शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

धन के संरक्षक होने के बावजूद कुबेर की कहीं पूजा नहीं होती

कुबेर को धन का संरक्षक माना जाता है। पूराने मंदिरों में उनकी मुर्तियां दरवाजे पर स्थापित मिलती हैं। परंतु उन मुर्तियों में उन्हें कुरूप, मोटा और बेड़ौल ही दिखाया गया है। दिग्पाल के रूप में या यक्ष के रूप में उनका विवरण मिलता है। पर उन्हें कभी दूसरी श्रेणी के देवता से ज्यादा सम्मान नहीं दिया गया। नाहीं कहीं उनकी पूजा का विधान है। उनके पिता ऋषि विश्रवा थे, जो लंकापति रावण के भी जनक थे। हो सकता है कि रावण के कुल गोत्र का होने से उनकी उपेक्षा होती गयी हो।

धन के संरक्षक होने के बावजूद उन्हें कभी भी लक्ष्मीजी के समकक्ष नहीं माना गया। क्योंकि लक्ष्मीजी के साथ परोपकारी भावना जुड़ी हुई है। कल्याणी होने की वजह से वे सदा गतिशील रहती हैं। वे धन को एक जगह ठहरने नहीं देतीं। पर कुबेर के साथ ठीक उल्टा है। इनके बारे में धारणा है कि इनका धन स्थिर रहता है। इनमें संचय की प्रवृति रहती है (शायद इसीलिये अपने रिजर्व बैंक आफ इंड़िया के बाहर इनकी प्रतिमा स्थापित की गयी है)। उनसे परोपकार की भावना की अपेक्षा नही की जाती।

वैसे भी कुबेर के बारे में जितनी कथायें मिलती हैं उनमें इन्हें पूर्व जन्म में चोर, लुटेरा यहां तक की राक्षस भी निरुपित किया गया है। यह भी एक कारण हो सकता है कि इनकी मुर्तियों में वह सौम्यता और सुंदरता नहीं नजर आती जो देवताओं की प्रतिमाओं में नज़र आती है।

इनकी कल्पना धन का घड़ा लिये हुए की गयी है तथा निवास सुनसान जगहों में वट वृक्ष पर बताया गया है। लगता है कि इनको जो भी सम्मान मिला है वह इनके धन के कारण ही मिला है श्रद्धा के कारण नहीं। क्योंकी वह धन भी सद्प्रयासों द्वारा नहीं जुटाया गया था। इसीलिये इनकी कहीं पूजा नहीं होती।

2 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति।। वैसे आपकी बात एकदम सटीक है ,,,, आभार।।

धनतेरस और दीपावली की हार्दिक बधाईयाँ एवं शुभकामनाएँ।।

नई कड़ियाँ : भारतीय क्रिकेट टीम के प्रथम टेस्ट कप्तान - कर्नल सी. के. नायडू

भारत के महान वैज्ञानिक : डॉ. होमी जहाँगीर भाभा

Smart Indian ने कहा…

कुबेर ब्राह्मण ऋषि के पुत्र हैं, दस दिक्पालों में से एक हैं, अलकापुरी के राजा और यक्ष संस्कृति के प्रणेता हैं, सोने की लंका के निर्माता हैं। पूजनीय तो हैं ही।
दीपावली की शुभकामनायें!

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...