बुधवार, 25 दिसंबर 2024

प्रेम, समर्पण, विडंबना

इस युगल के पास दो ऐसी वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी और दूसरे थे दैला के रेशमी सुनहरे घुटनों तक पहुँचते केश ! दैला ने अपने खूबसूरत केशों पर एक नजर डाली, एक सिहरन उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। फिर किसी निष्कर्ष पर पहुँच उन्हें जूड़े का रूप दे, अपना बैग उठा वह वह शीघ्रता से दरवाजे से बाहर निकली और सीढियां उतर कर सड़क पर आ गई ............1

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हम में से बहुतों ने प्रख्यात अमेरिकी लेखक विलियम सिडनी पोर्टर, जिन्हें ओ. हेनरी के नाम से ज्यादा जाना जाता है, की लोकप्रिय कहानी ''The Gift of the Magi'' पढ़ रखी होगी पर कईयों को शायद प्रेम और समर्पण की प्रतीक इस कहानी के बारे में जानकारी ना हो ! तो क्रिसमस के इस मौके पर आज ब्लॉग पर उसी कहानी का संक्षिप्त रूप रखने की कोशिश की है ! 

दैला अपनी आँखों में मजबूरी और बेबसी के आंसू भरे अपने बिस्तर पर औंधी पड़ी हुई थी। उसकी मुठ्ठी में थे, एक डॉलर और सत्तासी सेंट। जो जीवन की कशमकश से लड़ते हुए, खरीदारी में सौदेबाजी, कंजूसी और मन को मार-मार कर बचाए गए थे ! वह उन्हें तीन बार गिन चुकी थी, पर गिनने से रकम में बढ़ोत्तरी तो नहीं ना होती ! कल ही क्रिसमस है, उसे अपने प्रिय जिम को उपहार देना है, जिसकी योजना बनाने में उसने कई-कई दिन बिता दिए और उसकी जमा-पूंजी है एक डालर और सत्तासी सेंट। आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ! सिमित आमदनी की मजबूरियां उस छोटे से कमरे में अपनी पूरी शिद्दत के साथ उजागर थीं। 

ओ. हेनरी 
ऐसा नहीं है कि जिम और दैला के दिन सदा से ऐसे ही थे, इस युगल ने भी अच्छे दिन देखे और बिताए हैं। पर समय सदा एक सा कहाँ रहता है ! पर उनके बीच का अटूट, प्रगाढ़ प्रेम का स्थाई भाव वैसा ही बना हुआ है। समय भले ही बदल गया हो पर दोनों एक दूसरे के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। कुछ देर बाद दैला बिस्तर से उठी, आंसू पोछे। चेहरे पर पानी के छींटे मार प्रकृतिस्थ होने की कोशिश की। पर मुंह बाए सामने खड़ी कल की समस्या का कोई हल निकलता नहीं दिख रहा था ! कल क्रिसमस का त्यौहार है, इस दिन के लिए वह महीनों से एक-एक पैनी करके पैसे बचा रही है, पर जमा हो पाए हैं सिर्फ एक डॉलर और सत्तासी सेंट, इतनी सी रकम से वह कैसे अपने प्यारे जिम के लिए उपहार खरीद पाएगी, यह बात उसे परेशान किए जा रही थी !

समस्या से जूझती दैला को एकाएक कमरे में लगे आईने में अपनी शक्ल दिखाई दी। अपना अक्श देखते ही उसकी आँखें चमक उठीं। उसने शीघ्रता से अपने केशों को खोल लिया और अपनी पूरी लम्बाई तक उन्हें नीचे लटका दिया। इस युगल के पास दो ऐसी वस्तुएं थीं, जिन पर दोनों को बहुत गर्व था। एक थी जिम की सोने की घड़ी, जो कभी उसके पिता और दादा के पास भी रह चुकी थी और दूसरे थे दैला के रेशमी सुनहरे घुटनों तक पहुँचते केश ! दैला ने अपने खूबसूरत केशों पर एक नजर डाली, एक सिहरन उसके पूरे शरीर में दौड़ गई। फिर किसी निष्कर्ष पर पहुँच उन्हें जूड़े का रूप दे, अपना बैग उठा वह वह शीघ्रता से दरवाजे से बाहर निकली और सीढियां उतर कर सड़क पर आ गई।

