अपनी सुगंध, मिठास तथा स्वाद के कारण आम फ़लों का राजा कहलाता है। तरह-तरह के नाम हैं इसके - हापुस, चौसा, हिमसागर, सिंदुरी, सफ़ेदा, गुलाबखास, दशहरी इत्यादि-इत्यादि, पर बनारस का एक कलमी सब पर भारी पडता है। यह खुद जितना स्वादिष्ट होता है उतना ही अजीब नाम है इसका लंगडा आम। यह आमों का सरताज है। इसका राज फ़ैला हुआ है बनारस के रामनगर के इलाके में। इसका नाम ऐसा क्यों पडा इसकी
भी एक कहानी है। बनारस के राम नगर के शिव मंदिर में एक सरल चित्त पुजारी पूरी श्रद्धा-भक्ती से शिवजी की पूजा अर्चना किया करते थे। एक दिन कहीं से घूमते हुये एक साधू महाराज वहां पहुंचे और कुछ दिन मंदिर मे रुकने की इच्छा प्रगट की। पूजारी ने सहर्ष उनके रुकने की व्यवस्था कर दी। साधू महराज के पास आम के दो पौधे थे जिन्हें उन्होंने मंदिर के प्रांगण में रोप दिया। उनकी देख-रेख में पौधे बड़े होने लगे और समयानुसार उनमें मंजरी लगी जिसे साधू महराज ने शिवजी को अर्पित कर दिया। रमता साधू शायद इसी दिन के इंतजार मे था, उन्होंने पुजारीजी से अपने प्रस्थान की मंशा जाहिर की और उन्हें हिदायत दी कि इन पौधों की तुम पुत्रवत रक्षा करना, इनके फ़लों को पहले प्रभू को अर्पण कर फ़िर फ़ल के टुकडे कर प्रसाद के रूप में वितरण करना, पर ध्यान रहे किसी को भी साबुत फ़ल, इसकी कलम या टहनी अन्यत्र लगाने को नहीं देनी है। पुजारी से वचन ले साधू महाराज रवाना हो गये। समय के साथ पौधे वृक्ष बने उनमें फ़लों की भरमार होने लगी। जो कोई भी उस फ़ल को चखता वह और पाने के लिये लालायित हो उठता पर पुजारी किसी भी दवाब में न आ साधू महाराज के निर्देशानुसार कार्य करते रहे। फ़लों की शोहरत काशी नरेश तक भी पहुंची, उन्होंने प्रसाद चखा और उसके दैवी स्वाद से अभिभूत रह गये। उन्होंने पुजारी को आम की कलम अपने माली को देने का आदेश दिया। पुजारीजी धर्मसंकट मे पड गये। उन्होंने दूसरे दिन खुद दरबार में हाजिर होने की आज्ञा मांगी।सारा दिन वह परेशान रहे। रात को उन्हें आभास हुआ जैसे खुद शंकर भगवान उन्हें कह रहे हों कि काशी नरेश हमारे ही प्रतिनिधी हैं उनकी इच्छा का सम्मान करो। दूसरे दिन पुजारीजी ने टोकरा भर आम राजा को भेंट किये। उनकी आज्ञानुसार माली ने उन फ़लों की अनेक कलमें लगायीं। जिससे धीरे-धीरे वहं आमों का बाग बन गया। आज वही बाग बनारस हिंदु विश्वविद्यालय को घेरे हुये है। यह तो हुई आम की उत्पत्ती की कहानी। अब इसके अजीबोगरीब नाम की बात। शिव मंदिर के पुजारीजी के पैरों में तकलीफ़ रहा करती थी, जिससे वह लंगडा कर चला करते थे। इसलिये उन आमों को लंगडे बाबा के आमों के नाम से जाना जाता था। समय के साथ-साथ बाबा शब्द हटता चला गया और आम की यह जाति लंगडा आम के नाम से विश्व विख्यात होती चली गयी। इस ब्लॉग में एक छोटी सी कोशिश की गई है कि अपने संस्मरणों के साथ-साथ समाज में चली आ रही मान्यताओं, कथा-कहानियों को, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, एक अलग नजरिए से देखने, समझने और सामने लाने की ! इसके साथ ही यह कोशिश भी रहेगी कि कुछ अलग सी, रोचक, अविदित सी जानकारी मिलते ही उसे साझा कर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके ! अब इसमें इसको सफलता मिले, ना मिले, प्रयास तो सदा जारी रहेगा !
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3 टिप्पणियां:
बहुत खूब. अच्छी जानकारी रही.
वैसे इस प्रश्न ने कईयों को सोचने पर विवश किया है. प्रख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी के अनुसार:
हे आम! तुम लंगड़े क्यों कहलाते हो?
जबकि तुम जरा भी वैसे नहीं हो.
और अगर तुम लंगड़े नहीं हो तो बताओ,
क्या तुम पैर वाले हो?
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आपने कमेन्ट में वर्ड वेरिफिकेशन लगा रखा है. जल्दी ही कोई अनुरोध आता होगा इसे हटाने के लिए.
बहुत बढिया जानकारी दी है आपने।
अच्छी जानकारी.
Kripya Word Verification hata len, tippani karne me asuvidha hoti hai.
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