बुधवार, 11 दिसंबर 2019

प्याज बिना स्वाद कहां रे !

इस लिहाज से प्याज को सब्जी रूपी ''बाबा'' भी कहा जा सकता है। जैसे आजकल के फर्जी बाबे, लोगों की मति फेर, उनको अपने वाग्जाल में उलझा कहीं का नहीं छोड़ते; ठीक वैसे ही यह ''प्याजिबाबा'' भी लोगों को स्वाद के मायाजाल में उलझा कर उनका आर्थिक शोषण करने से बाज नहीं आ रहा है। और इधर हम हैं कि सौ-पचास रुपये के लिए अपनी कोमलांगी, रसप्रिया जिह्वा को उसके सुख से विमुख करने को कतई राजी नहीं हैं...................!   

#हिन्दी_ब्लागिंग 
ज्ञानी, गुणी, विवेकशील लोग कह गए हैं कि क्या स्साला खाने के लिए जीता है; अरे ! सिर्फ थोड़ा-बहुत जीने के लिए खा लिया कर ! अब उनको क्या बताएं कि दोनों अवस्थाओं में खाना तो खाना ही पडेगा और खाना तभी हितकर होगा जब रसना को रस आएगा। अब यह तीन इंची इंद्रिय बस देखने-कहने को ही छोटी है, कारनामे इसके बड़े-बड़े होते हैं। ये चाहे तो महाभारत करवा दे ! यह चाहे तो घास-पात को अनमोल बनवा दे। बोले तो, पूरी की पूरी मानवजाति इसके इशारों पर नाचती है। भले ही इसके लिए कुछ भी, कोई भी कीमत चुकानी पड़े। 
पढ़े-लिखे को फारसी क्या ! अब देख लीजिए, प्याज बिना खुद को छिलवाए लोगों के आंसू निकलवा रहा है कि नहीं ! किसके कारण ? सिर्फ जीभ के कारण ! जी हाँ, वही प्याज जिसके सेवन के लिए ऋषि-मुनियों ने बहुत पहले ही मनाही कर दी थी। क्योंकि शायद उन्हें इसका अंदाज हो गया था कि यह नामुराद, जिसका ना तो कोई ईमान है ना हीं धर्म ! एक ना एक दिन लोगों की मुसीबत का कारण बनेगा। आज देख लीजिए ! कुछ ही दिनों पहले जिसको कोई दो रुपये किलो तक लेने को तैयार नहीं था ! किसान जिसकी उपज को नष्ट करने पर मजबूर हो गए थे, उसी शैतान की आंत की जुर्रत कुछ ही दिनों में सात सौ गुना उछाल मार आज दो सौ का आंकड़ा छूने की हो रही है। कारण सिर्फ इंसान की वही तीन इंची इंद्री, जिसे बिना प्याज भोजन, भोजन नहीं लगता। वही प्याज जिसे छीलो तो परत दर परत सिर्फ छिलका ही हाथ आता है, यानी निल बटे सन्नाटा ! पर वही सन्नाटा आज ज्वालामुखी का शोर साबित हो रहा है। 
ठीक है कि इसमें कुछ गुण भी जरूर हैं, तो गुण तो रावण में भी थे ! उनको नजरंदाज कर यदि लोग बिना प्याज के खाना बनाने लग जाएं तो इसे दो दिनों में अपनी औकात नजर आ जाए ! पर नहीं ! इसने लोगों की मति ऐसे मार रखी है कि इसके चहेते इसको हासिल करने के लिए सरकार तक उलटने को तैयार हो जाते हैं। इस लिहाज से प्याज को सब्जी रूपी ''बाबा'' भी कहा जा सकता है। जैसे आजकल के फर्जी बाबे, लोगों की मति फेर, उनको अपने वाग्जाल में उलझा कहीं का नहीं छोड़ते; ठीक वैसे ही यह प्याजिबाबा भी लोगों को स्वाद के मायाजाल में उलझा कर उनका आर्थिक शोषण करने से बाज नहीं आ रहा है। और इधर हम हैं कि सौ-पचास रुपये के लिए अपनी कोमलांगी को उसके सुख से विमुख करने को कतई राजी नहीं हैं। देखना है कि यह कांदा और कितने कांड करेगा ! अभी तो आलम यह है कि ''उठाए जा उनके सितम और जिए जा, यूँ ही मुस्कुराए जा और पैसे खर्च किए जा ! (आंसू पिए जा !) 

11 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी, हार्दिक आभार

मन की वीणा ने कहा…

समयानुसार सार्थक व्यंग ।
सटीक रचना।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

कुसुम जी
"कुछ अलग सा" पर सदा स्वागत है

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुन्दर और सामयिक व्यंग्य। अब तो लोग प्याज लूटने भी लगे हैं। देखिये आगे आगे होता है क्या? वैसे आपका लेख पढ़कर प्याज के पकोड़े खाने का मन करने लगा है। हा हा हा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

विकास जी
मन की कर लेनी चाहिए 🤣

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

जी नमस्ते,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13 -12-2019 ) को " प्याज बिना स्वाद कहां रे ! "(चर्चा अंक-3548) पर भी होगी

चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का

महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

आप भी सादर आमंत्रित है 
….
अनीता लागुरी"अनु"

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

.. वाकई में वर्तमान समय में प्याज को लेकर जो हालात पैदा पैदा हो गए हैं उसमें आपकी यह व्यंग्य लेख प्याज के आंसू रुला रही है बहुत ही जबरदस्त लिखा आपने

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी
आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अनीता जी, हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार

Alaknanda Singh ने कहा…

पूरी की पूरी मानवजाति को अपने इशारों पर नचाने वाली को आपने भी खूब नचाया ,बहुत खूब ल‍िखा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अलकनंदा जी,
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है

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