हमारा शरीर एक अजूबा है। यह इतना जटिल और विचित्र है कि इसके रहस्यों को समझ पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है। धन्य हैं वे सर्जन, डाक्टर और वैज्ञानिक जो दिन रात एक कर जुटे हुए हैं मानव शरीर के अंगों की पूर्ण जानकारी पाने के लिये जिससे आने वाले समय में मानव रोगमुक्त जीवन जी सके।
आज कान की तरफ कान देते हैं। यह हमारे शरीर की महत्वपूर्ण ज्ञानेन्द्री है। इसका संबंध आंख, नाक, गले तथा मस्तिष्क से होता है। इस पर काफी शोध हो चुका है, पर अभी भी भीतरी कान का इलाज पूर्णतया संभव नहीं हो पाया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एस.एस. स्टीवेंस के अनुसार कान के पास करीब 27000 नर्व-फाइबर्स का जमावड़ा होता है। इसीलिये कान की मालिश बहुत उपयोगी मानी जाती है। कहते हैं कि यदि आप पूरे शरीर की मालिश ना कर पायें तो सिर्फ सिर, कान और पैर के तलवों की मालिश जरूर कर लें खास कर जाड़ों में। इससे भी शरीर को स्वस्थ रहने में काफी सहायता मिलती है।
हमारे यहां तो प्राचीन काल से ही कानों में बालियां पहनने का रिवाज रहा है। इससे कान विभिन्न तरह के रोगों से बचे रहते थे। चीन के चिकित्सकों ने भी इस ओर काफी शोधकार्य कर 'एक्यूपंचर' पद्धति का प्रचलन शुरु किया था। चूंकि कान के पास की बारीक नसों का संबंध दिमाग से होता है, सो स्कूलों में जाने-अनजाने अध्यापकगण चपतियाकर, कान उमेठ कर या कान पकड़ कर उठक-बैठक करवा कर हमारी बुद्धी को चैतन्य करने में सहायक ही होते थे।
वैसे आजकल सौंदर्य विशेषज्ञ सुंदरता बढाने के लिये भी स्लैप-थेरेपी (थप्पड़ चिकित्सा) का उपयोग भी करने लग गये हैं। कहा जाता है कि इस तरह चपतियाने से खून का दौरा बढता है।
तो क्या इरादा है ? सुंदर दिखने के साथ-साथ बुद्धिमान भी कहलवाना चाहते हैं तो शुरु हो जायें आज से ही। वैसे किसी ने अपने ही कान उमेठ कर अपने ही मुंह पर चपतियाते देख लिया तो पता नहीं हम बुद्धिमान बने ना बने पर उसकी नज़र में तो कुछ और ही बन जायेंगे। सो जरा देख-भाल कर चिकित्सा शुरु करें।
इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
रणछोड़भाई रबारी, One Man Army at the Desert Front
सैम मानेक शॉ अपने अंतिम दिनों में भी अपने इस ''पागी'' को भूल नहीं पाए थे। 2008 में जब वे तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भ...
-
कल रात अपने एक राजस्थानी मित्र के चिरंजीव की शादी में जाना हुआ था। बातों ही बातों में पता चला कि राजस्थानी भाषा में पति और पत्नी के लिए अलग...
-
शहद, एक हल्का पीलापन लिये हुए बादामी रंग का गाढ़ा तरल पदार्थ है। वैसे इसका रंग-रूप, इसके छत्ते के लगने वाली जगह और आस-पास के फूलों पर ज्याद...
-
आज हम एक कोहेनूर का जिक्र होते ही भावनाओं में खो जाते हैं। तख्ते ताऊस में तो वैसे सैंकड़ों हीरे जड़े हुए थे। हीरे-जवाहरात तो अपनी जगह, उस ...
-
चलती गाड़ी में अपने शरीर का कोई अंग बाहर न निकालें :) 1, ट्रेन में बैठे श्रीमान जी काफी परेशान थे। बार-बार कसमसा कर पहलू बदल रहे थे। चेहरे...
-
हनुमान जी के चिरंजीवी होने के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए पिदुरु के आदिवासियों की हनु पुस्तिका आजकल " सेतु एशिया" नामक...
-
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा। हमारे तिरंगे के सम्मान में लिखा गया यह गीत जब भी सुनाई देता है, रोम-रोम पुल्कित हो जाता ...
-
युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा स...
-
"बिजली का तेल" यह क्या होता है ? मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि बिजली के ट्रांस्फार्मरों में जो तेल डाला जाता है वह लगातार &...
-
कहते हैं कि विधि का लेख मिटाए नहीं मिटता। कितनों ने कितनी तरह की कोशीशें की पर हुआ वही जो निर्धारित था। राजा लायस और उसकी पत्नी जोकास्टा। ...
-
अपनी एक पुरानी डायरी मे यह रोचक प्रसंग मिला, कैसा रहा बताइयेगा :- काफी पुरानी बात है। अंग्रेजों का बोलबाला सारे संसार में क्यूं है? क्य...
4 टिप्पणियां:
अकेले में अपने कान ऐंठने पडेंगे :)
अकेले में चंपत मारने पर बुद्धि सक्रिय होती है और बाहर झापड़ मारने पर दिमाग की सभी बत्तियाँ जल जाती है और कान उमेठने से दिमाग की घटी बज जाती है . . अब भाई जी ये भी बता दे कि तीसरी इन्द्री कुंठित कब होती है ? बहुत खूब .
बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने.
धन्यवाद
स्कूलों में जाने-अनजाने अध्यापकगण चपतियाकर, कान उमेठ कर या कान पकड़ कर उठक-बैठक करवा कर हमारी बुद्धी को चैतन्य करने में सहायक ही होते थे।
बिल्कुल ग़लत!
गगन जी, चपतियाने से बच्चा सिर्फ़ इतना ही सीखता है कि ताकतवर का कमज़ोर को चपतियाना ठीक है. ग्रंथों में वर्णन है की यदि छात्र को दंड देना ज़रूरी भी हो तो उसे सिर्फ़ दंड (डंडा या छडी) दिखाया जाए (मारा न जाए). यही कारण है कि भारत की तरक्की उस दिन ही रुक गयी थी जिस दिन से हमने शिक्षा में हिंसा को प्रवेश करने दिया. ये जालिम मास्टर न तो ख़ुद कुछ भला कर सके और न ही इनके हाथ से पिटे हुए बच्चे. बच्चों को चापतियाना, कान खींचना, मुर्गा बनाना तथा अन्य हिंसक प्रयोग सिरे से ही ग़लत हैं और आज के हमारे भारतीय समाज में व्याप्त हिंसा का एक बड़ा कारण भी हैं. यदि सम्भव हो तो इसे पढ़ें:
http://www.srijangatha.com/2008-09/august/pitsvarg%20se.htm
एक टिप्पणी भेजें