कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी चीज को हम अक्सर देखते हैं फिर भी उसके बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते। ऐसी ही एक जानकारी जब करोल बाग मेट्रो स्टेशन के पास बनी हनुमान जी की विशाल प्रतिमा के बारे में पता लगी तो विस्मित होना स्वाभाविक ही था। इतनी बार इधर से गुजरना होता रहा पर यह नहीं पता था कि इस प्रतिमा में स्वचालन से भी कुछ होता है। दिल्ली में रहने वाले और रोज उधर से गुजरने वाले अधिकाँश लोगों को भी यह बात पता नहीं है।
कुछ दिनों पहले अपनी पोस्ट "भूली भटियारी" की खोज-खबर के सिलसिले में जब करोल बाग में यहां आना हुआ तब पता चला कि हनुमान जी की 108 फुट की यह दुनिया की सबसे बड़ी स्वचालित प्रतिमा है। हनुमान जी की छाती में उनके हाथों के पीछे श्री राम-सीता विराजमान हैं। मूर्ती के हाथ की उँगलियां स्वचालित हैं। जब वे हटती हैं तो ऐसा लगता है जैसे हनुमान जी ने अपनी छाती फाड़ कर श्री राम-सीता को प्रगट किया हो।
http://www.youtube.com/watch?v=_LO7uOVSuxE
लिंक पर प्रतिमा का स्वचालन देखा जा सकता है।
बताया जाता है कि अरसा पहले एक संत नागबाबा सेवागिरी जी महाराज घूमते-घूमते यहां आ पहुंचे। तब यहां शिवजी की धूनी और हनुमान जी की छोटी-छोटी मूर्तियां विद्यमान थीं। प्रभुएच्छा से बाबा जी का मन यहां रम गया और वे यहीं अपनी तपस्या में लीन हो गए। वर्षों की आराधना के फलस्वरूप हनुमान जी ने उन्हें दर्शन दिए और वहां एक मंदिर के निर्माण का निर्देश दिया। प्रभू के आदेशानुसार हनुमान जी की प्रतिमा और मंदिर का निर्माण 13.05.1994 से आरम्भ हुआ जो लगातार 13 वर्षों तक चलते हुए 02 अप्रैल, 2007 को सम्पन्न हुआ। हनुमान जी की प्रतिमा को नई तकनीक से बनाते हुए उसे स्वचालित रूप दिया गया है। इसमें हनुमान जी अपनी छाती फाड़ते हैं और भक्तों को भगवान श्री राम व सीताजी के दर्शन होते हैं। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए अपार जन समूह के उमड़ने से होने वाली दिक्कतों को देखते हुए मंदिर के ट्रस्ट ने इस स्वचालन की क्रिया को केवल मंगलवार व शनिवार को प्रातः 8.15 बजे और सांय 8.15 बजे के लिए निर्धारित कर दिया है।
बाबाजी ने ज्वालाजी, हिमाचल प्रदेश, से माँ की ज्योति 30 मार्च, 2006 को यहां लाकर स्थापित की जो तबसे निरन्तर प्रज्जवलित है। समय के साथ-साथ मंदिर का विस्तार होता चला गया और अब शिव जी की धूनी के अलावा माँ वैष्णव देवी, शनि देव के साथ ही शिरडी के सांई बाबा के दर्शन भी यहां भक्तों को उपलब्ध हैं।
अपने संकल्पानुसार सेवागिरी महाराज मंदिर निर्माण कार्य पूरा होते ही 25 जनवरी, 2008 को अपना शरीर त्याग कर प्रभू की शरण में चले गये। मंदिर में उसी स्थान पर उनकी समाधि बना दी गयी जहां अब हर वर्ष 25 जनवरी के दिन उनकी याद में भण्डारा कराया जाता है।
तो यदि अभी तक सिर्फ मेट्रो रेल के अंदर से या सड़क मार्ग से गुजरते हुए ही इनके दर्शन किए हों तो अब ज़रा रुक कर इसकी भव्यता को निहारें और कोशिश करें की समयानुसार मंगल या शनिवार को सुबह या शाम 8. 15 पर वहाँ पहुँच प्रतिमा का स्वचालन देख सकें।
4 टिप्पणियां:
अद्भुत जानकारी ...
मानस मंदिर बनारस में बचपन से ऐसी प्रतिमा देख रहा हूँ। इसकी तुलना में बहुत छोटी है लेकिन स्वचालित है।
अर्चना जी, ब्लॉग पर सदा स्वागत है
देवेंद्र जी, स्नेह बना रहे
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