शुक्रवार, 2 अगस्त 2024

ना वैसे सिंहासन रहे नाहीं वैसे आरूढ़ होने वाले

शायद यह उस प्राचीन सिंहासन की पुतलियों का ही श्राप हो, जिससे गलत तरीके से उसे हासिल कर उस पर बैठते ही बैठने वाले पर कोई आसुरी शक्ति हावी हो जाती है ! जिससे वह सच को छोड़ झूठ का पक्ष लेने लगता है ! सच्चाई सामने होते हुए भी वह अपनी आँखें बंद कर झूठ को सही ठहराने लगता है ! अपने हित, अपने पद, अपने भविष्य, अपने परिवार, अपनी सुरक्षा को मद्देनजर रख कर वह अपना फैसला गढ़ने लगता लगता है ! भले ही इसके लिए उसकी चारों ओर से लानत-मलानत हो रही हो..............! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

किसी समय राजाओं के सिंहासन, न्यायाधीश की कुर्सी या पंचायतों के आसन की बहुत गरिमा होती थी। उस पर बैठने वाले का व्यवहार पानी में तेल की बूंद के समान रहा करता था। उसके लिए न्याय सर्वोपरी होता था। उस स्थान को पाने के लिए उसके योग्य बनना पड़ता था। समय बदला, उसके साथ ही हर चीज में बदलाव आया। पुराने किस्से-कहानियों में वर्णित घटनाएं कपोलकल्पित सी लगने लगीं। प्राचीन ग्रंथों को छोड़ दें तो 70-80 साल पहले की कथाओं को भी पढने से लोग आश्चर्यचकित होते हैं कि कहीं ऐसा भी हो सकता था ?
सिंहासन 
हमारे साहित्य ग्रंथों में राजा विक्रमादित्य का जितना बखान उनकी वीरता, न्याय प्रियता, उनके ज्ञान, चारित्रिक विशेषता, गुण ग्राहकता के लिए हुआ है, वह शायद ही किसी और सम्राट या नायक के लिए हुआ हो। कहते हैं कि उनके पराक्रम, शौर्य, न्यायप्रियता, कला-मर्मज्ञता तथा दानशीलता से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने उन्हें एक दिव्य रत्नजड़ित स्वर्णिम सिंहासन उपहार में दिया था ! इसमें 32 पुत्तलिकाएं यानी पुतलियां लगी हुई थीं ! उसी पर बैठ कर वे न्याय किया करते थे। उस आसन के उपर तक पहुंचने के लिए बत्तीस सीढियां चढ़नी पड़ती थीं। हर सीढ़ी की रखवाली एक-एक पुतली करती थी, जिससे कोई अयोग्य उस पर आसनारूढ ना हो जाए !  
न्याय का हथौड़ा 
विक्रम ने राज-पाट छोड़ते वक्त उस सिंहासन को भूमि में गड़वा दिया था कि कहीं इसका दुरूपयोग ना हो ! कालांतर में जब राजा भोज ने शासन संभाला और उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने उसे जमीन से निकलवा, उस पर बैठ कर राज करने का निश्चय किया। शुभ मुहुर्त में जब उन्होंने उस पर पहला कदम रखा, तब उस पायदान की रक्षक पुतली ने उन्हें राजा विक्रम से जुड़ी एक कथा सुनाई और पूछा कि राजन, क्या आप अपने को इस सिंहासन के योग्य पाते हैं ? राजा भोज ने विचार कर कहा, नहीं ! फिर उन्होंने उस लायक बनने के लिए साधना की, अपने को उस योग्य बनाया। इस तरह उन्होंने बत्तीस पुतलियों को संतुष्ट कर अपने आप को उस सिंहासन के लायक बना, उस को ग्रहण किया, यह नहीं कि अपने रसूख का दुरूपयोग कर जबरन उसे हासिल कर लिया हो ! 
सर्वोच्च 
यह तो पुरानी बात हो गई। पर हमारे समय के दिग्गज कथाकारों की कहानियों के पंचपरमेश्वर या और भी धर्माधिकारियों के किस्से मशहूर हैं, जो अपनी बुद्धिमत्ता, कुशाग्रता तथा लियाकत से यह सम्मान पाते थे ! इन गरिमामय आसनों पर बैठने के पश्चात, किसी भी प्रकार का भेदभाव, दवाब या पक्षपात ना कर न्याय और सिर्फ न्याय किया करते थे, चाहे उनके सामने कोई भी वादी-प्रतिवादी खड़ा हो ! इसीलिए लोगों को उन पर अटूट विश्वास होता था और वे आदर के पात्र बने रहते थे ! 
न्यायस्थल 
पर अब समय बहुत कुछ बदल चुका है ! दुनिया के हर क्षेत्र की तरह न्याय का यह पावन स्थल भी बुराइयों से अछूता नहीं रह गया है ! कुछ लोगों द्वारा इसे हासिल करने के लिए साम-दाम-दंड़-भेद हर तरह की नीति अपनाई जाने लगी है। योग्यता या काबिलियत ठगी सी रह जाती हैं, इस प्रकार के उपक्रमों को देख कर ! इसी कारण लोगों का विश्वास भी ऐसी प्रणाली से तिरोहित होने लगा है ! लोग हर फैसले को शक की निगाह से देखने लगे हैं !
कोर्ट रूम 
शायद यह उस प्राचीन सिंहासन की पुतलियों का ही श्राप हो, जिससे गलत तरीके से उसे हासिल कर उस पर बैठते ही बैठने वाले पर कोई आसुरी शक्ति हावी हो जाती है ! जिससे वह सच को छोड़ झूठ का पक्ष लेने लगता है ! सच्चाई सामने होते हुए भी वह अपनी आँखें बंद कर झूठ को सही ठहराने लगता है ! अपने हित, अपने पद, अपने भविष्य, अपने परिवार, अपनी सुरक्षा को मद्देनजर रख कर वह अपना फैसला गढ़ने लगता लगता है ! अपनी गलत बातों का विरोध करने वाला उसे अपना कट्टर दुश्मन लगने लगता है। उस आसन पर बैठ सत्ता हासिल होते ही वह अपने आप को खुदा समझने लगता है !
विश्वास 
पर संतोष की बात है कि ऐसे लोग मुठ्ठी भर के ही हैं ! ऐसा भी नहीं है कि यह क्षेत्र पूरी तरह से निराशा का पर्याय बन गया हो ! अभी भी अधिकांश कर्मठ लोग बिना किसी भय, लोभ, दवाब के अपने काम को सही ढंग से अंजाम देते आ रहे हैं ! जबकि उनको सदा जान-माल का खतरा बना रहता है ! पर उनका विवेक, उनका अंतर्मन, उनका आत्म विश्वास, उनकी निष्ठा उन्हें पथभ्रष्ट नहीं होने देती, भले ही उनके सामने कितना भी दुर्दांत अपराधी क्यों ना खड़ा हो ! इसीलिए सेवानिवृति के पश्चात भी उनकी गरिमा, उनका सम्मान, उनकी प्रतिष्ठा बनी रहती है ! पर वही बात है कि ओछे लोगों की हरकत आजकल ज्यादा प्रचार पाती है और कर्तव्यनिष्ट लोग गुमनामी की धुंध में अलक्षित से रह जाते हैं ! 

7 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुशील जी,
बहुत-बहुत धन्यवाद

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

दिग्विजय जी,
सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार

Rupa Singh ने कहा…

बहुत खूब।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

रूपा जी,
''कुछ अलग सा'' पर आपका सदा स्वागत है

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आलोक जी,
बहुत-बहुत आभार

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