बुधवार, 14 दिसंबर 2011

'ट्रेन्स' विद लव :-)

आज सिर्फ रेलगाड़ियों से जुड़े कुछ हल्के -फुल्के क्षण

नेताजी परिवार नियोजन के सिलसिले में एक सुदूर देहात में पहुंचे तो पाया कि घरों के हिसाब से लोग बहुत ज्यादा हैं। उन्होंने मुखिया से पूछा कि गांव में घर इतने कम हैं पर आबादी इतनी ज्यादा क्यूं है? मुखिया ने जवाब दिया, मालिक यह सब रेलवे वालों का दोष है। नेताजी चकराए कि आबादी और जनसंख्या का क्या मेल। उन्होंने फिर पूछा, भाई ऐसा कैसे? मुखिया बोला, उन्होंने रेल लाईन बिल्कुल गांव के पास से निकाली है।
नेताजी की समझ में कुछ नहीं आया, बोले तो?
मुखिया ने समझाया, जनाब, रात में दो बजे एक गाडी सीटी बजाते हुए यहां से निकलती है, जिससे सारे गांव वालों की नींद टूट जाती है।
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ट्रेन कभी धीमी हो कभी तेज, फिर कभी इतनी धीमी हो जाए कि लगे रुकने वाली है। फिर पता नहीं क्या हुअ कि पूरी गाडी डगमगाने लगी, यात्री एक दूसरे पर गिरने लगे, सारा सामान ऊपर नीचे हो गया, लगा जोर का भूंकंप आ गया हो। फिर अचानक ट्रेन खडी हो गयी। लोगों ने देखा गाडी पटरी से उतर खेतनुमा जगह में खडी है। गुस्से से भरे लोगों ने उतर कर ड़्राईवर को घेर लिया और इस दुर्घटना का कारण पूछने लगे। ड़्राईवर बोला, अरे साहब पता नहीं कहां से एक पागल पटरियों पर आ गया था, कभी चलने लगता, कभी दौड़ने, कभी नाचने। परेशान कर रख दिया। भीड चिल्लाई, तो गाडी चढ़ा देनी थी उसके ऊपर।
ड्राईवर बोला 'वही तो कर रहा था'।
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दो चलाकू टाईप के आदमी दिल्ली से पटना जाने के लिए रात में जब ट्रेन के डिब्बे में चढ़े, तो पाया कि कहीं बैठने तक की जगह नहीं है। तभी उनमें से एक चिल्लाने लगा, सांप-साप, भागो-भागो। इतना सुनना था कि सारे यात्री सर पर पैर रख भाग लिए। दोंनो ने एक दूसरे को मुस्करा कर देखा और ऊपर की बर्थ पर चादर बिछा कर सो गये। सबेरे नींद खुलने पर उन्होने पाया कि गाड़ी कहीं खड़ी है, उन्होनें बाहर झाड़ु देते आदमी से पूछा कि भाई कौन सा स्टेशन है? उसने जवाब दिया, दिल्ली। अरे दिल्ली तो कल रात में थी, इन्होंने पूछा। तो जवाब मिला, साहब, कल रात इस डिब्बे में सांप निकल आया था तो इस डिब्बे को काट कर अलग कर बाकी गाडी चली गयी थी।
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संताजी का स्टेशन रात दो बजे आता था, सो वे अटैंडेंट को रात में उठाने को कह सो गये। पर जब आंख खुली तो सबेरा हो चुका था। इनका पारा गरम, जा कर अटैंडेंट का गला पकड लिया और दुनिया भर की सुना उस की ऐसी की तैसी कर दी। अटैंडेंट को चुप देख संताजी दहाडे कि बोलता क्यूं नहीं कि मुझे क्यों नहीं जगाया? अटैंडेंट बोला क्या बोलुं सर, आप तो फिर भी ट्रेन में हैं, मैं तो उस बेचारे का सोच कर परेशान हूं, जिसको मैने जबरदस्ती रात को सुनसान स्टेशन पर उतार दिया है।

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़े ही मजेदार वाक्ये।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

प्रवीण पाण्डेय जी ने देख लिया, अब ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की बारी है :)

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