रविवार, 15 जून 2025

बाबूजी मैं आपसे बहुत प्यार करता था, पर कभी कह नहीं पाया

आज जब आपकी बेपनाह याद आती है और मैं आपसे एकतरफा बात करता हूँ ! तब आँखें फिर किसी भी तरह काबू में नहीं रहतीं !  बाबूजी मैं आपसे बहुत प्यार करता था, पर कभी कह नहीं पाया ! मैं यह भी जानता हूँ कि आप भी मुझसे बहुत स्नेह करते थे, पर आपने भी कभी खुल कर उसका इजहार नहीं किया ! शायद पीढ़ियों की दूरी या उस समय के समाज की मर्यादा सदा आड़े आती रही होगी, कुछ भी रहा हो ! पर जब कुछ-कुछ कोहरा छंटने लगा था, तभी आप मुझे छोड़ गए.....................😢  

 

#हिन्दी_ब्लागिंग
 
मेरी जिंदगी भर एक ही कामना रही कि आपसे कह सकूँ कि बाबूजी मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ ! आप मेरे आदर्श है ! पर कभी भी कह नहीं पाया ! जबकि आप अपने रुतबे को कभी घर नहीं लाए। सदा गंभीर रहते हुए भी सरल, निश्छल, प्रेमल बने रहे ! पर पता नहीं दोष किसका रहा ! मेरी झिझक का, मेरे संकोच का या आज से बिल्कुल विपरीत उस समय का जब पिता के सामने पड़ने के लिए भी काफी हिम्मत की जरुरत होती थी। सारे काम, जरूरतें, संवाद माँ के जरिए ही संपन्न होते थे ! क्या आज की पीढ़ी सोच भी सकती है वैसे हालात के बारे में ! कैसा समय हुआ करता था ! कितनी दूरी होती थी इस पीढ़ी के बीच ! प्यार-स्नेह-ममता-लगाव सब कुछ तो था ! पर जताया नहीं जाता था कभी, पता नहीं क्यूँ ?
मेरे, सबके बाबूजी 
हर बच्चे के लिए उसका पिता ही सर्वश्रेष्ठ व उसका आदर्श  होता है ! पर आप तो सबसे अलग थे ! मैंने जबसे होश संभाला तब से आपको अपनी नहीं सिर्फ दूसरों की फ़िक्र और उनकी बेहतरी में ही लीन देखा ! यहां तक कि छोटी सी उम्र से ही अपने पालकों को भी पालते रहे ता-उम्र आप ! अपने भाई बहन का तो बहुत से लोग जीवन संवारते हैं, पर आपने तो उनके साथ ही माँ के परिवार को भी सहारा दिया ! वह भी बिना किसी अपेक्षा के या कोई अहसान जताए या चेहरे पर शिकन लाए ! यह जानते हुए भी कि बहुत से लोग आपका अनुचित फ़ायदा उठा रहे हैं, आप अपने कर्तव्य पूर्ती में लगे रहे ! आखिर वह दिन भी आ ही गया जब आपको भी आराम की जरुरत महसूस होने लगी ! तब मतलब पूर्ती का स्रोत सूखता देख कइयों ने अपना पल्ला झाड़ रुख बदल लिया ! पर आप नहीं बदले ! जितना भी बन पड़ता था, दूसरों की सहायता करते रहे ! कहने-सुनाने को तो मेरे पास अनगिनत बातें हैं, इतनी कि पन्नों के ढेर लग जाएं पर स्मृतियाँ शेष ना हों !
                                                                                        🙏🙏
जब भी पुरानी यादें मुखर होती हैं, तो बहुत से ऐसे वाकये भी याद आते हैं जब आप मुझसे नाराज हुए ! पर सही मायनों में बताऊँ तो आज तक समझ नहीं पाया कि जिस बात को मैं सोच भी नहीं सकता वैसा कैसे और क्यूँ हुआ ! सब गैर-इरादतन होता चला गया ! किसी दुष्ट ग्रह की वक्र दृष्टि और कुछ विघ्नसंतोषी लोगों का षड्यंत्र, कुछ का कुछ करवाता चला गया ! याद आता है तो बहुत दुःख और अजीब सा लगता है, अपने को सही साबित ना कर पाना और दूसरों के कुचक्र को ना तोड़ सकना ! पर जब कुछ-कुछ कोहरा छंटने लगा था तभी आप मुझे छोड़ गए !   

जब एकांत में आपकी बेपनाह याद आती है और मैं आपसे एकतरफा बात करता हूँ ! तब आँखें फिर किसी भी तरह काबू में नहीं रहतीं !  बाबूजी मैं आपसे बहुत प्यार करता था, पर कभी कह नहीं पाया ! मैं यह भी जानता हूँ की आप मुझसे बहुत स्नेह करते थे, इसका एहसास भी है मुझे, पर आपने कभी खुल कर उसका इजहार नहीं किया ! शायद पीढ़ियों की दूरी या उस समय के समाज की मर्यादा सदा आड़े आती रही ! कुछ भी रहा हो, इसका जिंदगी भर मलाल रहेगा..............! 

शत-शत, अश्रुपूरित प्रणाम 🙏🙏🙏

7 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

मन से लिखी गयी अभिव्यक्ति भावुक कर गयी सर।
शब्द नहीं क्या लिखे।
पित की स्मृतियों को नमन।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १७ जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी
बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏

Digvijay Agrawal ने कहा…

शत शत नमन
वंदन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी
आभार 🙏🙏

शुभा ने कहा…

दिल को अंदर तक स्पर्श कर गई आपकी रचना गगन जी ।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बहुत-बहुत आभार, शुभा जी 🙏

Admin ने कहा…

पिता की जिम्मेदारियों और उनके गंभीर स्वभाव के बावजूद उनके अंदर छिपा हुआ प्रेम इस बात को दर्शाता है कि कैसे परंपरागत सोच और सामाजिक मर्यादाएं अक्सर भावनाओं के इजहार में बाधा बनती हैं। आपकी कविता याद दिलाती है कि प्यार जताने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती, उसका एहसास ही काफी होता है।

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