शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

गुगलाचार्याय नम:

किसी चीज को सीखने में, समझने में वक्त लगता है, मेहनत करनी पड़ती है, चुन्नौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे आदमी मानसिक तौर पर मजबूती हासिल करता है ! इसका कोई शॉर्ट-कट नहीं होता ! पर यह सब बीते दिनों की बातें हो गई हैं ! अब रस्सी को सिल पर निशान डालने के लिए खुद को नहीं घिसना पड़ता ! सिलें चतुर हो गई हैं ! वे कुएं भी तो नहीं रहे !  पानी सर्वसुलभ हो, अलग-अलग गुणवत्ता में, बंद बोतलों में  आम बिकने लगा है ! अपनी  जरुरत के  हिसाब से  खरीद लो !  ना कोई  परिश्रम  ना हीं  किसी श्रम की जरुरत ! रस्सियों को ज्ञान देने वाले गुरु, गुरुघंटाल बन गए हैं ............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

इस बार दिवाली के पूजन अवसर पर जब पंडित जी ने अपने गुरु का स्मरण करने को कहा तो बरबस गूगल का  ध्यान आ गया ! ऐसे मौके पर इस तरह की बेवकूफी के लिए अंदर ही अंदर खुद को कोसा भी, क्रोध भी आया, पर क्या किया जा सकता था, जो बात कहीं गहरे में मन की गहराइयों में चस्पा हो गई है, वही तो सामने आएगी ना !   

मशीन 
चपन में पढ़ाई के शुरूआती दौर से लेकर अंत तक, अलग-अलग विषयों के अलग-अलग शिक्षकों को पढ़ाते देखा था ! हर विषय के अलग मास्टर जी हुआ करते थे, गणित के अलग, विज्ञान के अलग, इतिहास-भूगोल के अलग ! यहां तक कि संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी भाषाओं के लिए भी अलग-अलग गुरु हुआ करते थे ! वे भी एक निश्चित अवधि तक ही उपलब्ध होते थे  ! कभी भी, एक ही व्यक्ति को सब कुछ पढ़ाते-समझाते नहीं देखा था ! उससे एक धारणा बन गई थी कि एक ही व्यक्ति सर्वज्ञ नहीं हो सकता !  

भ्रम 
फिर आया गूगल ! सर्वज्ञानी ! एक ऐसा गुरु जो सदा 365x24 आपके साथ ही रहने लगा ! दिन-रात-दोपहर-शाम, जब आप चाहें हर प्रश्न के जवाब के साथ हाजिर ! आपकी किसी डिग्री या लियाकत की जरुरत नहीं ! कोई ना-नुकर नहीं ! कोई अपेक्षा नहीं ! कोई समयावधि नहीं ! प्रश्नों की कोई सीमा नहीं ! आप पूछते-पूछते थक जाएं पर वह जवाब देने में कोई कोताही नहीं करता ! इतिहास, भूगोल, सोशल या मेडिकल साइंस, गणित, इंजीनियरिंग, साहित्य, फिल्म, वेद, पुराण, उपनिषद, महाकाव्य, अंतरिक्ष विज्ञान, दुनिया का कोई विषय उससे अछूता नहीं है ! कोई भी सवाल हो, जवाब तुरंत हाजिर है।  तो ऐसे गुरु का नाम कैसे कोई याद नहीं रखेगा ! 

कैद 
पर सच क्या है ? सच तो यह है कि हम आज धीरे-धीरे सहूलियत की ओर अग्रसर होने लगे हैं ! सीखने को वक्त की बर्बादी समझने लगे हैं ! इससे ज्ञान और जानकारी का भेद खत्म हो चला है ! किसी चीज की गहराई में जा, उसको सीखने की ललक दरकिनार होती चली जा रही है ! किसी चीज को सीखने में, समझने में वक्त लगता है, मेहनत करनी पड़ती है, चुन्नौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे आदमी मानसिक तौर पर मजबूती हासिल करता है ! इसका कोई शॉर्ट-कट नहीं होता ! पर यह सब बीते दिनों की बातें हो गई हैं ! अब रस्सी को सिल पर निशान डालने के लिए खुद को नहीं घिसना पड़ता ! सिलें चतुर हो गई हैं ! वे कुएं भी तो नहीं रहे ! पानी सर्वसुलभ हो, अलग-अलग गुणवत्ता में, बंद बोतलों में आम बिकने लगा है ! अपनी जरुरत के हिसाब से खरीद लो ! ना कोई परिश्रम ना हीं किसी श्रम की जरुरत !

जाल 
जिस तरह बिना मेहनत-मशक्कत के, बैठे-बिठाए खाने को मिल जाए तो निष्क्रियता के चलते शारीरिक क्षमता घटती चली जाती है, ठीक वैसे ही गुगलई ज्ञान की सुलभता से दिमाग निष्क्रिय सा होता चला जा रहा है ! किसी बड़ी या पेचीदा बात को तो छोड़िए, आज कितने लोगों को अपने परिवार के सदस्यों, मित्रों और  करीबियों के फोन नंबर याद हैं, पूछ कर देख लीजिए ! और तो और हम अपना फोन नम्बर भूलने लगे हैं ! हाल यह हो गया है कि आधा घंटा फोन ना चले या मिले तो हम अपाहिज की तरह हो जाते हैं ! आबालवृद्ध सब उसके गुलाम बन गए हैं ! आज गूगल और उसके जैसे अन्य गुरु, गुरुघंटाल बन चुके हैं ! 

गिरफ्त 
हमें पता ही नहीं कि मजे-मजे में, दिमागी तौर पर हम बीमार होते चले जा रहे हैं ! इस औक्टोपस ने बुरी तरह हम सब को अपनी गिरफ्त में ले लिया है ! आज हमारे पास वक्त नहीं है ! इसीलिए हम ज्ञान नहीं, सिर्फ जानकारियां हासिल कर खुद लो ज्ञानवान समझने का भ्रम पाल बैठे हैं ! समस्या गंभीर है ! सोच कर देखिएगा !

@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से 

2 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 01 नवंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी,
बहुत बहुत आभार 🙏

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गुगलाचार्याय नम:

किसी चीज को सीखने में, समझने में वक्त लगता है, मेहनत करनी पड़ती है, चुन्नौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे आदमी मानसिक तौर पर मजबूती हासिल ...