इस विधा यानि ब्लागिंग के माध्यम से जितना स्नेह, अपनापन तथा हौसला आप सब की तरफ से मुझे मिला है उससे अभिभूत हूँ। कितनी अजीब सी बात है कि एक-दो दिनों में जब तक सबके नाम दिख न जाएं तो खाली-खाली सा महसूस होता है। यदि खुदा न खास्ता किसी की उपस्थिति चार-पांच दिनों तक न दिखे तो मन बरबस उसकी ओर खींचा सा रहता है। इस "अनदेखे अपनों" से हुए लगाव को क्या नाम देंगे? जबकि इन कुछ सालों में सिर्फ अपनी कूपमंडूकता के कारण बहुत कम लोगों से आमने-सामने मुलाक़ात हो पाई है। चाह कर, मौका रहते हुए भी वैसा नहीं हो पाया। पर ऐसा ही स्नेह सब से बना रहे यही कामना है।
आने वाले समय में सभी सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें।
प्रभू से यही प्रार्थना है।
8 टिप्पणियां:
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध
सुन्दर प्रस्तुति।
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प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।
भले ये सब लिखा आपने तदानुभूति हम सब चिठ्ठाकारों की ये सांझा है।
आसां नहीं है
बीती अहसास नहीं है
कुछ मुरझाये फूलों से
कमरे को सजाया है
मेरे आँगन में खिलता
अमलतास नहीं है
यूँ टूट के रह जाना
काफी तो नहीं
आने वाले कल का
ये आभास नहीं है
सशक्त भावाभिव्यक्ति अर्थ और भाव की संगती देखते बनती है। बातों को भुला देना
मेरे दर्द का तुम्हें
सरिता जी,
आभार
वीरेंद्र जी,
पूर्णतया सहमत हूँ।
आशा विश्वास मिलने की चाह बनी रहे -यही तो है अनदेखे अपनों का संसार |
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
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कालीपद जी,
मिलना चाहे जब हो, आपसी स्नेह बना रहे
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