शनिवार, 7 मई 2011

भगत सिंह की बेबे।

भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव ने हर्ष ध्वनी के साथ अपनी फांसी की सजा सुनी थी।
अंग्रेज भी इनकी दिलेरी पर आश्चर्यचकित थे।

फांसी का दिन आ पहुंचा था। नियमानुसार जेलर ने भगतसिंह से उनकी अंतिम इच्छा जाननी चाही तो भगतसिंह ने कहा कि मैं अपनी बेबे के हाथ की रोटियां खाना चाहता हूं। पहले तो जेलर ने समझा कि भगत अपनी मां के हाथ की रोटी खाना चाहते हैं। पर भगतसिंह ने स्पष्ट किया कि वे जेल में कैदियों की गंदगी उठाने वाली भंगी महिला के हाथ का भोजन करना चाहते हैं । जेलर हैरान , उसने पूछा कि आप उस भंगी महिला को बेबे क्यों कहते हैं? तब भगत ने जवाब दिया कि मेरी जिंदगी में दो ही महिलाओं ने मेरी गंदगी साफ की है। छुटपन में मेरी माँ ने और अब इस महिला ने। इसीलिए मैं इन दोनो को ही अपनी बेबे कहता और मानता हूं।

जब जेल की उस महिला को भगतसिंह की इस बात का पता चला तो उसकी आंखों से अविरल अश्रु-धारा बह चली। इतना बड़ा सम्मान आज तक उसे किसी ने भी तो नहीं दिया था। उसने बड़े प्यार से रोटियां बनाईं और उतने ही प्रेम से भगतसिंह ने उन्हें खाया।

भगतसिंह देश की आजादी के साथ-साथ यहां फैली ऊंच-नीच की दिवार को भी गिरा देना चाहते थे। उनका कहना था कि समाज के ढांचे को बदले बिना मनुष्य-मनुष्य के बीच की असमानता को दूर नहीं किया जा सकता।

आज अपनी कुर्सी को बचा अपना उल्लू सीधा करने वाले तथाकथित नेताओं को इन सब प्रसंगों का पता भी नहीं होगा और होगा भी तो ??????????????????????

8 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर बात कही शहीद भगत सिंह ने ओर आज के कमीने नेता इन शहिदो से अलग बात करते हे, जात पात से पुरे देश को बांट दिया, इन हरामी नेताओ ने अपनी कुर्सी बचाने के लिये, धन्य्वाद

शिवम् मिश्रा ने कहा…

कहाँ गए वह लोग ...
आप का आभार इस घटना को हम सब तक पहुँचाने के लिए !

रवि कुमार ने कहा…

बेहतर प्रस्तुति...

विवेक रस्तोगी ने कहा…

अगर यही बातें लोग याद रख लें तो एक अच्छा समाज बनाया जा सकता है।

Chetan Sharma ने कहा…

kya samay tha aur kaise log the. naman hai unko.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

राज जी, अब तक भी कोई सुधार नहीं आया है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रवि जी, सदा स्वागत है

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विवेक जी, अब तो लोग इतिहास बदलने में लगे हुए हैं

विशिष्ट पोस्ट

रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front

सैम  मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...