दैला जहां पहुँच कर रुकी वहां लिखा था - "मैडम सोफ्रोनी - सभी प्रकार के केश प्रसाधनों की विक्रेता"। दैला लपककर एक मंजिल जीना चढ़ गई और अपने-आपको संभालते हुए सीधे दुकान की मालकिन से पूछा कि क्या आप मेरे बाल खरीदेंगी ? महिला ने कहा, "क्यों नहीं, यही तो हमारा धंधा है। जरा अपना हैट हटाकर मुझे आपके बालों पर एक नजर डालने दीजिये।"  दैला ने हैट हटाया, महिला ने अपने अभ्यस्त हाथों में केश राशि को उठा उसका आकलन कर कहा "बीस डॉलर।" "ठीक है। जल्दी कीजिये," दैला बोली। 

थोड़ी ही देर में उसके बाल कट चुके थे और वह दुकानों की खाक छान रही थी, जिम के उपहार के लिए। तभी उसे वह चीज मिल गई जिसकी उसको तलाश थी, वह थी जिम की सोने की घड़ी के लिए प्लेटिनम की चैन ! घर पहुँच दैला क्रिसमस की तैयारी में जुटी ही थी कि तभी जिम अंदर आया। आते ही उसकी दृष्टि दैला पर टिक गई ! उन नजरों में कुछ ऐसा था जिससे दैला डर सी गई, वह दौड़ कर उसके पास पहुंची और रुआँसी होकर कहने लगी - "मेरे प्यारे जिम, मेरी तरफ इस तरह मत देखो। मैंने अपने बाल सिर्फ इसलिए बेचे क्योंकि क्रिसमस पर तुम्हें उपहार दिए बिना मैं यह क्रिसमस नहीं मना सकती थी। बाल तो घर की खेती है, फिर उग आयेंगे। तुम बिलकुल चिंता मत करो, मेरे बाल बहुत तेजी से बढ़ते हैं। तुम्हें क्रिसमस मुबारक हो ! देखो, मैं तुम्हारे लिए कितनी सुन्दर घड़ी की चेन लाई हूँ ! जरा अपनी घड़ी तो देना, देखूँ तो यह उस पर कैसी लगती है ?

जिम जैसे किसी दूसरे संसार में था !  रहा था जैसे बहुत प्रयत्न करने पर भी वह सत्य को समझ ना पा रहा हो। फिर अचानक जैसे बेहोशी से जागते हुए उसने दैला को छाती से लगा लिया। उसने अपने ओवरकोट की जेब से एक पैकेट निकाला और उसे मेज पर रखा और बोला "मुझे गलत मत समझना दैला ! दुनिया की कोई भी चीज तुम्हारे प्रति मेरे प्यार को कम नहीं कर सकती। लेकिन अगर तुम इस पैकेट को खोलोगी तो तुम्हें मालूम होगा कि तुम्हें देखकर मैं क्यों स्तब्ध रह गया था !"

दैला ने तुरंत पैकेट खोला और उसके खुलते ही उसके मुँह से चीख निकल गई ! आँखों से आसुओं का सैलाब बह निकला ! मेज पर बिखरा हुआ था कछुए की हड्डी से बना कंघे-कंघियों का संग्रह, जिनके गोल किनारों पर जड़े हुए थे सुंदर चमकीले नग ! जिन्हें अपने बालों में सजाने का सदा से उसका सपना रहा था !  जिसको पाने के लिए वह सदा भगवान से प्रार्थना किया करती थी !

दैला अपने बालों को बेच जिस घड़ी के लिए चेन लाई थी उसी घड़ी को बेच जिम उसके बालों के लिए कंघों का सेट ले आया था ! अब दोनों ही उपहार किसी काम के नहीं थे ! जिम और दैला दोनों एक दूसरे को गले से लगाए आंसू बहाए जा रहे थे। ये आंसू गवाह थे उनके प्यार के, उनके समर्पण के, उनके त्याग के !

@आदरांजलि - ओ. हेनरी  

8 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

पहले सुना था इसके बारे में
काफी मेहनत की आपने
आभार नायाब आलेख पढ़वाने के लिए
वंदन

Sweta sinha ने कहा…

आभारी हूँ सर, ऑरिजनल कहानी साझा करने के लिए।
सचमुच अद्भुत है।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

ज्योति-कलश ने कहा…

मर्मस्पर्शी

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी,
प्रेम, समर्पण की गाथा, जो एक टीस भी छोड़ जाती है अंत में

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

श्वेता जी,
सम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक आभार

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी,
स्नेह बना रहे

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

ज्योत्स्ना जी,
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है

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