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रविवार, 18 सितंबर 2022

चीते आ गए, स्वागत है

छाता प्रजाति जीवों की उन विशेष श्रेणी को कहा जाता है, जिनके संरक्षण से धरती की अन्य प्रजातियों को भी संरक्षित कर पर्यावरण को संतुलित करने में सहायता मिलती है ! इनमें पशु और पक्षी दोनों ही सामान रूप से सम्मिलित होते हैं ! ये संरक्षण क्षेत्रों के आकार, संरचना और पारिस्थितिक तंत्र को बचाए रखने में भी मदद करते हैं। ये भले ही अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, अन्य जीवों को रहत पहुंचते हैं, इसीलिए इन्हें छाता या अंब्रेला प्रजाति कहा जाता है .......!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हमारे यहां एक प्रथा कुछ वर्षों से काफी चलन में है, वह है विरोध ! सरकार द्वारा कुछ भी हो रहा हो या किया जाए तुरंत एक खास पूर्वाग्रही, कुंठित, विघ्नसंतोषी तबका उसके विरोध में चिल्ल-पों मचाना शुरू कर देता है ! उस काम के औचित्य पर, उसके प्रयोजन पर, उसके परिणाम पर सवाल उठाने आरंभ कर दिए जाते हैं ! भले ही वह काम देश के या लोगों के हित में ही क्यों ना हो ! अभी देश की ग्रासलैंड इकोलॉजी को सुधारने के लिए विलुप्त हो चुके चीतों के पुनर्स्थापन की योजना के तहत नामीबिया से आठ चीते, जिनमें पांच मादा तथा तीन नर हैं, लाए गए ! इस पर उनको लाने और जगह विशेष में बसाने पर भी ऐसे लोगों को राजनीती नजर आने लगी ! जबकि यह पर्यावरण के लिए बहुत आवश्यक था !

चीतों का लाना इस लिए जरुरी था क्योंकि इसे ''अंब्रेला प्रजाति का जीव'' माना जाता है. जिसका स्थान ''फूड चेन'' में सबसे ऊपर होता है ! अगर इसे नहीं लाया जाता तो हमारा बिगड़ता हुआ फूड चेन का संतुलन पूरी तरह से खतरे में पड़ जाता ! रही बात मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के चयन की तो वह इसलिए सर्वाधिक उचित था, क्योंकि वहां पर नवांगतुकों को भोजन की कोई समस्या नहीं होगी ! वहां पर्याप्त मात्रा में चीतों के शिकार करने लायक जीव हैं ! जिनमें उनकी खास पसंद चीतल भी काफी संख्या में मौजूद हैं ! एहतियाद के तौर पर दो सौ के करीब और चीतलों को भी वहां छोड़ा गया है !


छाता प्रजाति जीवों की उन विशेष श्रेणी को कहा  जाता है, जिनके संरक्षण से धरती  की अन्य प्रजातियों को भी संरक्षित कर  पर्यावरण को संतुलित करने में  सहायता मिलती  है ! इनमें  पशु और पक्षी दोनों  ही सामान रूप से सम्मिलित  होते हैं ! ये संरक्षण क्षेत्रों के आकार, संरचना और  पारिस्थितिक तंत्र को बचाए रखने में भी बहुत मददगार होते हैं। ये भले ही अप्रत्यक्ष  रूप से ही सही, अन्य जीवों को  राहत पहुंचाते हैं, इसीलिए इन्हें छाता या अंब्रेला प्रजाति कहा जाता है !

किसी भी देश से दूसरे देश में जीवों को लाने ले जाने के IUCN (International Union for Conservation of Nature) के कुछ नियम हैं, जिनका पालन करना जरुरी होता है ! उसी के तहत चीतों के लिए  पांच राज्यों के 10 जगहों को तय किया गया था ! जो सात अलग-अलग तरह के लैंडस्केप पर मौजूद हैं. छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास नेशनल पार्क ! गुजरात में बन्नी ग्रासलैंड्स ! मध्यप्रदेश में डुबरी वाइल्डलाइफ सेंचुरी, संजय नेशनल पार्क, बागडारा वाइल्डलाइफ सेंचुरी, नॉराडेही वाइल्डलाइफ सेंचुरी और कूनो नेशनल पार्क ! राजस्थान में डेजर्ट नेशनल पार्क वाइल्डलाइफ सेंचुरी और शाहगढ़ ग्रासलैंड्स और उत्तर प्रदेश की कैमूर वाइल्डलाइफ सेंचुरी !

फिर काफी सोच-विचार मश्शकत के बाद राजस्थान के मुकुंदारा हिल्स टाइगर रिजर्व, शेरगढ़ वाइल्डलाइफ सेंचुरी और भैंसरोर गढ़ वाइल्डलाइफ सेंचुरी तथा मध्यप्रदेश की गांधी सागर वाइल्डलाइफ सेंचुरी, माधव नेशनल पार्क को भी आजमाया गया ! पर अंत में हर दृष्टिकोण से श्योपुर स्थित कूनो नॅशनल पार्क ही हर कसौटी पर खरा उतरा ! जहां स्पेशल हवाई जहाज से, विशेष व्यवस्था और निगरानी के तहत नए मेहमानों को ला कर, प्रधान मंत्री मोदी जी द्वारा उनके इस नए आवास में छोड़ा गया !

कूनो को सर्वाधिक उपयोगी इसलिए पाया गया ! क्योंकि चीतों को खुले जंगलों में रहने के बजाए थोड़ी ऊँची घास वाले ऐसे मैदानी इलाके पसंद होते हैं जहां वातावरण में थोड़ा सूखापन हो, ज्यादा उमस, ठंड व बारिश न हो ! इसके साथ ही लोगों की आवाजाही भी कम से कम हो ! ऐसे में कूनो का 748 वर्ग किलोमीटर का इलाका पूरी तरह खरा उतरता है ! यहां पानी की प्रचुर मात्रा लिए कूनो नदी है ! बिना तेज ढाल वाली पहाड़ियां हैं और साथ ही इफरात मात्रा में भोजन भी उपलब्ध है !

चीते का हमारे संस्कृत ग्रंथों में चित्रक यानी चित्तीदार के रूप में विवरण मिलता है ! नवपाषाण युग की गुफाओं में भी इनके चित्र मिलते हैं ! आशा है, करीब सत्तर साल बाद आए, दुनिया के सबसे तेज धावक,  हमारे इन नए मेहमानों को यहां स्थाई निवासी बनने, रहने, पनपने में कोई अड़चन नहीं आएगी ! उनका परिवार फलेगा-फूलेगा ! इसके साथ ही इस इलाके में पर्यटन बढ़ेगा ! लोग चीतों को देखने आएंगे ! जिससे राज्य और देश को भी फायदा होगा ! 

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से, आभार 

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