हमारे त्यौहार किसी ना किसी प्रयोजन से जुड़े होते हैं, उनका कुछ ना कुछ महत्व भी जरूर होता है और उनका उल्लेख हमारे वेद-शास्त्रों में भी जरूर मिलता है। लेकिन 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस की कोई कथा या जिक्र कहीं नहीं मिलता ! इसलिए ऐसी आशंका उठनी स्वाभाविक है कि सिर्फ विरोध करने की खातिर कोई ऐसा दिवस तो नहीं गढ़ दिया गया है ..............!
#हिन्दी_ब्लागिंग
आज क्रिसमिस के त्यौहार के साथ ही सोशल मीडिया पर जहां-तहां तुलसी दिवस होने का भी उल्लेख किया जा रहा है। हमारे त्यौहार किसी ना किसी प्रयोजन से जुड़े होते हैं, उनका कुछ ना कुछ महत्व भी जरूर होता है और उनका उल्लेख हमारे वेद-शास्त्रों में भी जरूर मिलता है। लेकिन 25 दिसंबर को तुलसी पूजन दिवस की कोई कथा या जिक्र कहीं नहीं मिलता। इसका कारण भी है कि यह प्रथा विवादित आसाराम बापू द्वारा 2014 में ही शुरू की गयी है !
ऐसा क्यों है यह समझना भी कोई बड़ी बात नहीं है ! पर क्या ऐसा कर के हम खुद को या अपने त्योहारों को कमतर तो नहीं कर रहे ! सभी जानते हैं कि हमारे त्योहारों के समय की गणना विक्रमी संवत के अनुसार होती है जो ईसवी संवत से बिल्कुल अलग है। चूँकि दुनिया में क्रिश्चियन कैलेण्डर चलन में है इसीलिए हमारे तीज-त्योहारों का समय हर वर्ष अलग-अलग होता है, तो फिर यह कैसे संभव है कि तुलसी दिवस हर बार 25 दिसंबर को ही पड़े ! इसलिए ऐसी आशंका उठनी स्वाभाविक है कि तुलसी जैसे बहुउपयोगी, गुणकारी, लोगों की भावना और आस्था से गहराई तक जुड़े इस पौधे की आड में सिर्फ किसी अन्य उत्सव का विरोध करने की खातिर कोई ऐसा दिवस गढ़ दिया गया हो !
मानव सदा से ही उत्सव प्रिय रहा है। पर्व, त्यौहार, उत्सव आनंद और खुशहाली का प्रतीक होते हैं, फिर वे चाहे किसी भी धर्म-समाज या पंथ के हों। आज के तनाव भरे समय में इंसान सकून के दो पल मिलते ही अपने तनाव को भुलाना चाहता है। इसलिए जब कभी, जैसा भी मौका मिलता है वह लपक लेता है। यह स्वयं-स्फूर्त भावना है, खासकर आजकी युवा पीढ़ी की, जो बिना किसी भेदभाव के उत्पन्न होती है। यह भी सही है कि कहीं-कहीं अतिरेक भी हो जाता है। शायद इसी कारण कुछ लोगों को विदेशी त्योहारों को अपनाने पर अपने त्योहारों की अवहेलना होते नजर आती है। पर क्या हमारी परंपराऐं, संस्कृति, आस्था इतनी कमजोर हैं ?
विडंबना देखिए कि आज तकरीबन हर भारतीय की ख्वाहिश होती है कि वे खुद या उनके बच्चे विदेश जा कर अपना जीवन निर्वाह करें ! इसमें कोई बुराई भी नहीं है पर जब वहां जा कर उनकी हर अच्छी-बुरी बात या चलन का अनुसरण करना है तो उनके त्योहारों का यहां रह कर विरोध क्यों ? ध्यान सिर्फ इतना रखना है कि उसकी अच्छाईयों को ही ग्रहण करें ना कि समय के साथ उसके साथ जुड गयीं बुराईयों को भी आंख बंद कर अपना लें।
हमारा सनातन धर्म अपने नाम के अनुसार सनातनी है। कितने उतार-चढ़ाव आए ! कितनी ही विपरीत परिस्थितियां रहीं ! कितने ही अलग-अलग मतावलंबियों ने इसके विरुद्ध प्रचार कर इसे बदनाम करने, ख़त्म करने का कुप्रयास किया ! सैंकड़ों हजारों वर्षों तक अन्य धर्मावलंबी शासकों ने हम पर राज किया ! कुछ लोग उनके बहकावे में आए भी, पर इस महान वैदिक धर्म को मिटा नहीं सके। तो फिर वसुधैव कुटुंबकंम की सोच रखने वाली हमारी सोच आज इतनी संकुचित कैसे हो गयी ? हम क्यों इतने शंकित रहने लगे इसके अस्तित्व को ले कर ? क्यों देश, समाज, व्यक्ति के प्रति हमारा दृष्टिकोण इतना संकीर्ण हो गया ? सोचने की और ध्यान देने की बात है !
6 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3561 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
दिलबाग जी, आपका और चर्चा मंच का हार्दिक आभार¡स्नेह ऐसे ही बना रहे
ध्यान सिर्फ इतना रखना है कि उसकी अच्छाईयों को ही ग्रहण करें ना कि समय के साथ उसके साथ जुड गयीं बुराईयों को भी आंख बंद कर अपना लें। बहुत अच्छी बात कही आपने ,शानदार लेख ,सादर नमन आपको
कामिनी जी,
हार्दिक आभार ¡
गगन जी, शास्त्र नहीं पढ़े मैंने और ना ही शास्त्रार्थ की क्षमता है | पर इन कथित धर्मावलम्बियों ने धर्म में विकृतियां तो
अनेक पैदा की हैं पर सुधार के नाम पर एक पहल की हो ऐसा कभी सुनने में नहीं आया |बात - बात पर धर्म ने नाम पर तलवार तो तान कर सनातन धर्म की गरिमा को कम करते रहते हैं | बापू आसाराम सरीखे लोग ये भूल जाते हैं वासुदेवकुटुम्बकम् की अवधारणा सनातन धर्म की विशेष पहचान है | यहाँ की उदार संस्कृति में जो आया , उन्मुक्त रूप से फला - फूला| भला एक दो विदेशी परम्पराओं से हमारी सदियों पुराने संस्कार कैसे खंडित हो सकते हैं | अच्छा लगा आपका ये लिक से हटकर लेख आभार और शुभकामनायें |
पूरी तरह सहमत हूं। इस तरह की हरकतें कुछ चंट लोग अपनी दुकानदारी चलाए रखने के लिये भी करते रहते हैं
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