बुधवार, 5 नवंबर 2014

लंबा इतिहास है खूनी दरवाजे का

इतनी रक्तरंजित घटनाओं का गवाह बनने का यह नतीजा निकला कि अवाम ने  इस जगह को अभिशप्त और मनहूस मान लिया और इसे "खूनी दरवाजे" का नाम अता कर दिया गया।

दरवाजे की इमारत 
दिल्ली के फिरोजशाह कोटला के पास बहादुरशाह जफ़र मार्ग के "डिवाइडर" पर एक दरवाजेनुमा इमारत खडी है। पर यह उन 14 दरवाजों में से नहीं है जिन्हें शाहजहाँ ने शाहजहांनाबाद (पुरानी दिल्ली) को दीवाल से घेरने के बाद उसमें बनवाए थे। इसका निर्माण तो वर्षों पहले 1540 में शेरशाह सूरी ने अपने राज्य के अंतर्गत आने वाले फीरोजाबाद के प्रवेश द्वार के रूप में करवाया था।  उस समय अफगानिस्तान से आने वाले व्यापारियों इत्यादि को इसी में से होकर गुजरना पड़ता था।  करीब 51 फ़ीट ऊंचे दरवाजे की तीन मंजिलें हैं जो अंदर बनी सीढ़ियों से जुडी हुई हैं। किसी अलग मकसद से बनाए
गए इस दरवाजे को और इसके बनाने वालों को भी कहाँ अंदाज था कि भविष्य में यह इमारत अभिशप्त कहलाने लग जाएगी।  

सीलबंद प्रवेश 

# इसकी बदकिस्मती तब शुरू हुई जब जहाँगीर ने अपने वालिद अकबर के नवरत्नों में से एक, अब्दुल रहीम खानखाना को अपने खिलाफ बगावत करने के दंड स्वरूप उसके  बेटों को  मरवा कर उनके शरीर को सड़ने के लिये यहां लटकवा दिया था। उसके बाद जो एक के बाद एक नृशंस घटनाएं यहां घटनी शुरू हुईं उनका अंत आज तक नहीं हो पाया है।   

# फिर नादिरशाह ने जब दिल्ली को लूटा और कत्ले-आम का हुक्म दिया तो सबसे ज्यादा रक्तपात भी इसी जगह हुआ था।

# समय के साथ जब औरंगजेब दिल्ली का शासक बना तो निरंकुश राज्य करने के लिए उसने अपने भाई दारा शिकोह को मार कर उसका सर भी यहीं टंगवा दिया था। 

# इतिहास अपने को दोहराता रहा। 22 सितम्बर 1857 को बहादुरशाह जफर के आत्मसमर्पण के बावजूद अंग्रेज कमांडर विलियम हडसन ने बहादुरशाह के तीन शहजादों, मिर्जा मुगल, मिर्जा खिज्र सुल्तान  और पोते मिर्जा अबू बकर को हुमायूँ के मकबरे से गिरफ्तार  करने के बाद अपने खिलाफ जनता के विरोध को देखते हुए हड़बड़ी में इसी जगह की सुनसानियत का फ़ायदा उठा उन्हें यहीं लाकर  उनका क़त्ल कर दिया  था।      

रख-रखाव का अभाव 
# इतने खून-खराबे के बाद भी इसकी बदनामी का अंत नहीं हुआ। देश को आजादी मिलने के पश्चात 1947 में हुए दंगों में भी इस दरवाजे पर काफी रक्तपात हुआ था। शरणार्थी शिवरों की ओर जाते अनेक लोगों को यहां  पर मौत के घाट उतार दिया गया था।


# इसे इसकी बदकिस्मती ही कहेंगे कि देश की राजधानी में स्थित होने के बावजूद 2002 में  फिर इस जगह को नापाक साबित करते हुए कुछ दरिंदों ने एक युवती के साथ यहां शर्मनाक कृत्य को अंजाम दिया।  उसी के बाद इस स्थान को पूरी तरह सील कर प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित कर  दिया गया है।   

बदहाल स्थिति 
इतनी रक्तरंजित घटनाओं का गवाह बनने का यह नतीजा निकला कि अवाम ने  इस जगह को अभिशप्त और मनहूस मान लिया और इसे "खूनी दरवाजे" का नाम अता कर दिया गया। इसे क्या कहेंगे कि जिस बहादुरशाह जफ़र के नाम पर इस मार्ग का नामकरण हुआ है उसी के शहजादों को इसी सड़क पर  क़त्ल कर दिया गया था।

आज यह दरवाजा भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक है। पर उस रख-रखाव का पूर्णतया अभाव है जो की ऐसी ऐतिहासिक धरोहरों को मिलना चाहिए। 

4 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

कमाल है कि बहुत बार इसके करीब से गुजरने के बावजूद कभी इसे इस नज़र और नज़रिए से देखा नहीं । बहुत ही कमाल की जानकारियां साझा की आपने

Manoj Kumar ने कहा…

रोचक लेख आपका !
आज बहुत सी ऐतिहासिक धरोहर ऐसी हैं जो
रख रखाव के आभाव में अपना
अस्तित्व खोती जा रही हैं !

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अजय जी, अक्सर ऐसा ही होता है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

मनोज जी, ब्लॉग पर सदा स्वागत है

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