अब बात साइड इफेक्ट की ! इस मुलाकात के बाद रामचेत जी सुर्खियों में आ गए ! आना ही था ! दूकान पर लोग पहुंचने लगे ! दूर-दूर से फोन आने लगे ! अपने गांव-खेड़े में उनकी इज्जत बढ़ गई ! मीडिया उनके इंटरव्यू के लिए समय लेने लगा ! वे खुश हैं, गदगद हैं ! उनके साथ-साथ उस पुरानी चप्पल के भी भाग खुल गए ! देश-परदेस में उसकी फोटो ''वायरल'' हो गई ! खबरें हैं कि उसकी कीमत भी लगने लगी है ! कौन लगा रहा है इसकी जानकारी गोपनीय है ! ज्ञातव्य है कि कुछ सालों पहले ऐसे ही किसी पेंटिंग की भी दो करोड़ की बोली लगी थी ! किसी को फुरसत नहीं है कि पूछे कि साहब उत्तर प्रदेश की उस गरीब महिला कलावती का आजकल क्या हाल है, जिसका पहली बार आपने मनरेगा मजदूर बन, मिटटी का टोकरा उठा कर आपने फोटुएं खिंचवाईं थी...........!
#हिन्दी_ब्लागिंग
पिछले कई दिनों से राहुल गांधी के तरह-तरह के अवतार देश के सामने लाए जा रहे हैं ! कभी खेत में किसानों के साथ, कभी रेलवे कुलियों के साथ, कभी किसी मेकेनिक के साथ, कभी बढ़ई के साथ, कभी रेलवे के स्टाफ के साथ और कभी किसी जूते गांठने वाले की गुमटी पर ! विरोधियों द्वारा इसका काफी मजाक बनाया गया ! काफी ट्रोलिंग हुई ! उनके व्यक्तित्व पर भी सवाल उछाले गए ! पर शायद इन ड्रामों के सीधे-सरल आमजन पर पड़ने वाले प्रभाव पर किसी ने ध्यान नहीं दिया ! जो सुलतानपुर एपिसोड के बाद अचानक सामने आया है ! जिसमें रामचेत ने अपने पूरे गांव के साथ उनको वोट देने की बात की है ! इससे तो यही लगता है कि बहुत सावधानी से डूब कर पानी पिया जा रहा है ! यानी ऐड़ा बन कर नहीं, ऐड़ा बना कर पेड़ा खाया जा रहा है !
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हुनर |
पिछले दिनों 26 जुलाई को अपने एक केस के सिलसिले में यू.पी. के सुल्तानपुर के कोर्ट में पेशी के बाद लौटते समय राहुल गांधी का काफिला अचानक कूरेभार क्षेत्र के विधायक नगर के मुख्य मार्ग पर स्थित राम चेत मोची की छोटी सी गुमटीनुमा जूतों की दुकान पर रुकता है ! राहुल जी अपने दल-बल के साथ गाड़ी से उतर कर दुकान में विराजमान हो जाते हैं ! वहीं रामचेत जी से बातचीत होती है ! एक पुरानी चप्पल उठा, उसकी गठाई तथा एक जूते में सोल चिपकाया जाता है ! काफिला करीब आधा घंटा वहां गुजार, मदद का वादा कर आगे रवाना हो जाता है ! वादे के अनुसार रामचेत जी को एक मशीन भी भेजी जाती है, हालांकि बिजली ना होने की वजह से फिलहाल वह काम नहीं कर रही ! रामचेत जी भी रिटर्न गिफ्ट के रूप में अपने हाथ से बनाए दो जूते उन्हें भिजवाते हैं ! अच्छा रहा सब कुछ ! बहुत अच्छा !
