शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

सैनिकों का मजाक उडाता एक विज्ञापन

पूरा विज्ञापन सैनिकों के जज्बे का मजाक उडाता प्रतीत होता है। युद्ध के समय तो सैनिक को किसी और चीज का होश ही नहीं रहता और यही बात उसे ‘सिविलियन’ से अलग करती है।

कुछ दिनों से एक विज्ञापन टी वी पर आ रहा है, जिसमे एक सैनिक को सीमा पर हो रही भीषण गोलाबारी के बीच भी बेहद तन्मयता से एक पैकेट से कुछ खाते हुए दिखाया गया है। इतना ही नहीं जब उसके साथी का हाथ गोली खा कर मरते हुए उसके पैकेट पर आ जाता है तो वह निरपेक्ष भाव से उसका हाथ परे कर फिर खाने मे तल्लीन हो जाता है। पर उसी समय जब एक गोली आ उसके पैकेट के चिथड़े उडा देती है तो वह गुस्से से पागल हो चिल्लाते हुए गोलीबारी के बीच खडा हो जाता है और अपनी जान गवां पैकेट के पीछे-पीछे “दफा” हो जाता है।

देख कर ही लगता है कि यह विज्ञापन एक निहायत गैर जिम्मेदाराना, अपरिपक्व, अधकचरे दिमाग की उपज है। जिसे यह नहीं मालुम कि सैनिक, चाहे वह किसी भी देश का हो उसमे यह भावना कूट-कूट कर भरी होती है कि उसके लिए सबसे अहम देश होता है और खास कर देश पर विपत्ति के समय तो उसे अपने वतन की रक्षा के सिवाय और कुछ नहीं सूझता। उसका प्रथम कर्तव्य सिर्फ देश के लिए मर-मिटना होता है।

देश में अपने विचारों को, अपनी सोच को, अपने मनोभावों को उजागर करने की आजादी है। इस पर बहुत बार चिल्लपौं भी मचती रही है। पर इस तरह की संवेदनहीन, दिमागी दिवालिएपन, स्वाभाविकता और असलियत से कोसों दूर ऐसी सोच का क्या, जिसे सिर्फ कमाई और पैसे से मतलब हो?

पूरा विज्ञापन सैनिकों के जज्बे का मजाक उडाता प्रतीत होता है। युद्ध के समय तो सैनिक को किसी और चीज का होश ही नहीं रहता और यही बात उसे ‘सिविलियन’ से अलग करती है।

इस को देख लगता है कि यह किसी ऐसे दिमाग का फितूर है जिसे देश, समाज या नैतिक मुल्यों से कोई मतलब नहीं है। उसका उद्देश्य है घटिया और फूहड़ तरीके से ध्यान आकर्षित कर कमाई करना।

17 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

शत प्रतिशत सहमत आपसे केवल कमाईकी बात दिमाग में हैं

Pallavi saxena ने कहा…

आपकी बात सही है विज्ञापन बनाने वालों का तो फंडा ही यही है बस माल बिकना चाहिए किसी कि भावनाए आहात होती हैं तो होती रहें उनकी बला से ....हो सके तो इस विज्ञापन का लिंक लगाएँ देखने कि इच्छा है आभार.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Isse bada mazaak kyaa ho saktaa hai ki sainikon ko expiery date se bhee 2 sal puraana rashan de rahe hain ? anyway, Happy new year to you !

shailshri ने कहा…

इनको सामान बेँचना है देश के मूल्योँ और सम्मान से क्या मतलब ।

दीपक बाबा ने कहा…

शत प्रतिशत सहमत

ePandit ने कहा…

आपने तो मेरे दिल की बात कह दी। मुझे भी यह विज्ञापन बहुत ही घटिया और अजीब लगा था।

किसी भाई ने फेसबुक पर बताया था कि इस विज्ञापन की शिकायत यहाँ की जा सकती है।

http://www.ascionline.org/index.php/complaints

अजय कुमार झा ने कहा…

यही बात उस विज्ञापन को देख कर हमारे मन में भी उठी थी ।कमाल की बात है कि टीवे फ़िल्म पर आने वाली सामग्री के लिए जो नियामक संस्थाएं बनी हैं वे ऐसे समय कहां चली जाती हैं। । और बाज़ार तो हावी है ही सब पर ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ा ही बेहूदा विज्ञापन है।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

जरूर विज्ञापन की कल्पना करने वाले ने उनसे सलाह ली होगी जो देशभक्तों का आयेदिन अपमान किया करते हैं... वर्तमान राजनीति में भी ऐसे चेहरे देखने को मिल जायेंगे...
जिनके बलिदान से वे स्वंत्रता भोग रहे हैं... जिनके कारण से वे सत्ता-सुख भोग रहे हैं... वे अब देश के लिये न्योछावर होने वाले लोगों को बेवकूफ समझते हैं.... वे न केवल देशभक्ति की भावना का मज़ाक बनाते हैं..बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों को बेहूदा ठहराने के लिये विज्ञापनों और फिल्मों में avsar dete हैं...

Smart Indian ने कहा…

बहुत असम्वेदनशील विज्ञापन है, किस उत्पाद का है?

Anamikaghatak ने कहा…

ham apke vicharon se sahmat hai

Archana Chaoji ने कहा…

इस तरह का विज्ञापन सोच का घटिया प्रदर्शन है..!!!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

is tarah ke vigyapanon ko kya sach me itni gambheerta se lene ki jaroorat hai? wo sainkon ka apmaan nahin kar rahe balki yah prachaarit kar rahe hain ki unke utpaad me itna damkham hai ki desh ke liye apni jaan nyochhawar kar dene waale kp bhi apne lakshya se bhatka den.. vigyaapanon me atishyokti ka pryog koi nai baat to hai nahin, fevicol ke ad nahin dekhe kya aapne? jaane bhi diziye.. pet paalne diziye unhen apna.. Mercy droppeth as the gentle rain from heaven

Atul Shrivastava ने कहा…

सच कहा।
जब पहली बार ये विज्ञापन टीवी में देखा था यह काफी बेहूदा लगा था.....
शर्मनाक.....

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

sach, piase ke pichhe bhagti vigyapan ki mayavi duniya men in mulyon ki kimat kahan......happy new year to you.

vijay patil ने कहा…

संवेदनशीलता तो छोडिये .......... उसका एहसास तक नहीं है नहीं है लोगो में !!!! इसका इलाज लाइलाज है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

Dipakji, maaf kijiegaa sahamat nahiin ho paa rahaa hoon. Atishyokti aur sanwedanshilataa me fark hotaa hai.
Khaan fevicol kahaan ye.

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