आज की जरुरत यह कहती है कि हर आदमी को अपना पर्यावरण सुधारने के लिए, पानी को बचाने के लिए, अपने आस-पास के वातावरण को साफ़-सुथरा-स्वच्छ बनाने के लिए, बिना सरकार का मुंह जोहे या किसी और बाहरी सहायता या किसी और की पहल का इंतजार किए या यह सोचे कि मेरे अकेले के करने से क्या होता है, अपनी तरफ से शुरुआत कर देनी चाहिए। कोशिश चाहे कितनी भी छोटी हो पर होनी चाहिए ईमानदारी से। मंजिल पानी है तो कदम तो उठाना पड़ेगा ही ना ! सैकड़ों ऐसे उदहारण अपने ही देश में ऐसे हैं जब किसी अकेले ने अपने पर विश्वास कर, खुद पहल करने का साहस किया और अपने गांव-कस्बे-जिले की सूरत बदल कर रख दी..........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
जब भी मौसम बदलता है तब-तब अचानक स्वयंभू विशेषज्ञों की एक जमात हर पत्र-पत्रिका, अखबार, टी.वी. चैनलों पर आ-आ कर सीधे-सादे, भोले-भाले लोगों को डराने का काम शुरू कर देती है ! मौसम के अनुसार ये लोग हवा, पानी, ठण्ड, गर्मी, पर्यावरण का डरावना रूप और बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना शुरू कर देते हैं। सिर्फ नकारात्मक बातें ! वह भी इस लहजे में जैसे इन्हें छोड़ कर बाकी सारे लोग आज के हालात के लिए दोषी हों। ऐसे "उस्ताद लोगों" के पास कोई ठोस उपाय नहीं होते; वह वहाँ बैठे ही होते है दूसरों की या सरकार की आलोचना करने के लिए ! वे सिर्फ समय बताते हैं कि इतने सालों बाद यह हो जाएगा, उतने वर्षों बाद वैसा हो जाएगा; लोगों को ऐसा करना चाहिए, लोगों को वैसा करना होगा, इत्यादि,इत्यादि।
इनके पास सिर्फ दूसरों के लिए सलाहें और निर्देश होते हैं ! उनसे कोई पूछने वाला नहीं होता कि जनाब आपने इस मुसीबत से पार पाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर क्या-क्या किया है ? जैसे अभी भयंकर गर्मी पड़ रही है, तो आपने अपने निजी तौर पर उसे काम करने में क्या सहयोग या उपाय किया है ? क्या आपने अपने लॉन-बागीचे की सिंचाई के लिए प्रयुक्त होते पानी में कुछ कटौती की है ? आप के घर से निकलने वाले कूड़े में अब तक कितनी कमी आई है ? क्या आप शॉवर से नहाते हैं या बाल्टी से ? आपके 'पेट्स' की साफ़-सफाई में कितना पानी जाया किया जाता है ? क्या आपके घर के AC या TV के चलने का समय कुछ कम हुआ है ? क्या आप यहां जब आए तो संयोजक से AC बंद कर पंखे की हवा में ही बात करने की सलाह दी ? क्या आप कभी पब्लिक वाहन का उपयोग करते हैं ? ऐसे सवाल उन महानुभावों से कोई नहीं पूछेगा ! क्योंकि वे ''कैटल क्लास'' से नहीं आते ! और यह सब करने की जिम्मेदारी तो सिर्फ मध्यम वर्ग की है !
