूछूं कि इस शब्द का अर्थ तुम्हें मालुम भी है, पर फिर खिन्न मन लिए आप के पास चला आया। अब आप ही बताइये कि इन अर्ध-शिक्षितों को, जो मुस्कुराते हुए कहते हैं कि उनको हिंदी नहीं आती और उनकी इस बात पर उनके अभिभावक भी गर्व करते हैं, पर क्या वे कभी ध्यान देते हैं कि उनके नौनिहाल या 'नौनिहालिनियों' की पकड़ अंग्रेजी पर भी पच्चीस-पचास शब्दों से ज्यादा नहीं है। ऐसों को ना ढंग से हिंदी आती है नाही अंग्रेजी। खिचड़ी भाषा में बतियाते हुए अपने आप को मॉडर्न दिखाने के चक्कर में साधारण से 'ओह' की जगह जबरन 'आउच' उच्चारते ये कैसे अस्वाभाविक लगते हैं, ये इन्हें नहीं मालूम।
मैंने कहा, ठाकुर जी, क्यों परेशान होते हैं, आज का दौर ही ऐसा हो गया है। आप किसी भी प्रांत से निकलने वाले हिंदी के अखबार को उठा लें, सिनेमा को देख लें, टेलीविजन का जायजा ले लें, किसी सेमिनार में भाग ले लें, सब जगह ऐसी ही भाषा का इस्तेमाल होने लग गया है। इसमें वैसे कोई ख़ास बुराई भी नहीं है।
ठाकुर जी बोले, मैं दूसरी भाषा के शब्दों के उपयोग पर आपत्ति नहीं उठा रहा हूँ, मेरी परेशानी बात-चीत में अपशब्दों के प्रयोग से, वह भी बिना स्थान परिवेश या सामने वाले की उपस्थिति को देख उगल देने से है।आप तो टी. वी. बहुत कम देखते है, फिर भी शायद देखा होगा कि एक नई-नई बनी माँ अपने छुटके को जिसे शायद ही माँ या पापा तक कहना आता हो, "हगी" पहनाते समय गा-गा कर समझाती है कि पहले राइट लेग उठाओ, फिर लेफ्ट लेग उठाओ फिर अपने "बम" पर चढ़ाओ.......!
अब आप ही बताइये कि यह सब क्या है ? मैं यह भी जानता हूं कि कुछ लोग मुझे दकियानूस समझते हैं पर क्या बिना नंगाई या बेहयाई पर उतरे बिना बातचीत संभव नहीं है ? ख़ास कर घर-घर तक पहुँच रखने वाले दृश्य मीडिया को तो अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। हर जगह फूहड़ता का बोल-बाला हो गया है। इस पर विडंबना ये है कि अपने को सही साबित करने के लिए ये जनता की पसंद की दुहाई देने लग जाते हैं।
तभी उनके फोन की घंटी बज उठी, भाभी जी का था, इनके अभी तक घर न पहुँचने से ज़रा चिंतित थीं। ठाकुर जी तो चले गए पर अपनी बातों से मुझे सोच में डाल गए, तो मैंने सोचा कि आपसे पूछ कर देख लूँ कि आपका क्या विचार है ? क्या यह एक अस्थाई दौर है या सचमुच कोई सोचनीय अवस्था दस्तक दे रही है ?
5 टिप्पणियां:
लगता तो यही है कि अंग्रेजी के अपशब्द आम बोलचाल में बहुत पकड बना चुके हैं। हालांकि स्त्रीवर्ग भी गालियां देने के मामले में तरक्की कर रहा है, फिर भी जो हिन्दी में हिचकिचाहट महसूस करते हैं वो अंग्रेजी में बोल देते हैं।
बहुत सी कॉलेज गोइंग लडकियां उन गालियों को जिनपर पुरुषवर्ग अधिकार समझता रहा फर्राटे से देने लगी हैं। और जो थोडा संकोच करते हैं वो अंग्रेजी में कहते है। ’ओह फक’ शब्द तो खूब सुना जाता है अब
सोहिल जी, अपरिपक्वता ने अपने-आप को अत्याधुनिक व बिंदास दिखाने के लिए यह तरीका अख्तियार कर लिया है।
शर्मा जी,
कुछ बरस पहले, एक बार मैंने बच्चों को टी टी खेलते हुए देखा, तो कुछ देर वहां रुक गया. जब भी उनका प्लेसमेंट या शॉट गलत जगह जा पड़ता वे एक झिड़की सा कहती "हाय शिट". कुछ देर बाद जब मुझसे रहा ना गया तो पूछ ही लिया - बेटा हमेशा आपके मुँह में यह शिट क्यों रहता है.वे समझ नहीं पाए. मैंने कहा घर जाकर डिक्शनरी देखना पता चलेगा आप लोग क्या कह रहे हो. शाम होते ही उनमें से कुछ बच्चे घर आ धमके और अपनी अनभिज्ञता पर माफी माँगते हुए -- आईंदा इस शब्द का ऐसा प्रयोग न करने के वादे कर गए. मुझे बहुत प्रसन्नता हुई.
रंगराज जी,
आपका सदा स्वागत है
Great Sir.
GK Gyan
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