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रामचेत जी |
अब बात साइड इफेक्ट की ! इस मुलाकात के बाद रामचेत जी सुर्खियों में आ गए ! आना ही था ! दूकान पर लोग पहुंचने लगे ! फोन आने लगे ! अपने गांव-खेड़े में उनकी इज्जत बढ़ गई ! मीडिया उनके इंटरव्यू के लिए समय लेने लगा ! वे गदगद हैं ! इनके साथ-साथ उस चप्पल के भी भाग खुल गए ! देश-परदेस में उसकी फोटो ''वायरल'' हो गई ! खबरें हैं कि उसकी कीमत भी लगने लगी है ! कौन लगा रहा है, इसकी जानकारी गोपनीय है ! ज्ञातव्य है कि कुछ सालों पहले ऐसे ही किसी पेंटिंग की भी दो करोड़ की बोली लगाई गई थी ! पर अभी तो 40-45 साल से तंगहाली और गुरबत की अवस्था में रहने वाले, इस घटना से उस स्थिति में कोई खास बदलाव ना आने के बावजूद, रामचेत जी अभी इस लाइम-लाइट का मजा ले रहे हैं ! |
सिलाई मशीन |
इसमें सियासत क्या हुई ! एक लोकल चैनल के साक्षात्कार में जब रामचेत जी से राहुल जी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उन्हें पहली बार देखा है। पोस्टरों में चेहरा देखा होने की वजह से पहचान गए ! उनके अनुसार वे बहुत ही नेकदिल, दयालु और सज्जन इंसान हैं ! वे अपने वादे के भी पक्के हैं ! मैं छोटी जाति का हूँ (उन्होंने अपनी जाति भी बताई ) आजतक किसी छोट-मोटे नेता तक ने कभी मेरी दूकान की तरफ रुख नहीं किया पर आज देश का इतना बड़ा नेता आ कर मेरे पास बैठा ! मेरे से बात की ! मेरा हाल-चाल जाना ! यह उनकी महानता है ! उनका बड़प्पन है ! मैं धन्य हो गया ! |
लखटकिया चप्पल |
जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा गया कि आप वोट किसको देंगे तो बिना एक क्षण लगाए, सीधे-सरल रामचेत जी ने राहुल गांधी का ही नाम तो लिया ही, विश्वास के साथ यह भी कहा कि मैं तो क्या सारा गांव उन्हीं को वोट देगा। देश का नेता ऐसा ही मिलनसार, भलामानुष, गरीबों का ध्यान रखने वाला होना चाहिए ! यही बात गौर करने वाली है कि राहुल का कहीं भी रुकना, किसी से भी मिलना, उसके काम में दिलचस्पी दिखाना, उससे बात करना, क्या यह सब स्वतःस्फूर्त है या सब कुछ किसी स्क्रिप्ट के तहत, एक दीर्घ कालीन योजना को ध्यान में रख कर किया जा रहा है ? खोजबीन तो यही बताती है कि यह सब एक सोची समझी रणनीति के तहत, सर्वे कर, पूरी स्क्रिप्ट बना, उचित कलाकार को चुन, पहले से पूरी बिसात बिछा कर घटना को अंजाम दिया जाता है ! असर क्या है ? समाज के उन गरीब मजदूर, मेकेनिक, कारपेंटर, कुली, मोची, जिनसे कोई ढंग से बात भी नहीं करता उनके मन पर इन सब बातों से बड़ा गहरा असर पड़ता है ! ऐसे अत्यंत पिछड़े, समाज के अंतिम छोर पर खड़े इंसान को जब ऐसी हमदर्दी, ऐसा सम्मान, ऐसी इज्जत मिलती है, जिसकी उसने सपने में भी कल्पना ना की हो, जब अचानक वह अपने आप का कद अपने लोगों में बढ़ा पाता है तो निहाल हो, गर्व सा महसूस करने लगता है और इस बात को चारों ओर ज्यादा से ज्यादा प्रचारित-प्रसारित करने में वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता ! वह सबको बताता है कि देखो इतना बड़ा आदमी, देश का नेता, कितना रहम दिल है, जो हमारी खोज-खबर ले रहा है ! हमारा इतना ख्याल रख रहा है ! जहां देश के बड़े-बड़े लोग नहीं जा सकते वहां हमें ले जा कर बैठाता है ! हमारा सुख-दुःख पूछता है ! यदि यह सत्ता में आ गया तो सारे गरीबों का कल्याण हो जाएगा ! उसकी यह बात वह काम कर जाती है जो किसी नेता की दस-बीस हजार की सभा में दिया गया भाषण भी नहीं कर पाता ! |
फोटो सेशन |
उसको इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि सामने वाला किस लिए ऐसा कर रहा है ! उसका आचरण क्या है ! वो जो कर रहा है वह नाटक है या सच्चाई ! उसे सिर्फ इतना पता होता है कि उस इंसान के कारण उसकी जिंदगी में एक सुखद बदलाव आया है और मैं उसी का साथ दूँगा ! अपने परिवार की चिंता से ग्रस्त जिंदगी के थपेड़ों से जूझते ऐसे लोगों को फुर्सत ही कहां मिलती है कि वे आस-पास घटित हो रहे वाकयों पर ध्यान दे सकें ? नहीं तो इनमें से कोई तो पूछता कि साहब उत्तर प्रदेश की उस गरीब महिला कलावती का क्या हाल है, जिसका पहली बार मनरेगा मजदूर बन, मिटटी का टोकरा उठा कर आपने फोटुएं खिंचवाईं थीं ?
गरीबों के मनोविज्ञान को, लोगों की इसी कमजोर रग को, राहुल जी की सलाहकार समिति ने समझ, अपना चक्रव्यूह उसी के अनुसार रच डाला है ! बाकी का काम तो उनके साथ चलते निर्देशकों, स्क्रिप्ट लेखकों और कैमरों ने पूरा कर ही दिया है ! एक बात और कि इस तरह के सारे नाटकों का श्रेय उनके निदेशक को जाता है, कलाकार रूपी राहुल जी तो पूरी तरह, सपूर्णतया निर्देशक के नायक हैं, जो उसने कहा अक्षरशः वैसा ही निभा दिया !
@सभी चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से
5 टिप्पणियां:
अपनी अपनी कठपुतलियां । अपनी अच्छा नाच लेती है। सामने वाले की कठपुतली बेकार होती है नचा सभी रहे हैं ।
कठपुतली तो निर्जीव है, यह तो नचाने वाले के हुनर पर निर्भर करता है कि वह उसके माध्यम से कितना प्रभाव डलवा सकता है
बस दुनिया ऐसी ही है....
रूपा जी
सही बात ! पर कैसी-कैसी होती जा रही है
दिग्विजय जी
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार
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