वैसे हालत चिंताजनक जरूर है ! पर यह कोई अचानक आई विपदा नहीं है। हमारी आबादी जब बेहिसाब बढी है तो उसके रहने, खाने, पीने की जरूरतें भी तो साथ आनी ही थीं। अरब से ऊपर की आबादी को आप बिना भोजन-पानी-घर के तो रख नहीं सकते थे। उनके रहने खाने के लिये कुछ तो करना ही था जिसके लिये कुछ न कुछ बलिदान करना ही पड़ना था। सो संसाधनों की कमी लाजिमी थी पर हमें उपलब्ध संसाधनों की कमी का रोना ना रो, उन्हें बढाने की जी तोड़ कोशिश करनी चाहिये, समाज को जागरूक करने के साथ-साथ ! जब मुसीबत तो अपना डरावना चेहरा लिये सामने आ ही खड़ी हुई है, तो उससे मुकाबला करने का आवाहन होना चाहिये ना कि उससे लोगों को भयभीत करने का।
दुनिया में यदि दसियों हजार लोग विनाश लीला पर तुले हैं तो उनकी बजाय उन सैंकड़ों लोगों के परिश्रम को सामने लाने की मुहिम भी छेड़ी जानी चाहिये जो पृथ्वी तथा पृथ्वीवासियों को बचाने के लिये दिन-रात एक किये हुए हैं। ये वे लोग हैं जो सरकार का मुंह जोहने या उसको दोष देने की बजाए खुद जुट पड़े विपदा का सामना करने को ! भले ही छोटे पैमाने पर काम शुरू हुआ हो पर कहते हैं ना, लोग जुड़ते गए काफिला बनता गया ! हम में से अधिकाँश सरकार को दोष देने से बाज नहीं आते ! यदि कभी किसी अभियान से जोश में आ कुछ कर भी देते हैं तो कुछ ही समय बाद उसकी सुध नहीं लेते ! अक्सर अखबारों में ऐसी बातें आती रहती हैं कि फलानी जगह इतने लाख पौधे लगाए गए ! ढिमकानी जगह सैंकड़ों लोगों ने पेड़ लगाने की मुहिम में हिस्सा लिया ! हजारों ने प्लास्टिक की थैलियों को काम में ना लेने की कसमें खायीं ! पर यह सब क्षणिक आवेश में उठाए गए कदम होते हैं ! उसके बाद ना कोई पेड़ों की खबर लेता है ना ही पौधों की सुध ली जाती है ! ना ही कोई प्लास्टिक का मोह छोड़ पाता है !
आज की जरुरत यह कहती है कि हर आदमी को अपना पर्यावरण सुधारने के लिए, पानी को बचाने के लिए, अपने आस-पास के वातावरण को साफ़-सुथरा-स्वच्छ बनाने के लिए, बिना सरकार का मुंह जोहे या किसी और बाहरी सहायता या किसी और की पहल का इंतजार किए या यह सोचे कि मेरे अकेले के करने से क्या होता है, अपनी तरफ से शुरुआत कर देनी चाहिए। कोशिश चाहे कितनी भी छोटी हो पर होनी चाहिए ईमानदारी से। मंजिल पानी है तो कदम तो उठाना पड़ेगा ही ना ! सैकड़ों ऐसे उदाहरण अपने ही देश में ऐसे हैं जब किसी अकेले ने अपने पर विश्वास कर, खुद पहल कर अपने गांव-कस्बे-जिले की सूरत बदल कर रख दी हो !
8 टिप्पणियां:
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/06/2019 की बुलेटिन, " 5 जून - विश्व पर्यावरण दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम जी, आपका और ब्लॉग बुलेटिन का हार्दिक आभार
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
श्वेता जी, हार्दिक धन्यवाद
प्रभावी व सटीक लेख है आपका। सब अपनी अपनी जिम्मेदारी ले लें पर्यावरण के लिए अपने स्तर पर हम कुछ तो कर ही सकते हैं। रामजी जब समुद्र पर पुल बाँध रहे थे तब नन्हीं सी गिलहरी ने दिया था ना अपना योगदान ?
बहुत सटीक और सारगर्भित प्रस्तुति।
मीना जी, हौसला अफजाई का बहुत-बहुत शुक्रिया
कैलाश जी, ''कुछ अलग सा'' पर सदा स्वागत है
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