शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

क्या कभी कंकडों से भी पानी ऊपर आता है

बात कुछ पुरानी है। तब की जब गधा शेर की खाल ओढ़ने के कारण मार खा चुका था। सियार ख़ुद को रंग कर पिट-पिटा चुका था। मगरमच्छ बन्दर से मुहंकी खा पानी में दुबका पडा था और खरगोश तो कछुए से हार कर कहीं भी मुहँ दिखाने के लायक नहीं बचा था। इस सब के बावजूद कौवे की धाक जमी हुयी थी। वह अभी भी चतुर सुजान समझा जाता था। 

ऐसे ही वक्त बीतता गया। समयानुसार गर्मी का मौसम भी आ खड़ा हुआ अपनी पूरी प्रचंडता के साथ। सारे नदी-नाले, पोखर-तालाब सब सूखने की कगार पर पहुंच गए। पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच गई। ऐसे ही एक दिन हमारा वही चतुर-सुजान कौवा भी पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। उसकी जान निकली जा रही थी, पंख जवाब दे रहे थे, कलेजा मुँह को आ रहा था। तभी अचानक उसकी नजर एक झोंपडी के बाहर पड़े एक घडे पर पड़ी। वह तुरंत वहां गया, घड़े में पानी तो था पर एक दम तले में, पहुँच के बाहर। कौवे ने इधर-उधर देखा, अपनी अक्ल दौडाई और पास पड़े कंकडों को ला-ला कर घडे में डालना शुरू कर दिया। परन्तु एक तो गरमी दुसरे पहले से थक कर बेहाल ऊपर से प्यास , कौवा जल्द ही पस्त पड़ गया । अचानक उसकी नजर झाडी के पीछे खड़ी एक बकरी पर पड़ी जो न जाने कब से उसका क्रिया-कलाप देख रही थी। उसे देख कौवा सन्न रह गया, वह यह सोच कर ही काँप उठा कि यदि बकरी ने उसकी इस नाकामयाबी का ढोल पीट दिया तो ? उसकी इज्जत तो दो कौड़ी की तीन रह जाएगी ! अचानक उसके दिमाग का बल्ब जला, उसे ऐसी तरकीब सूझी कि आम तो खाने को मिले ही गुठलियों की कीमत भी वसूल हो गयी। कौवे ने बकरी को पास बुलाया और अपनी दरियादिली का परिचय देते हुए उससे कहा, कि मेरे घड़े में कंकड़ डालने से पानी काफी ऊपर आ गया है, पर तुम ज्यादा प्यासी लग रही हो, सो पहले तुम पानी पी लो। बकरी भी प्यासी थी वह कौवे कि शुक्रगुजार हो आगे बढ़ी पर घडे से पानी ना पी सकी। कौवा जानता था कि ऐसा ही होना है, उसने अपने-आप को अक्लमंद दर्शाते हुए बकरी को फिर राह सुझाई कि तुम ऐसे नहीं पी पाओगी ऐसा करो कि अपने सर से टक्कर मार कर घडा उलट दो, इससे पानी बाहर आ जायेगा तो फिर तुम पी लेना। बकरी ने कौवे के कहेनुसार घडे को गिरा दिया। घडे का सारा पानी बाहर आ गया, दोनों ने पानी पी कर अपनी प्यास बुझाई। 

बकरी का मीडिया में काफी दखल था। उसने कौवे की दरियादिली तथा बुद्धिमत्ता का जम कर ऐसा प्रचार किया कि आज तक कौवे का गुणगान होता आ रहा है ।  इंसान तक अपने बच्चों को उसकी अक्लमंदी के किस्से पढ़वाते-सुनाते हैं। 

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

क्या बात है...गजब!!! बहुत खूब!!

रवि रतलामी ने कहा…

ये बात आपने सही कही. कभी कंकड़ों से भी पानी ऊपर आता है भला. पहले कभी आता होगा, आज के कलयुग में तो कंकड़ उलटे पानी सोख लेते हैं!

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