चीन में हजारों सालों से प्रचलित उपदेशों को करीब पांच सौ साल पहले जापान में मूर्त रूप दिया गया तीन बंदरों के द्वारा। जो अपना आंख, कान तथा मुंह ढक कर यह संदेश देते हैं कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो। इनके नाम क्रमश: इस तरह हैं :-
# मिज़ारू (बुरा मत देखो)
# कीकाजारु (बुरा मत सुनो)
# इवाज़ारु (बुरा मत कहो)
पर एक बात जो समझ में नहीं आई वह यह है कि इस उपदेश के लिए बंदरों को ही क्यों चुना गया ? आप को ज्ञात हो तो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
5 टिप्पणियां:
bander hi insano ke poorvaj mane gake hai shayad yehi bajah ho '''''''''''''
हम तो खुद बंदर हैं तो हम अपनी तारीफ़ अपने मुंह से क्या करें? मनुष्यों को माथापच्ची करने दिजिये.:)
रामराम
आखिर वो आदमी के पुरखे जो ठहरे :)
इस उपदेश के लिए बंदरों को ही क्यों चुना गया ? आप को ज्ञात हो तो !!
@ ज्ञात तो नहीं है. फिर भी गांधी जी की पसंद का कुछ तो अनुमान लगा ही सकते हैं.
— यदि कोई बात एक बन्दर को भी समझा ली तो समझो सभी बंदरों से मनवा ली. [इनमें नक़ल पॉलिसी चलती है]
— आदमी के पूर्वजों को समझा लिया तो समझो अग्रजों को भी मनवा लिया. [डार्विनवादी सोच के अनुसार]
— शास्त्रों में जिन नर,किन्नर, गन्धर्व और वानरों का उल्लेख है, उनमें वानर ...... योरोपियंस लोगों को बताया गया है.
वानर मतलब वैकल्पिक नर मतलब ऑप्शनल मैन... वहाँ की जाति नक़ल से ही अपनी सभ्यता का विकास करती आयी है.
यदि एक वानर को भी बुरा करने से रोक दिया तो समझो सभी के बुरे कार्यों पर ब्रेक लगा दी.
श्रीराम ने जिन वानरों का अपनी सेना के रूप में इस्तेमाल किया वे सभी ऋषिमूक पर्वत [यूराल पर्वत] के समीप रूस के वासी थे....
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.... बाक़ी कल्पना के घोड़े बाद में दौडाए जायेंगे.
जेसे हम नक्ललची हे हर काम मे पश्चिम की नकल करते हे, वैसे ही बंदर भी नकल करते हे, इस लिये बापू असल बंदरो को पहचान गये थे, ओर फ़िर उन्होने जापानी बंदरो की मुंडी पर भारतिया बंदर बना करे हमे दे दिये... हम भी ओर बंदर भी आज तक नकल करते हे:)
अब तो नकल डे भी मनाना चाहिये
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