हिमालय की तराई में एक किसान अपने परिवार के साथ रहता था। वह धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था। अपने काम-काज को निपटा कर गीता का पाठ करना उसका नित्य का काम था। उसका छोटा बेटा उसकी देखा-देखी उसी की तरह गीता पढा करता था। एक दिन बेटे ने अपने पिता से कहा कि मैं रोज गीता पढता हूं पर पुस्तक बंद करते ही सब भूल जाता हूं। कुछ समझ में भी नहीं आता है।
किसान ने उसे कुछ जवाब देने की बजाय उसे कोने में पड़ी एक कोयला रखने की टोकरी दिखाते हुए उसमें नदी से पानी भर कर लाने को कहा। लड़के ने टोकरी उठाई और नदी की ओर चल पड़ा। वहां जा कर उसने टोकरी में पानी भरा और घर की तरफ लौट पड़ा। पर घर तक आते-आते टोकरी का सारा पानी बह गया। यह देख किसान ने बेटे से कहा कि तुमने पूरी कोशिश नहीं की इसलिए टोकरी खाली हो गयी। इस बार जल्दि आने की चेष्टा करना। लड़के ने फिर टोकरी उठाई और नदी किनारे जा उसमें पानी भरा और दौड़ते हुए घर पहुंचा, पर पानी फिर बह गया। लड़के ने पिता से कहा कि टोकरी में पानी नहीं आ सकता मैं बाल्टी में पानी ले आता हूं। यह सुन किसान ने कहा कि तुम आधे-अधुरे मन से काम करते हो इसीलिए ऐसा हो रहा है। लड़का भी पिता के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहता था। उसने फिर टोकरी उठाई और नदी से पानी भर जितनी तेजी से संभव था दौड़ता हुआ घर पहुंचा। पर पानी फिर भी टोकरी से बह गया और टोकरी खाली की खाली रह गयी थी। लड़के ने टोकरी एक तरफ रखी और पिता से बोला कि यह बेकार का काम है। इसमें कोई फायदा नहीं है।
किसान अपने बेटे से बोला, तुम समझते हो कि यह बेकार का काम है, क्योंकि तुमने टोकरी की तरफ ध्यान नहीं दिया है। लड़के ने टोकरी की तरफ देखा तो आश्चर्चकित रह गया। वह कोयलों के कारण काली, गंदी हुई टोकरी बार-बार अंदर बाहर धुल कर नयी के समान चमक रही थी।
किसान ने बेटे से कहा कि जब भी तुम गीता पढते हो, भले ही तुम पूरी ना समझ पाओ या याद ना रख सको पर वह तुम्हें ऐसे ही अंदर और बाहर से स्वच्छ करती रहती है, बदलती रहती है। यही हमारी जिंदगी में प्रभू करते रहते हैं। बिना हमारे जाने। मुसीबतें हमारी जिंदगी में हमे खत्म करने नहीं आतीं वे हमें अपने जीवन पथ पर और मजबूती से आगे बढने के लिए तैयार कर जाती हैं।
किसान ने उसे कुछ जवाब देने की बजाय उसे कोने में पड़ी एक कोयला रखने की टोकरी दिखाते हुए उसमें नदी से पानी भर कर लाने को कहा। लड़के ने टोकरी उठाई और नदी की ओर चल पड़ा। वहां जा कर उसने टोकरी में पानी भरा और घर की तरफ लौट पड़ा। पर घर तक आते-आते टोकरी का सारा पानी बह गया। यह देख किसान ने बेटे से कहा कि तुमने पूरी कोशिश नहीं की इसलिए टोकरी खाली हो गयी। इस बार जल्दि आने की चेष्टा करना। लड़के ने फिर टोकरी उठाई और नदी किनारे जा उसमें पानी भरा और दौड़ते हुए घर पहुंचा, पर पानी फिर बह गया। लड़के ने पिता से कहा कि टोकरी में पानी नहीं आ सकता मैं बाल्टी में पानी ले आता हूं। यह सुन किसान ने कहा कि तुम आधे-अधुरे मन से काम करते हो इसीलिए ऐसा हो रहा है। लड़का भी पिता के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहता था। उसने फिर टोकरी उठाई और नदी से पानी भर जितनी तेजी से संभव था दौड़ता हुआ घर पहुंचा। पर पानी फिर भी टोकरी से बह गया और टोकरी खाली की खाली रह गयी थी। लड़के ने टोकरी एक तरफ रखी और पिता से बोला कि यह बेकार का काम है। इसमें कोई फायदा नहीं है।
किसान अपने बेटे से बोला, तुम समझते हो कि यह बेकार का काम है, क्योंकि तुमने टोकरी की तरफ ध्यान नहीं दिया है। लड़के ने टोकरी की तरफ देखा तो आश्चर्चकित रह गया। वह कोयलों के कारण काली, गंदी हुई टोकरी बार-बार अंदर बाहर धुल कर नयी के समान चमक रही थी।
किसान ने बेटे से कहा कि जब भी तुम गीता पढते हो, भले ही तुम पूरी ना समझ पाओ या याद ना रख सको पर वह तुम्हें ऐसे ही अंदर और बाहर से स्वच्छ करती रहती है, बदलती रहती है। यही हमारी जिंदगी में प्रभू करते रहते हैं। बिना हमारे जाने। मुसीबतें हमारी जिंदगी में हमे खत्म करने नहीं आतीं वे हमें अपने जीवन पथ पर और मजबूती से आगे बढने के लिए तैयार कर जाती हैं।
9 टिप्पणियां:
waah sahi sunder katha.
कथा बहुत ही ज्ञानप्रद और रोचक है आपका बहुत बहुत धन्यवाद इसे हम को पढवाने के लिए
ज़िन्दगी के सच को बताती प्रेरक कथा पढ़वाई आपने शुक्रिया
वाह्! बहुत ही सुन्दर एवं प्रेरणादायक कथा.....आभार
सुंदर एवम प्रेरणादायक कहानी के लिये धन्यवाद.
रामराम.
इस कथा से हमको सीख लेनी चाहिए । किसी भी कार्य को मन और ध्यान दोनों से किया जाना चाहिए ।
सुंदर कथा , सत्य वचन
बेहतरीन-प्रेरक कथा.
अति सुंदर कहानी , बहुत सुंदर विचार के संग.
धन्यवाद
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