देश का दिल दिल्ली और दिल्ली का दिल कनाट प्लेस। हर अधुनातन चीज का केंद्र। पर इस आधुनिकता में भी कुछ ऐसा समेटे जो हमें अपने समृद्ध विगत की याद दिलाता रहता है। चाहे वह मुगल कालीन हनुमान मंदिर हो, बंगला साहब गुरद्वारा हो, जंतर-मंतर हो या फिर अग्रसेन की बावडी हो।
जी हां बावडी। एक गहरा कुआं जिसके तल तक जाने के लिए चौडी सीढियां बनी होती हैं। पुराने जमाने में पानी संरक्षित करने और रखने का एक नायाब तरीका था। राजस्थान और गुजरात के कुछ इलाकों में, जहां पानी अनमोल होता है वहां तो इन्हें मंदिर का स्थान मिला हुआ है। ऐसी ही एक 60 मीटर लम्बी और 15 मीटर चौडी, एक विशाल पर खंडहर होती बावडी, कनाट प्लेस से कुछ ही दूरी पर स्थित है। जिसे आजकल पुरातत्व विभाग का संरक्षण तो प्राप्त है पर स्थिति सोचनीय है। इसके तल तक जाने के लिए 106 सीढियां उतरनी पड़ती हैं। किसी समय इनमें से कुछ सदा पानी में डूबी रहती थीं पर अब समय की मार, बढती आबादी, आस - पास की आकाश छूती इमारतों के कारण लोगों की आँखों के साथ-साथ यहाँ का पानी भी सूख कर अपना अतीत याद कर रो भी नहीं पाता।
बावड़ी की जानकारी का तो यह हाल है कि यहाँ पहुँचने के लिए आप कनाट प्लेस में खड़े होकर भी पूछेंगे तो भी आशंका यही है कि दस में से नौ लोग अनभिज्ञता जाहिर कर दें। वैसे कनाट प्लेस से बाराखम्बा मार्ग पर चलते हुए पहली लाल बत्ती से टालस्टाय मार्ग पर दाहिने मुड़ने पर करीब 20-25 मीटर दूर एक छोटी सड़क, हैली लेन, बाएं हाथ की तरफ पड़ती है उस पर करीब 35-40 मीटर चलने पर दाएं हाथ की तरफ फिर एक गली मिलती है जो अपने साथ-साथ आपको करीब 150-200 मीटर चलवा कर, धोबी घाट होते हुए, बावड़ी तक पहुंचा देती है।
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धोबी घाट
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पहुँच मार्ग, बांई ओर बावड़ी की दिवार
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मुख्य द्वार
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प्रवेश द्वार
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अंदर का खुला दालान
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सीढ़ियों के साथ की दीवारों पर बनी मेहराबें
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दुर्दशाग्रस्त सीढ़ियां
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बदहाली का आलम
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तल और निकासी द्वार
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कुँए का अंदरूनी तल
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कुँए की दीवारें
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तल से दिखता ऊपर का छिद्र |
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बाहर निकलने से पहले
पर दुखद आश्चर्य है कि वर्षों से पानी के अक्षय स्रोत और लोगों को असहय गर्मी से निजात दिलाने वाला यह एतिहासिक महत्व का स्थान दिल्ली के बीचोबीच स्थित होने और आवागमन की हर सुविधा की उपलब्धि के बावजूद, जहां अभी तक कोई प्रवेश शुल्क भी नहीं है, अनजान और उपेक्षित सा पडा है। कभी कभार किसी स्कूल के बच्चों की शिक्षण यात्रा या आस-पास के दफ्तर के कुछ लोगों का गर्मी से राहत पाने के लिए यहां आ बैठने या एकांत खोजते जोड़ों की चुहल से यहां कुछ हलचल हो तो हो नहीं तो यहां पसरे सन्नाटे में कोई खलल नहीं पडता। अलबत्ता तो लोगों को इसके अस्तित्व की जानकारी ही नहीं है जिन्हें है भी वे भी इसे विस्मृत करते जा रहे हैं।
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2 टिप्पणियां:
सुन्दर तस्वीर खिंची है आपने। कभी अगर दिल्ली जाना हुआ तो यहाँ ज़रूर जायेंगे।। आभार जानकारी देना का !!
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एशेज की कहानी
हम तो इतने समय कनॉट प्लेस रहे, पता ही नहीं चला ..
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