ऐसी जगहों के बारे में जैसा कि अक्सर होता है इस जगह के बारे में भी लोगों के जेहन में तरह-तरह की बातें और धारणाएं घर कर चुकी हैं और यह उजाड़ और सुनसान इलाका अभिशप्त माना जाने लगा है।
दिल्ली स्मारकों का शहर है। करीब 1300 ऐतिहासिक जगहें यहां अभी भी अस्तित्व में हैं। पर इनमें से कुछ ही ऐसी हैं जिनका ढंग से रख-रखाव हो पा रहा है, बाकी तो धीरे-धीरे खंडहरों में तब्दील होती जा रही हैं। ऐसी ही एक इमारत है "भूली भटियारी का महल", जो कहने को ही महल है नहीं तो एक दीवाल और उसमें बनी कुछ कोठरियों के सिवा वहाँ कुछ नहीं बचा है।
दिल्ली स्मारकों का शहर है। करीब 1300 ऐतिहासिक जगहें यहां अभी भी अस्तित्व में हैं। पर इनमें से कुछ ही ऐसी हैं जिनका ढंग से रख-रखाव हो पा रहा है, बाकी तो धीरे-धीरे खंडहरों में तब्दील होती जा रही हैं। ऐसी ही एक इमारत है "भूली भटियारी का महल", जो कहने को ही महल है नहीं तो एक दीवाल और उसमें बनी कुछ कोठरियों के सिवा वहाँ कुछ नहीं बचा है।
करोल बाग स्थित हनुमान जी की विशाल प्रतिमा |
करोल बाग़ मेट्रो स्टेशन के पास हनुमान जी की विशाल प्रतिमा के बगल से एक रास्ता दिल्ली की 'हरी पट्टी' की ओर जाता है उसी पर लगभग 100 मी. की दूरी पर सड़क के दाहिने तरफ, पेड़ों के झुण्ड के पीछे इसके खंडहर खड़े हैं। सड़क की दाहिनी तरफ नौ-दस सीढ़ियां चढ़ इसका मुख्य द्वार पड़ता है जिससे अंदर जाते ही आठ-दस कदमों की घुमावदार जगह के बाद एक और वैसा ही दरवाजा अंदर बड़े से अहाते में पहुंचा देता है जिसकी आयताकार दीवाल में तीन छोटी-छोटी कोठरियां बनी हुई हैं। इस
अहाते के दक्षिणी भाग में फिर पांच-छह सीढ़ियां चढ़ कर इसके ऊपरी भाग में जाया जा सकता है जहां एक दरवाजे और दीवाल की ओट में एक ऐसा निर्माण है जो में शायद शौच के काम आता होगा। सारा इलाका घनी घास और झाड़-झंखाड़ से अटा पड़ा है। लगता है जैसे वर्षों से सुध न ली गयी हो। यहां सबसे विचित्र बात यहां के पेड़ों की टहनियों की बनावट है जो किसी अजगर की तरह बल खाती टेढ़ी-मेढ़ी हुई पड़ी हैं। ऐसी जगहों के बारे में जैसा कि अक्सर होता है इस जगह के बारे में भी लोगों के जेहन में तरह-तरह की बातें और धारणाएं घर कर चुकी हैं और यह उजाड़ और सुनसान इलाका अभिशप्त माना जाने लगा है। संध्या समय में अन्धेरा गहराने के पहले इस तक आने वाली सड़क को पुलिस द्वारा बंद कर दिया जाता है। सुरक्षा के लिहाज से और असामाजिक तत्वों की कारगुजारी को रोकने के लिए भी यह जरूरी है।
इस सुनसान इलाके की इस सड़क से एक्का-दुक्का ही कोई गाड़ी निकलती है। इसके अलावा न आदम न आदमजात। इमारत में भी कोई दरबान वगैरह नहीं है। पर हम जैसे ही यहां पहुंचे यह कुत्ता पता नहीं कहाँ से नमूदार हुआ और अंदर-बाहर तब तक मूक रूप से साथ लगा रहा जब तक हम यहां से विदा नहीं हो गए।
हालांकि यहां दिल्ली पर्यटन विभाग का एक बोर्ड इसकी मरम्मत की सूचना देता लगा है पर खुद उस बोर्ड की हालत भी इमारत जैसी जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है और देखने से ही लगता कि उसे खुद मरम्मत की जरुरत है।समय की मार को झेलती यह उपेक्षित और लावारिस ऐतिहासिक धरोहर कितने दिन संघर्ष कर पाएगी यह कहना मुश्किल है।
भूली भटियारी |
जीर्णोद्धार की सूचना देता बोर्ड |
प्रथम द्वार |
द्वितीय द्वार |
अहाता |
पूरा परिसर ऐसे ही भरा पड़ा है |
शौच स्थान |
दीवाल में बनी कोठरियां |
8 x 8 की कोठरी |
डाली है या एनाकोंडा |
गाइड |
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (02-11-2014) को "प्रेम और समर्पण - मोदी के बदले नवाज" (चर्चा मंच-1785) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut tochak jaanakaree...
Bahut sunder jankari va chitr ... Aabhar hame iss dharohar ke darshan karwaane ke liye ..bahut afsos hua yaha ki halaat ko dekh va padh ke.... Aabhaar !!
हमारे समाज को गुमराह करने के लिए मनगढंत कहानी बनायी है शासक जाति के लोग भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं काल्पनिक है रामायण और हनुमान भी , क्योंकि सारा शरीर आदमी का और मुँह बंदर का
शास्त्री जी, स्नेह बना रहे
कैलाश जी, हार्दिक धन्यवाद
"Pari M Shlok"
Sadaa swagat jai
सुरेश, आधी अधूरी जानकारी हसी का पात्र बना देती है । जैसे यहां सिर्फ़ पहला चित्र देख बिना विषय के बारे में जाने तुमने अपनी कुन्ठा का प्रदर्शन कर दिया !!!
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