जो पिछले महीने की तेइस तारीख से तबीयत ढीली हो लटकने लगी तो लटकती ही चली गयी। पहले तो लगा कि ऐसे ही है ठीक हो जाएगा जैसे पहले भी होता आया था। पर इस बार अगला भी पटकनी देने के मूड़ मे था। वैसे चेतावनी तो 10-12 दिन पहले से ही मिल रही थी कि कुछ होने वाला है पर ध्यान नही दिया गया यह जानते हुए भी कि अब वो दिन नही रहे जब पसीना गुलाब था। इस बीच पाबलाजी को अंदेशा हुआ और उन्होंने फोन कर पूछा कि क्या गड़बड़ है तो उन्हें बताया कि जिद के कारण भोग भोगना पड़ रहा है।
घर के सारे जनों का छुट्टियों मे बाहर जाने का प्रोग्राम था। "इनक्लुडिंग मी"। बनाया भी मैंने ही था, तीन महीने पहले से। पर ऐन मौके पर मुंह से निकल गया कि मैं ना जा पाऊंगा, कर्म क्षेत्र में मेरा रहना जरूरी है (अब बीस दिन नहीं रहा तो जैसे काम ही बंद हो गया हो)। पर जब ब्रह्मवाक्य निकल गया तो उस पर अड़ना ही था।
कुछ दुखी, कुछ परेशान, कुछ गुस्से में सारे लोग निकल लिए और अकेले देख धर दबोचा बिमारी ने। अब लो मजा, ना जाने लायक ना रहने लायक। पर घर वाले समझदार होते हैं। समझ गये थे कि करेला नीम चढा और पंजाबी बात पर अड़ा बराबर ही होते हैं (बतर्ज पाबलाजी)। तो कुछ ऐसी परिस्थिति बनाई कि सांप भी ना मरे और लाठी भी टूट जाए। सांप को तो बाद में काम में लाया जाएगा आगामी किसी अकड़ को ढीला करवाने में।
तो सुखी-सांदी तीन को दिल्ली चला गया। हवा, पानी, धूल, मिट्टी, माहौल बदला। सुर्त आई (पंजाबी में)। राजनीति - रावण वगैरह देख, बिना दूसरे दिन जल्दि उठने की चिंता के फुटबाल को गोल-गोल करते कल लौटा हूं।
मेरा ऐसा सोचना था कि किसी के कहीं जाने-वाने से अपनी इस ब्लागिंग की दुनिया में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। किसे फुर्सत है कि देखे कौन आया कौन नहीं आया। इसीलिए मैंने कभी अनुपस्थित होने का जिक्र नहीं किया। पर इस बार ललितजी ने दूरभाष पर जब पूछा कि भाई कहां हो तीन तारीख से, तो मन में आया कि नहीं ये अनजाने देखे रिश्ते नाते महज औपचारिक नहीं हैं इनमें लगाव है, अपनत्व है, जिज्ञासा है, फिक्र है। और यह ऐसी ही बनी रहे यही तहे दिल की तमन्ना है।
तो लीजिए फिर शुरु होता है वही बैल का कोल्हू, कोल्हू का चक्कर।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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3 टिप्पणियां:
शुरु होता है वही बैल का कोल्हू,
कोल्हू का चक्कर।
स्वागत है,
तेल का पीपा तो भर ही जाएगा
हा हा हा
वही न हम भी सोच रहे थे. अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें. शुभकामनाएं.
भाजी सेहत का ख्याल सब से पहले जी, दो चार पटियाला लगा लो ...म फ़िर देखो केसे तबीयत कस जाती है आप की, शुभकामनाये हमारी तरफ़ से
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