सन 1733।
क्रेमलिन के आइवान वैलिकी के गिरजाघर में एक विशालकाय घंटे को लगाने का प्रस्ताव पास हुआ। सोचा गया कि घंटा इतना बड़ा हो कि दुनिया भर में उसकी चर्चा हो। अंत में 200 टन भार के घंटे को बनाने की सोची गयी। नक्शा बन गया। सांचा भी तैयार हो गया। घंटे को ढालने का काम भी शुरू हो गया। पर ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था। जहां घंटे की ढलाई हो रही थी उस कारखाने में भीषण आग लग गयी। सारा कुछ जल कर राख हो गया।
लगभग बन चुका घंटा भी टूट गया और कारखाने के मलबे के नीचे दब गया।
करीब सौ साल बाद फिर उसकी याद आई। राजा निकोलस के शासन काल में मलबा साफ किया गया और उस घंटे को एक चबूतरा बना उस पर स्थापित कर दिया गया। दुर्घटना में घंटे का एक टुकड़ा टूट कर अलग हो गया था, उसे भी चबूतरे पर रख दिया गया।
इस घंटे की ऊंचाई 19 फुट तथा घेरा करीब 60 फुट और इसकी दिवार की मोटाई करीब 2 फुट है। इसके अंदर इतनी जगह है कि बीस आदमी वहां खड़े हो सकते हैं। इसके ऊपर सुंदर नक्काशी की गयी है तथा बहुत सारे देवी-देवताओं के चित्र बनाए गये हैं। सबसे ऊपर रूस के राष्ट्रीय पक्षी बाज का चित्र बना हुआ है।
इस बदकिस्मत घंटे के टूट जाने के पश्चात एक दूसरा घंटा बनाया गया जिसका वजन 128 टन है। जो आज भी गिरजे के ऊपर उसी मीनार में लगा हुआ है जहां उस दुनिया के सबसे बड़े घंटे ने होना था।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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4 टिप्पणियां:
कुछ वस्तुए एवं स्थान भी अभिशप्त हो जाते हैं। यह सही है। मेरे यहां भी हैं कुछ जगहें जहां आज तक कोई टिक नहीं पाया है।
अच्छी जानकारी
आभार
क्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।
आइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !
ऐसी ही कुछ और कथाएं भी सुनी हैं जी, जो किसी ना किसी वस्तु के शापित होने का विश्वास दिलाती हैं।
कुछ भी हो सकता है।
प्रणाम स्वीकार करें
वाह सुंदर जान कारी दी आप ने धन्यवाद
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