मंगलवार, 3 जून 2014

आंधी ने दिल्ली वासियों की झंड कर दी.

शाम पांच बजे की हालत

पिछले शुक्रवार को एक अजीब से नाम की फ़िल्म आई, "कुक्कु माथुर की झंड हो गयी." अब उस फ़िल्म का या कुक्कु का क्या हुआ पता नहीं पर उसी दिन शाम को एक प्रचंड आंधी ने दिल्ली वासियों की झंड जरूर कर दी. शाम पांच बजे ही अन्धेरा छा गया. 

रहवासियों की हवा बंद कर हवा तो गुजर गयी पर सवा घंटे के उस प्राकृतिक प्रकोप ने सब उथल-पुथल कर दिया। ख़ासकर दक्षिणी-पश्चिमी दिल्ली वालों की तो नींद हराम हो गयी. चार रातों तक बिजली की आँख-मिचौली को देखते-झेलते रहे सब. बीच-बीच में 15-30 मिनटों के लिए झलक दिखलाती भी थी तो ठीक वैसे ही असर होता था जैसे तपते तंदूर पर डोसा बनाने वाले तवे पर पानी छिड़कने का होता है। 

बचाव की जद्दोजहद 
जितने भी सुविधा प्रदान करने वाले उपकरण थे सब मुंह बाए हाथ खड़े किए पड़े थे। बच्चे, बुजुर्ग और रुग्ण लोगों के लिए तो यह आफत प्रलयंकारी थी। काम पर जाने वालों की और भी मुसीबत थी, नींद पूरी न होने की वजह से ज्यादातर लोग अस्वस्थता महसूस कर रहे थे। पर कल रात के करीब दो बजे से हालात कुछ ठीक लगने लगे हैं, हालांकि अभी भी संशय बना हुआ है कि कहीं फिर यह गायब न हो जाए. फिर भी गाड़ी को जल्दी पटरी पर लाने के लिए बिजली-कर्मी साधूवाद के पात्र हैं, नहीं तो अखबारों में तो एक हफ्ते भर का समय और लगने की बात कही गयी थी.

ये तो आधुनिक तकनिकी का कमाल है कि मौसम के आने और होने वाले तेवरों का पहले ही पता चल जाता है. इसके बावजूद इस आफत से कईयों की जान गयी और काफी नुक्सान भी हुआ. पर यदि ऐसी आफतों का पहले पता न चले तो उसका अंजाम सोच कर ही दिमाग की झंड हो जाती है।

2 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ravikar ji, aabhar

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आज शनिवार हो गया करीब नौ दिन पर अभी भी बिजली झटके देने से बाज नहीं आई है. कल रात दो बजे की गयी सुबह पौने दस लौटी, बताइये ये भले घर की बहू-बेटियों का आचरण है?

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