आप मेरी और किसी बात से सहमत हों ना हों पर इस बात से तो सहमत होंगे ही कि हमें किसी भी चीज को लटकाने की आदत सी पड़ गयी है। मैं कंधे पर शाल या गले में टाई या खूंटी पर कपड़े लटकाने की बात नहीं कर रहा हूं। मैं कुछ ऊंची आदतों की बात कर रहा था। जैसे किसी योजना की शुरुआत की बात हो, सर पर मंड़राते जल संकट की बात हो, खाद्य समस्या की बात हो, दिन पर दिन फैलते आतंक की बात हो, दफ्तर में कछुए की पीठ पर रखी फाईलों की बात हो, सरहद की बात हो, आंतरिक सुरक्षा की बात हो, कोर्ट में शहतीरों से लटकते-लटकते दम तोड़ते केसों की बात हो, यह बात हो, वह बात हो कोई भी बात हो हम उसे लटकाए रखने में विश्वास करते हैं।
आजादी के बाद से शुरू हुई समस्याएं वैसे ही लटकते-लटकते फलती फूलती आ रहीं हैं। तरह तरह के नेता आये और गये, किसीने थोड़ी बहुत कोशिश की भी होगी पर ज्यादातर तो जैसे हवन के बाद लाल कपड़े में नारियल बांध कहीं लटका देते हैं वैसे ही वे भी कुछ ना कुछ नया लटका कर अपने रास्ते चल दिए या भेज दिए गये।
इस लटकन से कोई भी पीछा नहीं छुड़ा पाया। इन चारों ओर लटकती लटकनों से आम आदमी का सर टकराता रहता है। कभी-कभी लहूलुहान भी हो जाता है पर हम यह संस्कृति नहीं छोड़ते, शायद छोड़ना ही नहीं चाहते। आजादी के बाद तो यह लटकन क्रिया अमरबेल हो गयी है। किसी भी सरकारी दफ्तर में जाईए किसी काम को लेकर, पहले यही सुनाई पड़ेगा, कल आईएगा।
यह शब्द "काल होबे" याने यह काम "कल होगा" बंगाल की देन है। कहा जाता था कि आज जो बंगाल सोचता या कहता है वही बाकि देश भविष्य में कहता है। वहीं से चल कर यह "काल होबे" सारे देश का कल आईएगा बन कर अपना लिया गया है।
लीजिए एक और लटकन।
तिमारपुर्सी के लिए एक सज्जन आये हैं। बिमार का हालचाल पूछने।
तो लटक गयी ना यह भी पोस्ट.............
आजादी के बाद से शुरू हुई समस्याएं वैसे ही लटकते-लटकते फलती फूलती आ रहीं हैं। तरह तरह के नेता आये और गये, किसीने थोड़ी बहुत कोशिश की भी होगी पर ज्यादातर तो जैसे हवन के बाद लाल कपड़े में नारियल बांध कहीं लटका देते हैं वैसे ही वे भी कुछ ना कुछ नया लटका कर अपने रास्ते चल दिए या भेज दिए गये।
इस लटकन से कोई भी पीछा नहीं छुड़ा पाया। इन चारों ओर लटकती लटकनों से आम आदमी का सर टकराता रहता है। कभी-कभी लहूलुहान भी हो जाता है पर हम यह संस्कृति नहीं छोड़ते, शायद छोड़ना ही नहीं चाहते। आजादी के बाद तो यह लटकन क्रिया अमरबेल हो गयी है। किसी भी सरकारी दफ्तर में जाईए किसी काम को लेकर, पहले यही सुनाई पड़ेगा, कल आईएगा।
यह शब्द "काल होबे" याने यह काम "कल होगा" बंगाल की देन है। कहा जाता था कि आज जो बंगाल सोचता या कहता है वही बाकि देश भविष्य में कहता है। वहीं से चल कर यह "काल होबे" सारे देश का कल आईएगा बन कर अपना लिया गया है।
लीजिए एक और लटकन।
तिमारपुर्सी के लिए एक सज्जन आये हैं। बिमार का हालचाल पूछने।
तो लटक गयी ना यह भी पोस्ट.............
7 टिप्पणियां:
aap ke vichar waqy me gahre he or
isi karan to aajadi ke itne salo ke bad bhi ham itne pichhe he
बस जी लटकन ही लटकन है
देखिए ना आपके साथ हम भी लटक लिए।:)
हां!बिमार कौन है?
यह नहीं बताया आपने
लटका दिया ना सबको।:)
बढ़िया व्यंग...सब काम लटका ही देते हैं
बहुत अच्छी आदत है जी क्यो???... इसे हम ने भी लटका दिया फ़िर बतायेगे कभी फ़ुरसत मै
आदत से मजबूर है जी!
kaal kare so aaj kar,
aaj kare so ab..
Jahaan jeewan me gahraayi
nahi hai
Wahaan se jo nikle so kam !
Latke rah jaana
Aur Latkana...
Yaani jahaan ke tahaan
Rah rah jaana !
Manushya jaati ka adhikaansh
Antarik vikaas nahin chahta.
Kyon ?
एक टिप्पणी भेजें