"नोवीन दा किछू नुतून कोरो"
1866, कलकत्ता के बाग बाजार इलाके की एक मिठाई की दुकान। शाम का समय, रोज की तरह ही दुकान पर युवकों की अड्डेबाजी जमी हुई थी। मिठाईयों के दोनो के साथ तरह-तरह की चर्चाएं, विचार-विमर्श चल रहा था। तभी किसी युवक ने दुकान के मालिक से यह फर्माइश कर डाली कि नवीन दा कोई नयी चीज बनाओ। (नोवीन दा किछू नुतून कोरो)।
नवीन बोले, कोशिश कर रहा हूं। उसी कुछ नये के बनाने के चक्कर में एक दिन उनके हाथ से छेने का एक टुकड़ा चीनी की गरम चाशनी में गिर पड़ा। उसे निकाल कर जब नवीन ने चखा तो उछल पड़े, यह तो एक नरम और स्वादिष्ट मिठाई बन गयी थी। उन्होंने इसे और नरम बनाने के लिए छेने में 'कुछ' मिलाया, अब जो चीज सामने आयी उसका स्वाद अद्भुत था। खुशी के मारे नवीन को इस मिठाई का कोई नाम नहीं सूझ रहा था तो उन्होंने इसे रशोगोल्ला यानि रस का गोला कहना शुरु कर दिया। इस तरह रसगुल्ला जग में अवतरित हुआ।
कलकत्ता वासियों ने जब इसका स्वाद चखा तो जैसे सारा शहर ही पगला उठा। बेहिसाब रसगुल्लों की खपत रोज होने लग गयी। इसकी लोकप्रियता ने सारी मिठाईयों की बोलती बंद करवा दी। हर मिठाई की दुकान में रसगुल्लों का होना अनिवार्य हो गया। जगह-जगह नयी-नयी दुकानें खुल गयीं। पर जो खूबी नवीन के रसगुल्लों में थी वह दुसरों के बनाये रस के गोलों में ना थी। इस खूबी की वजह थी वह 'चीज' जो छेने में मिलाने पर उसको और नरम बना देती थी। जिसका राज नवीन की दुकान के कारिगरों को भी नहीं था।
नवीन और उनके बाद उनके वंशजों ने उस राज को अपने परिवार से बाहर नहीं जाने दिया। आज उनका परिवार कोलकाता के ध्नाढ्य परिवारों में से एक है, पर कहते हैं कि रसगुल्लों के बनने से पहले परिवार का एक सदस्य आज भी अंतिम 'टच' देने दुकान जरूर आता है। इस गला काट स्पर्द्धा के दिनों में भी इस परिवार ने अपनी मिठाई के स्तर को गिरने नहीं दिया है।
बंगाल के रसगुल्ले जैसा बनाने के लिये देश में हर जगह कोशिशें हुईं, पर उस स्तर तक नहीं पहुंचा जा सका। हार कर अब कुछ शहरों में बंगाली कारिगरों को बुलवा कर बंगाली मिठाईयां बनवाना शुरु हो चुका है। पर अभी भी बंगाल के रसगुल्ले का और वह भी नवीन चंद्र की दुकान के "रशोगोल्ले" का जवाब नहीं।
कभी कोलकाता आयें तो बड़े नामों के विज्ञापनों के चक्कर में ना आ कर बाग बाजार के नवीन बाबू की दुकान का पता कर, इस आलौकिक मिठाई का आनंद जरूर लें।
* छेना :- दूध को फाड़ कर प्राप्त किया गया पदार्थ।
* रशोगोल्ला :- रसगुल्ले का बंगला में उच्चारण।
14 टिप्पणियां:
बहुत अदभुत लेख लिखा है जो प्रभावशाली है, धन्यवाद!
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
बहुत ही सुंदर जानकारी, इतना तो सुना था की रसगुले बंगाली बहुत अच्छे बनाते है, लेकिन इस कहानी का हमे आज पता चला, वेसे आज आप दिल्ली या भारत के किसी भी इलाके मै जाये वहा आप को बंगाली की मिठठाई की दुकाने तो बहुत मिलेगी, लेकिन उन मै शायद ही कोई बंगाली काम करता होगा, अब लगता है बंगाली भी पंजाबी बहुत अच्छी सीख गये है.
धन्यवाद
राशोगुल्ला से तो परिचित हैं पर नोवीन बाबु की दुकान के बारे में जानकारी एकदम नई है. आभार.
मजेदार इतिहास बताई आपने रशोगोल्ला का, मुँह में पानी आ गया:)
आपका ब्लॉग आज पहली बार देखा....और क्या कहूँ....काफी अच्छा भी लगा.....सारा कुछ तो आज नहीं देख पाया...बेशक रसगुल्ले की कहानी में तो रस बड़ा लगा......आज रसगुल्ला....बाद में आपकी बाकी की मिठाईयाँ भी खा लूँगा...!!
ऐसा लेख लिखने से पहले लेखक ने रसगुल्ला अवश्य खाया होगा :)
Very interesting info.
Mazedaar article.
Dhanyavaad.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
रसगुल्ला शब्द और व्यंजन ऐसे बना, जानकारी रोचक लगी. बहुत आभार. कलकत्ता गये तो भाई शिव कुमार से नवीन बाबू की दुकान ले चलने की जिद्द कर डालेंगे.
बहुत प्रभावशाली लेख लिखा है, धन्यवाद
बढ़िया रोचक मीठी जानकारी दी है आपने ..धन्यवाद
रस्सोगोला इतिहास तो बता दिया अब जो मुह मे पानी आ रहा उसका क्या करे
जानकारी बड़ी मीठी है,
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
muhn me paani aa gaya rosgulle ke naam se
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