वैसे तो स्वर्ग में सदा ही वसंत छाया रहता है। पर फिर भी आजकल कुछ खास दिनों को और भी मौज-मस्ती के हवाले कर दिया जाता है। स्वर्ग को स्वर्ग से भी सुंदर बनाने की हर कवायद पूरी की जाती है। सारे देवी-देवता इकट्ठा हो कर रंगरेलियों, नृत्य-गीत, रासक्रियाओं में रत हो सारी सुध-बुध भूल मस्त हो जाते हैं। इस मौके पर तीनों परम देव, ब्रह्मा, विष्णू, महेश भी सपत्निक उपस्थित रहते हैं।
आज भी सारे जने आनंद के सागर में सब कुछ भुला आकंठ ड़ूबे हुए थे। तभी विष्णूजी के चेहरे पर कुछ व्याकुलता के लक्षण उभरे। कुछ देर वे किसी सोच में ड़ूबे रहे जैसे ठीक ना कर पा रहे हों कि क्या करूं क्या ना करूं। पर फिर वे उठ कर कहीं चल दिए। सोमरस के नशे में ड़ूबे किसी भी देवता की नजर उन पर नहीं पड़ी। यहां तक कि देवी लक्ष्मी को भी उनके जाने का अहसास नहीं हो पाया। कुछ ही देर में वे वापस आ अपने स्थान पर चुपचाप बैठ गये। पर चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। कुछ देर पहले का उल्लास गायब था। थोड़ी देर बाद लक्ष्मीजी की नजर उन पर पड़ी और उनकी हालत देख वे परेशान हो गयीं। तुरंत उनके पास आ उनकी बेचैनी का सबब पूछने लगीं। स्थिति को देख और भी देवता उनके पास चले आए। सबके आग्रह करने पर विष्णूजी ने कहना आरंभ किया "काफी देर से मुझे पृथ्वी लोक से अपने भक्त की करुण पुकार आ रही थी। पर इधर उत्सव से उठ कर जाने में भी हिचकिचाहट हो रही थी। पर जब काफी देर तक वह मुझे पुकारता रहा तो अंत में मुझे जाना पड़ा। वहां पहुंचा ही था कि उसने शिकायतों के ढेर लगा दिए कि आज-कल आप हमारी परेशानियां, दुख, तकलीफ दूर करना तो अलग, पुकार भी नहीं सुनते। मैंने कहा कि ऐसा नहीं है, जरा अपनी व्यस्तता के कारण मजबूर था। वैसे तुम्हारी हालत का मुझे पता भी नहीं चल पाया नहीं तो मैं पहले ही कुछ करता। मेरा इतना कहना था कि वह भक्त आपे से बाहर हो गया, बोला "प्रभू हम ने ही देवता बनाए हैं। वही यदि हमारी सुध नहीं लेंगें तो हम उनका त्याग कर नये देवता गढ लेंगे जो हमारा दुख दर्द समझते हों, विपत्ति-कष्ट में हमारे साथ रहें, हमारी जिंदगी को कष्टमय होने से बचाएं। यह तो हमारी दरियादिली है कि सब कुछ देखते समझते भी हम अपने मुश्किल से जुटाए भोजन मे से भी आपको भोग लगाते हैं जिसे आप अपना हक समझने लग गये हैं। यदि हमारे बनाए देव हमारी ही खबर नहीं लेंगे तो उनको स्वर्ग से हटा कर किसी संग्रहालय में पटकने में भी हम देर नहीं करेंगे।" इतना कह विष्णूजी चुप हो गये।
सारे देवी-देवताओं के चेहरे फक्क पड़ गये थे। उन्हें अपना अस्तित्व और देवलोक का भविष्य संकट में पड़ता दिखने लगा था।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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4 टिप्पणियां:
ओ तेरे की। अजीब भक्त था। पी तो नहीं रखी थी।
maza aa gaya ha ha '''''
ek muskaan aa gaya chehre pe padh kar...par ise bhagwan ki taraf tiraskaar ki nazar se mat la jana chahiye...
Good one.
बहुत मजा आया .. .!धन्यवाद..
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